ध्यान करते समय रोना – कमजोरी नहीं, आत्मिक शुद्धिकरण का संकेत
क्या कभी ध्यान के दौरान आपकी आँखों से आंसू बहने लगे और आपने सोचा कि कुछ गलत हो गया? अगर हां, तो आपको जानकर राहत मिलेगी कि ऐसा होना पूरी तरह से स्वाभाविक और सकारात्मक है। ध्यान के दौरान रोना असल में भीतर की सफाई और आत्मिक यात्रा का संकेत होता है।
अक्सर लोग मानते हैं कि ध्यान का मतलब है मन को बिल्कुल खाली कर देना। जबकि सच्चाई यह है कि ध्यान में विचारों को समझना और उन्हें स्वीकारना होता है। इसी प्रक्रिया में हमारे भीतर दबे दुख, भय, या पुराने अनुभव सतह पर आने लगते हैं, और उसी समय आँसू बहते हैं।
अवचेतन मन की सफाई: हमारे मन में वर्षों से छिपे भाव, जब शांत मन में बाहर आते हैं, तो रोना स्वाभाविक होता है।
हृदय चक्र का खुलना: जब आप प्रेम, करुणा या ईश्वर से जुड़ाव महसूस करते हैं, तो यह भावनाएं आंसुओं में बदल जाती हैं।
शून्यता या आत्मिक आनंद का अनुभव: कभी-कभी इतनी गहरी शांति मिलती है कि खुशी के मारे आँसू बहते हैं।
पुराने या पूर्वजन्म के अनुभव: कुछ लोगों को ध्यान में ऐसी स्मृतियाँ आती हैं, जो रोने का कारण बनती हैं।
अपने आँसुओं को रोकें नहीं, उन्हें बहने दें। यही ध्यान की सुंदरता है।
भावनाओं का अवलोकन करें, लेकिन उन्हें जज न करें।
धीरे-धीरे गहरी साँस लें, अपने शरीर और मन को शांत करें।
ध्यान के बाद अपने अनुभव को लिखें, इससे आपको अपने अंदर की स्थिति को समझने में मदद मिलेगी।
डरें नहीं, क्योंकि ये आंसू दुःख के नहीं, बल्कि अंतर्मन के शुद्धिकरण के हैं।
ध्यान में आंसुओं का बहना कोई गलती नहीं, बल्कि आपके अंदर की हीलिंग और जागरूकता का संकेत है। यह प्रक्रिया आपको स्वयं से जोड़ती है, आपके भावनात्मक भार को हल्का करती है और आपको अंदर से मजबूत बनाती है। इसलिए अगली बार जब ध्यान में आंसू आएं, तो उन्हें खुलकर बहने दें—क्योंकि यही आपकी आत्मा की सच्ची आवाज़ है।
📌 Pro Tip: चाहें तो आप ऐसे अनुभवों को गाइडेड जर्नल में लिख सकते हैं या किसी स्पिरिचुअल कोच से साझा कर सकते हैं।