लिपोमा, जिसे आमतौर पर चर्बी की गांठ कहा जाता है, एक सौम्य यानी नॉन-कैंसरस वसायुक्त टिशू से बनी गांठ होती है, जो शरीर के किसी भी हिस्से में त्वचा के नीचे विकसित हो सकती है। यह समस्या अधिकतर लोगों को असुविधाजनक नहीं लगती, लेकिन जब यह बढ़ने लगती है या असामान्य लक्षण दिखाती है, तो इससे जुड़ी जागरूकता और समय पर उपचार बेहद जरूरी हो जाता है।
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लिपोमा बनने का मुख्य कारण अभी पूरी तरह स्पष्ट नहीं है, लेकिन डॉक्टरों के अनुसार इसके पीछे आनुवंशिकता एक प्रमुख भूमिका निभा सकती है। यदि परिवार में किसी को यह समस्या रही हो तो अन्य सदस्यों में इसकी संभावना अधिक रहती है। इसके अलावा शरीर में फैट मेटाबॉलिज़्म से जुड़ी गड़बड़ियाँ, चोट या टिशू डैमेज, मोटापा और मध्यम आयु के बाद का जीवनकाल लिपोमा को जन्म दे सकते हैं। यह भी देखा गया है कि लिवर की बीमारी और हाई कोलेस्ट्रॉल जैसी स्थितियाँ इसके जोखिम को बढ़ा देती हैं।
लिपोमा की पहचान के लिए शरीर में किसी ऐसी मुलायम, हल्की फूली हुई गांठ को देखें जो स्किन के नीचे आसानी से हिलती हो और आमतौर पर दर्द रहित हो। यह गांठ धीरे-धीरे आकार में बढ़ती है और आमतौर पर गर्दन, पीठ, कंधे, जांघ या बाहों में देखी जाती है। हालांकि अधिकतर मामलों में यह दर्द नहीं करती, लेकिन अगर यह नसों या रक्त वाहिकाओं पर दबाव डालती है, तो हल्का दर्द महसूस हो सकता है। इस स्थिति में डॉक्टर से परामर्श लेना जरूरी हो जाता है।
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अधिकतर लिपोमा हानिरहित होते हैं और उपचार की जरूरत नहीं होती, खासकर अगर ये दर्द न कर रहे हों या सौंदर्यात्मक चिंता का कारण न बनें। लेकिन अगर गांठ तेजी से बढ़ रही हो, आकार असामान्य हो या दर्द देने लगे, तो इसे नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। लिपोमा के इलाज में सबसे विश्वसनीय तरीका सर्जिकल रिमूवल है, जिसमें गांठ को पूरी तरह हटा दिया जाता है। इसके अलावा लिपोसक्शन और स्टेरॉयड इंजेक्शन जैसी तकनीकें भी छोटे लिपोमा के लिए कारगर हो सकती हैं।
यह संभव है कि अगर लिपोमा को पूरी तरह से नहीं हटाया गया हो, तो वह फिर से उभर सकता है। इसलिए सर्जरी के दौरान इसकी पूरी कैप्सूल को निकालना जरूरी होता है। यही कारण है कि अनुभवी सर्जन से उपचार कराना ज्यादा बेहतर माना जाता है। कुछ लोगों में एक से ज्यादा लिपोमा भी हो सकते हैं, जिसे मल्टीपल लिपोमा कहा जाता है।
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