चेक बाउंस: कानूनी प्रावधान और दंड
newzfatafat May 17, 2025 09:42 PM
चेक बाउंस के मामले में ध्यान देने योग्य बातें



चेक बाउंस के मामले में सावधानी: जब आप किसी को चेक देते हैं, तो यह सुनिश्चित करें कि आपके बैंक खाते में चेक पर लिखी गई राशि से अधिक धनराशि उपलब्ध हो। यदि ऐसा नहीं होता है, तो चेक बाउंस हो सकता है। चेक बाउंस होने के कई अन्य कारण भी हो सकते हैं।


चेक बाउंस होने पर आपको जुर्माना या जेल की सजा का सामना करना पड़ सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने इस विषय में कुछ महत्वपूर्ण जानकारी दी है। आइए, हम इस पर विस्तार से जानते हैं।


चेक जारी करने वाले को अवसर

चेक बाउंस के मामलों में क्या होता है:


चेक बाउंस के मामलों में जुर्माना या जेल की सजा हो सकती है। जब चेक बाउंस होता है, तो चेक लेनदार पहले चेक जारी करने वाले को कानूनी नोटिस भेजता है। इसमें आरोपी को 15 दिनों के भीतर भुगतान करने का समय दिया जाता है। यदि वह भुगतान नहीं करता है, तो चेक लेनदार 30 दिनों के भीतर अदालत में मामला दर्ज कर सकता है।


कानूनी प्रक्रिया

निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट के तहत मामला:


चेक बाउंस का मामला निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट 1881 के तहत चलता है। इस मामले में अधिकतम सजा दो साल तक हो सकती है। भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 357 के अनुसार, पीड़ित को मुआवजा दिया जा सकता है, जो चेक की राशि से दोगुना हो सकता है।


जेल की स्थिति

जमानती अपराध:


चेक बाउंस एक जमानती अपराध है। यदि आरोपी दोषी पाया जाता है, तो उसे अधिकतम दो साल की सजा हो सकती है। जब तक अंतिम निर्णय नहीं आता, तब तक आरोपी को जेल नहीं भेजा जाता। चेक बाउंस के मामलों में दोषी होने की संभावना कम होती है।


अपील का अधिकार

अपील करने का अवसर:


यदि किसी को चेक बाउंस के मामले में जेल में डाल दिया जाता है, तो वह सजा को निलंबित करने के लिए अपील कर सकता है। भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 389(3) के अनुसार, आरोपी जमानत प्राप्त कर सकता है। यदि आरोप सिद्ध होते हैं, तो वह धारा 374(3) के तहत सेशन कोर्ट में 30 दिनों के भीतर अपील कर सकता है।


केस दर्ज करने की प्रक्रिया

निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट के तहत केस:


चेक बाउंस होने पर निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट 1881 की धारा 139 के तहत केस दर्ज होता है। 2019 में इस कानून में अंतरिम मुआवजे का प्रावधान जोड़ा गया। चेक बाउंस का आरोपी अदालत में अपनी पहली पेशी पर शिकायतकर्ता को चेक की राशि का 20 प्रतिशत हिस्सा चुका सकता है।


अंतरिम मुआवजे का प्रावधान

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय:


सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रावधान में संशोधन करते हुए पहली सुनवाई के बजाय अपील के समय अंतरिम मुआवजे का प्रावधान जोड़ा। यदि बाद में आरोपी की अपील स्वीकार कर ली जाती है, तो आरोपी को यह राशि वापस मिलती है।


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