धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान परशुराम को भगवान विष्णु का छठा अवतार माना जाता है। उनका उल्लेख विभिन्न पुराणों जैसे रामायण, ब्रह्मवैवर्त पुराण और कल्कि पुराण में मिलता है। परशुराम का जन्म माता रेणुका और ऋषि जमदग्नि के घर हुआ था। वे एक महान योद्धा थे, जिनका प्रमुख हथियार 'फरसा' कहलाता था। वर्तमान में, उनकी प्रतिमा झारखंड के गुमला जिले में स्थित 'टांगीनाथ धाम' में दफन है, जो रांची से लगभग 150 किलोमीटर दूर है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, टांगीनाथ धाम भगवान परशुराम की तपस्थली मानी जाती है, जहां उन्होंने भगवान शिव की आराधना की थी। इस स्थल का आकार भगवान शिव के त्रिशूल के समान है, इसलिए भक्त इसे त्रिशूल के रूप में पूजते हैं।
त्रेता युग में, भगवान राम ने राजा जनक की पुत्री सीता के स्वयंवर में शिवजी का धनुष तोड़ दिया। इसके बाद माता सीता ने राम को अपना वर चुना। जब परशुराम को इस घटना का पता चला, तो वे क्रोधित होकर स्वयंवर स्थल पर पहुंचे। वहां उनका लक्ष्मण से विवाद हुआ। लेकिन जब उन्हें पता चला कि भगवान राम भी नारायण के अवतार हैं, तो उन्होंने क्षमा मांगी और वहां से चले गए। इसके बाद, उन्होंने भगवान शिव की आराधना के लिए घने जंगलों में तपस्या की और अपना फरसा जमीन में गाड़ दिया।
टांगीनाथ धाम का प्राचीन मंदिर अब रखरखाव के अभाव में पूरी तरह से ध्वस्त हो चुका है। यह क्षेत्र कभी आस्था और कला का प्रमुख केंद्र था, लेकिन अब यह खंडहर में तब्दील हो चुका है। हालांकि, यहां के प्राचीन शिवलिंग अभी भी पहाड़ी पर बिखरे हुए देखे जा सकते हैं। यहां की कलाकृतियां और स्थापत्य शैली यह दर्शाती हैं कि यह स्थल देवकाल या त्रेता युग से संबंधित हो सकता है।
स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, भगवान शिव का इस क्षेत्र से गहरा संबंध है। एक कथा के अनुसार, जब शनिदेव ने अपराध किया, तो शिव क्रोधित होकर अपना त्रिशूल फेंक दिया, जो इसी पहाड़ी की चोटी पर धंसा हुआ है। यह त्रिशूल अभी भी जमीन से ऊपर दिखाई देता है, लेकिन इसकी गहराई कोई नहीं जानता। इस स्थान का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व बहुत गहरा है, लेकिन संरक्षण के अभाव में यह धरोहर धीरे-धीरे नष्ट हो रही है।