भारतीय सिनेमा के स्तंभ: एलवी प्रसाद की अनकही कहानी
Stressbuster Hindi June 22, 2025 07:42 AM
एलवी प्रसाद: भारतीय सिनेमा के अग्रदूत

नई दिल्ली, 21 जून। भारतीय फिल्म उद्योग में बहुभाषी योगदान, तकनीकी उन्नति और मानवीय संवेदनाओं से भरी कहानियों के संदर्भ में एलवी प्रसाद का नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है। वह केवल एक फिल्म निर्माता या निर्देशक नहीं थे, बल्कि भारतीय सिनेमा के एक महत्वपूर्ण स्तंभ थे, जिन्होंने हिंदी, तमिल और तेलुगु भाषाओं की पहली बोलती फिल्मों में अभिनय कर एक नया इतिहास रचा।


एलवी प्रसाद का जन्म 17 जनवरी 1908 को आंध्र प्रदेश के इलुरु तालुका में एक साधारण किसान परिवार में हुआ। बचपन से ही उन्हें रंगमंच और नृत्य में रुचि थी, जिसके कारण उन्होंने पारंपरिक शिक्षा को जल्दी छोड़ दिया और अपने सपनों की ओर बढ़ने लगे।


कम उम्र में ही उन्होंने मुंबई का रुख किया, जहां उन्हें कई संघर्षों का सामना करना पड़ा। लेकिन यही संघर्ष उन्हें सिनेमा की गहराई को समझने का अवसर प्रदान किया।


एलवी प्रसाद का भारतीय सिनेमा में योगदान अद्वितीय और ऐतिहासिक है। उन्होंने भारत की तीन प्रमुख भाषाओं की पहली बोलती फिल्मों में अभिनय किया। 'आलमआरा' (1931) में उनकी छोटी भूमिका ने उन्हें भारतीय सिनेमा के इतिहास में एक विशेष स्थान दिलाया।


इसके अलावा, उन्होंने तमिल की पहली बोलती फिल्म 'कालिदास' और तेलुगु की पहली बोलती फिल्म 'भक्त प्रह्लाद' में भी महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाईं। यह उपलब्धियाँ उन्हें भारत में एक विशिष्ट पहचान देती हैं और यह दर्शाती हैं कि वह सिनेमा के परिवर्तनशील प्रवाह के अग्रदूत थे।


अभिनय के अलावा, एलवी प्रसाद ने फिल्म निर्देशन और निर्माण में भी अपनी अलग पहचान बनाई। उनकी फिल्मों में सामाजिक मुद्दों का संवेदनशील चित्रण किया गया। उन्होंने 'शारदा', 'छोटी बहन', 'बेटी बेटे', 'हमराही', 'मिलन', 'राजा और रंक', 'खिलौना', और 'एक दूजे के लिए' जैसी चर्चित फिल्में बनाई।


1959 में आई फिल्म 'छोटी बहन' ने भाई-बहन के रिश्ते को केंद्र में रखा। इस फिल्म का गीत 'भइया मेरे राखी के बंधन को निभाना' आज भी हर घर में गूंजता है और इसे रक्षा बंधन का सबसे लोकप्रिय गीत माना जाता है।


उनकी प्रतिभा को न केवल दर्शकों ने सराहा, बल्कि देश ने भी उन्हें मान्यता दी। 1982 में उन्हें दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया, जो भारतीय सिनेमा का सर्वोच्च सम्मान है। इसके अलावा, फिल्म 'खिलौना' के लिए उन्हें फिल्मफेयर अवार्ड भी मिला।


एलवी प्रसाद के नाम पर स्थापित एलवी प्रसाद आई इंस्टीट्यूट और प्रसाद आईमैक्स जैसे संस्थान उनकी विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। ये संस्थान तकनीकी रूप से उन्नत फिल्म निर्माण और प्रदर्शनी का कार्य करते हैं, जबकि आई इंस्टीट्यूट नेत्र चिकित्सा के क्षेत्र में सराहनीय कार्य कर रहा है।


एलवी प्रसाद की फिल्में सामाजिक सच्चाइयों का दर्पण थीं। उन्होंने कथानक, संवाद और भावनाओं पर ध्यान केंद्रित करते हुए एक ऐसी सिनेमाई भाषा विकसित की, जो दर्शकों के दिलों को छू जाती थी। उनकी फिल्मों का संगीत, भावनात्मक गहराई और मानवीय रिश्तों की प्रस्तुति आज भी लोगों को प्रभावित करती है।


एलवी प्रसाद ने 22 जून 1994 को इस दुनिया को अलविदा कहा, लेकिन उनकी बनाई फिल्में, उनके संस्थान और उनके योगदान आज भी भारतीय सिनेमा को दिशा दे रहे हैं। वे उन विरले फिल्मकारों में से थे, जिन्होंने तकनीकी नवाचारों के साथ-साथ मानवीय संवेदनाओं को समान महत्व दिया।


© Copyright @2025 LIDEA. All Rights Reserved.