प्रेगनेंसी से पहले करा लें ये टेस्ट, पता चल जाएगा कि होने वाले बच्चे को डाउन सिंड्रोम है या नहीं?
TV9 Bharatvarsh June 21, 2025 12:42 AM

अक्सर गर्भावस्था की छोटी सी लापरवाही के कारण बच्चे का जीवन संकट में पड़ जाता है. लापरवाही के कारण कुछ जरूरी जांच नहीं करवाई जाती हैं. जिसके कारण गर्भस्थ शिशु के विकारों का पता नहीं चल पाता. मां के स्वास्थ्य के कारण गर्भस्थ शिशु में कई तरह के विकार हो सकते हैं. इसके अलावा अनुवांशिक कारणों से भी गर्भस्थ शिशु में कई गंभीर विकार हो जाते हैं. इनका पता गर्भावस्था में ही चल सकता है. इसके लिए कुछ जांच की करवानी जरूरी होती हैं. डॉक्टर हमें बता रहे हैं कि गर्भावस्था में शिशु के स्वास्थ्य के संबंध में पूरी जानकारी प्राप्त करने के लिए कौन की जांच करवनी चाहिएं.

गर्भावस्था किसी भी महिला के लिए जीवन का सबसे महत्वपूर्ण समय होता है. गर्भावस्था के 9 महीने महिला को कई तरह की जटिलताओं का सामना करना पड़ता है. इसी तरह से गर्भस्थ शिशु को भी कई तरह की जटिलताओं का सामना करना पड़ता है. गर्भस्थ शिशु में कई तरह के विकार हो सकते हैं. इन विकारों के कारण बच्चे की जीवन भर कई बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है या फिर बच्चा अविकसित पैदा हो सकता है. क्या होते हैं ये विकार.

विकारों को जानें

सीनियर गायनी डॉ. वाणी पुरी रावत के अनुसार गर्भावस्था के दौरान गर्भस्थ शिशु डाउन सिंड्रोम का शिकार हो सकते हैं. डाउन सिंड्रोम का मुख्य कारण अनुवांशिक होता है. डाउन सिंड्रोम के तीन मुख्य प्रकार हैं. इनमें ट्राइसॉमी 21, ट्रांसलोकेशन और मोजेकिज्म शामिल हैं. डाउन सिंड्रोम के कारण बच्चे कई गंभीर बीमारियों के साथ पैदा होते हैं और उन्हें जीवन भर मेडिकल देखभाल की जरूरत होती है. ऐसे बच्चों को सीखने और समझने में देर होती है. इस विकार का पता बच्चे के जन्म से पहले ही लगाया जा सकता है.

ये जांच जरूर करवाएं

डॉ. वाणी पुरी रावत बताती हैं कि डाउन सिंड्रोम का पता लगाने के लिए अल्ट्रासाउंड और ब्लड टेस्ट करवाए जा सकते हैं. इनमें स्क्रीनिंग टेस्ट करवाया जाना चाहिए. फर्स्ट ट्राइमेस्टर स्क्रीनिंग टेस्ट. इसमें 11 से 13 सप्ताह के बीच NT स्कैन (न्यूकल ट्रांसलूसेंसी स्कैन) और ब्लड टेस्ट शामिल होते हैं। सेकंड ट्राइमेस्टर स्क्रीनिंग टेस्ट 15 से 20 सप्ताह के बीच किया जाता है. कंबाइंड टेस्ट यह फर्स्ट और सेकंड ट्राइमेस्टर टेस्ट का संयोजन है, जो अधिक सटीक परिणाम देता है. इसके साथ ही सेल-फ्री डीएनए (cfDNA) टेस्ट भी करवाया जाना चाहिए. यह एक रक्त परीक्षण है जो गर्भावस्था के 10 सप्ताह से शुरू किया जा सकता है. यह परीक्षण प्लेसेंटा से डीएनए की मात्रा को मापता है और डाउन सिंड्रोम के अतिरिक्त गुणसूत्र 21 की तलाश करता है.

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