लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल: 21 साल की उम्र में शहादत की अद्भुत कहानी
Stressbuster Hindi June 20, 2025 06:42 AM
लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल की प्रेरणादायक गाथा

Arun Khetarpal Story

लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल की कहानी: भारतीय सेना के बहादुर जवानों की कहानियाँ देश की सैन्य परंपरा का गौरव हैं। इनमें से एक नाम है लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल का। केवल 21 वर्ष की आयु में, उन्होंने 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान अद्वितीय साहस का परिचय देते हुए दुश्मन के पांच टैंकों को नष्ट किया। मातृभूमि की रक्षा करते हुए उन्होंने अपने प्राणों की आहुति दी और उनके इस बलिदान के लिए उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। यह लेख उनके साहस, सैन्य जीवन, 1971 के युद्ध में उनकी भूमिका और देशभक्ति की प्रेरणा को विस्तार से प्रस्तुत करता है।


प्रारंभिक जीवन और सैन्य पृष्ठभूमि

अरुण खेत्रपाल का जन्म 14 अक्टूबर 1950 को पुणे, महाराष्ट्र में एक सैन्य परिवार में हुआ। उनके पिता, ब्रिगेडियर एम.एल. खेत्रपाल, भारतीय सेना के एक प्रतिष्ठित अधिकारी थे, जिससे अरुण में देशभक्ति और सैन्य जीवन के संस्कार विकसित हुए। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा हिमाचल प्रदेश के लॉरेंस स्कूल, सनावर से प्राप्त की, जहाँ उनकी नेतृत्व क्षमता और अनुशासन के गुण उभरने लगे। इसके बाद, उन्होंने नेशनल डिफेंस अकादमी (NDA) और इंडियन मिलिटरी अकादमी (IMA) से कठोर सैन्य प्रशिक्षण लिया। 1971 में, जब देश संकट में था, अरुण खेत्रपाल को केवल 21 वर्ष की आयु में सेकंड लेफ्टिनेंट के रूप में 17 हॉर्स रेजीमेंट में नियुक्त किया गया। यहीं से एक वीर योद्धा का सफर शुरू हुआ, जो भारतीय सैन्य इतिहास में अमर हो गया।


1971 का भारत-पाक युद्ध और शाकरगढ़ सेक्टर

1971 का भारत-पाक युद्ध मुख्यतः पूर्वी पाकिस्तान में मानवाधिकार उल्लंघनों और शरणार्थी संकट के कारण हुआ। लाखों शरणार्थियों के भारत में प्रवेश ने संसाधनों पर भारी दबाव डाला। इस स्थिति को देखते हुए भारत ने हस्तक्षेप किया। युद्ध के दौरान, भारत ने पूर्वी पाकिस्तान में सैन्य कार्रवाई की और बांग्लादेश की स्वतंत्रता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। पश्चिमी मोर्चे पर शाकरगढ़ सेक्टर का रणनीतिक महत्व था, जहाँ पाकिस्तान ने भारत की मुख्य सड़कों को काटने की योजना बनाई थी। इस क्षेत्र की रक्षा की जिम्मेदारी 17 हॉर्स रेजीमेंट को सौंपी गई, जिसमें लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल शामिल थे। 4 से 16 दिसंबर 1971 के बीच बसंतर नदी के किनारे भयंकर टैंक युद्ध हुआ, जिसे 'बसंतर की लड़ाई' कहा जाता है। अंततः 16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तानी सेना ने आत्मसमर्पण कर दिया, जिससे युद्ध समाप्त हुआ और बांग्लादेश का जन्म हुआ।


लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल की वीरता

16 दिसंबर 1971 को शकरगढ़ सेक्टर में पाकिस्तान ने भारतीय ठिकानों पर बड़ा हमला किया। उनके पास अत्याधुनिक अमेरिकी पैटन टैंक थे। इस दौरान, सेकंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल ने निर्णायक भूमिका निभाई। जब भारतीय टैंकों की पहली पंक्ति क्षतिग्रस्त हो गई, तब उन्होंने अपने Centurion टैंक को आगे बढ़ाया और अकेले कई दुश्मन टैंकों का सामना करते हुए 5 से 10 टैंक नष्ट कर दिए। जब उनका टैंक क्षतिग्रस्त हुआ और उन्हें पीछे हटने का आदेश मिला, तो उन्होंने कहा, “No Sir, I will not abandon my tank, My gun is still working।” गंभीर रूप से घायल होने के बावजूद, वे पीछे नहीं हटे और अंतिम सांस तक लड़ते रहे। उनकी बहादुरी ने भारत को निर्णायक बढ़त दिलाई और उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।


मरणोपरांत सम्मान

लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल को 1971 के युद्ध में उनके अद्वितीय साहस और बलिदान के लिए मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। वे इस सर्वोच्च सम्मान को प्राप्त करने वाले सबसे युवा सैनिकों में से एक हैं। उनकी वीरता आज भी भारतीय सेना और देश के लिए प्रेरणा का स्रोत है। अरुण खेत्रपाल का नाम साहस और कर्तव्यनिष्ठा की मिसाल बन चुका है, जो आने वाली पीढ़ियों को राष्ट्रसेवा के लिए प्रेरित करता रहेगा।


उनके बलिदान की गूंज

अरुण खेत्रपाल की वीरता यह दर्शाती है कि देशभक्ति और बलिदान की भावना उम्र की सीमाओं में नहीं बंधी होती। केवल 21 वर्ष की आयु में, उन्होंने अपने प्राण देश के लिए न्यौछावर कर दिए। उनकी कहानी आज भी युवाओं को प्रेरित करती है कि सच्चा सैनिक वही है जो राष्ट्र के लिए हर परिस्थिति में अडिग खड़ा रहे। उनके पिता ने गर्व से कहा, “मुझे गर्व है कि मेरे बेटे ने वह किया जो एक सैनिक का कर्तव्य होता है।” यह कथन न केवल एक पिता की भावना को दर्शाता है, बल्कि एक सैनिक परिवार की अनुशासन और वीरता की परंपरा को भी सम्मान देता है।


एक मार्मिक मुलाक़ात

1971 के युद्ध में अरुण खेत्रपाल द्वारा नष्ट किए गए पाकिस्तानी टैंक को उस समय ब्रिगेडियर ख्वाजा मुहम्मद नैय्यर कमांड कर रहे थे। वर्षों बाद, एक निजी यात्रा पर भारत आए ब्रिगेडियर नैय्यर की पुणे में अरुण खेत्रपाल के पिता से मुलाकात हुई। जब उन्हें ज्ञात हुआ कि वे उसी वीर सैनिक के पिता से मिल रहे हैं, तो वे भावुक हो गए। उन्होंने कहा, “Your son was a brave man. He died a hero।” यह संवाद न केवल एक शत्रु कमांडर द्वारा दी गई श्रद्धांजलि थी, बल्कि यह भी दर्शाता है कि वीरता सीमाओं से परे एक साझा मूल्य है।


स्मृतियाँ और विरासत

लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल की वीरता को भारतीय सेना आज भी गर्व के साथ याद करती है। उनकी रेजीमेंट 17 पूना हॉर्स, उनकी शहादत को सैन्य गौरव की परंपरा का हिस्सा मानती है। पुणे सहित देश के विभिन्न स्थानों पर उनके नाम पर स्मारक और स्कूल बनाए गए हैं। पुणे में उनकी प्रतिमा स्थापित है, जहाँ हर वर्ष उनकी पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि दी जाती है। NDA और IMA में भी उनका नाम वीरता के प्रतीक के रूप में लिया जाता है।


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