ताजमहल, जिसे दुनिया प्यार की निशानी मानती है, कभी अंग्रेजों की नजर में सिर्फ एक इमारत थी, जिसे बेचकर वे अपनी तिजोरी भरना चाहते थे। जी हाँ, यह सुनकर हैरानी हो सकती है, लेकिन 1831 में ब्रिटिश गवर्नर विलियम बेंटिग ने ताजमहल को नीलाम करने की सनसनीखेज योजना बनाई थी। इस ऐतिहासिक स्मारक का एक हिस्सा तोड़कर उसका संगमरमर तक बेचने की कोशिश की गई थी। लेकिन क्या यह योजना कामयाब हुई? आइए, इस अनसुनी कहानी को करीब से जानते हैं।
ताजमहल की नीलामी का अखबारी ऐलान1831 में, जब ईस्ट इंडिया कंपनी आर्थिक तंगी से जूझ रही थी, ताजमहल को बेचने का विचार ब्रिटिश अधिकारियों के दिमाग में आया। गवर्नर विलियम बेंटिग ने इसके लिए अखबारों में नीलामी का विज्ञापन छपवाया। आगरा के कई धनाढ्य लोग इस नीलामी में शामिल हुए। इनमें स्थानीय सेठ लक्ष्मी चंद ने सबसे ज्यादा सात लाख रुपये की बोली लगाई। लेकिन यह रकम अंग्रेजों को इतनी कम लगी कि उन्होंने नीलामी को रद्द कर दिया। उस समय आगरा की पांच प्रमुख जगहों को नीलाम करने की योजना थी, जिसमें ताजमहल भी शामिल था। यह सुनकर आज भले ही अटपटा लगे, लेकिन उस दौर में ताजमहल की खूबसूरती अंग्रेजों को खास प्रभावित नहीं करती थी।
अंग्रेजों की नजर में ताजमहल कोई अनमोल धरोहर नहीं, बल्कि कीमती सामानों का भंडार था। वे इसे तोड़कर इसका संगमरमर और अन्य बेशकीमती चीजें बेचना चाहते थे। इस लालच में ताजमहल का एक हिस्सा तोड़ा गया, जिसमें से एक कीमती बाथटब निकाला गया। यह बाथटब आज भी लंदन के किसी संग्रहालय में मौजूद है। लेकिन जब तोड़फोड़ के बाद भी अंग्रेजों को अपेक्षित मुनाफा नहीं मिला, तो उन्होंने इस योजना को छोड़ दिया। इस तरह, ताजमहल की अनमोल धरोहर बच गई, वरना शायद आज हम इसे सिर्फ इतिहास की किताबों में पढ़ रहे होते।
ताजमहल की विरासत आज भी बरकरारताजमहल की यह कहानी हमें उस दौर की मानसिकता की झलक देती है, जब इस स्मारक को सिर्फ आर्थिक लाभ का साधन समझा गया था। लेकिन समय ने साबित किया कि ताजमहल न केवल भारत की शान है, बल्कि यह विश्व की सांस्कृतिक धरोहर है। आज यह यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में पूरी दुनिया में जाना जाता है। इस घटना से हमें यह भी सीख मिलती है कि ऐतिहासिक धरोहरों की रक्षा कितनी जरूरी है। ताजमहल आज भी शाहजहाँ और मुमताज की प्रेम कहानी को बयां करता है, जिसे कोई नीलामी की बोली कम नहीं कर सकती।