जब मेरी शादी हुई, तो मैं अपने पति के प्यार में पूरी तरह से डूबी हुई थी। हर पल उनके करीब रहना चाहती थी, उनकी बाहों में सुकून मिलता था। हमारी नई-नई शादी थी, और हमारे बीच का प्यार हर लम्हे में झलकता था। लेकिन जैसे ही कुछ हफ्ते बीते, रिश्तेदारों और परिवारवालों की वही जानी-पहचानी बातें सुनने को मिलीं—”अब जल्दी से बच्चा कर लो, दूधो नहाओ पूतो फलो।” यह सुनकर ऐसा लगने लगा मानो शादी सिर्फ इसीलिए हुई है कि हम किसी को वारिस देकर उनकी उम्मीदें पूरी करें।
लेकिन हम दोनों समझदार और खुले विचारों के थे। हमें पता था कि संतान की जिम्मेदारी बहुत बड़ी होती है और इसे सिर्फ समाज के दबाव में नहीं उठाया जा सकता। इसलिए हमने फैसला किया कि पहले कुछ साल अपनी शादीशुदा जिंदगी को एंजॉय करेंगे, फिर बच्चों के बारे में सोचेंगे।
संयुक्त परिवार में रहने की चुनौती…
हम एक संयुक्त परिवार में रहते थे, जहां हर चीज़ की सीमाएं थीं। हमारी प्राइवेसी नाम मात्र की थी। घर के कामों और जिम्मेदारियों के बीच हमें अपने लिए वक्त ही नहीं मिलता था। मैंने कई बार अपने पति से कहा कि हमें अलग रहना चाहिए, ताकि हम अपने रिश्ते को और मजबूत कर सकें। लेकिन मेरे पति इस फैसले के खिलाफ थे। उन्होंने कहा, “परिवार से अलग रहना मेरे लिए सही नहीं होगा।”
इस बात पर हम दोनों के बीच मतभेद बढ़ने लगे। मैं अपनी जिद पर अड़ी थी, और आखिरकार, मेरे पति का ट्रांसफर बेंगलुरु हो गया। यह मेरे लिए किसी आज़ादी से कम नहीं था। अब हमारे पास कोई रोक-टोक नहीं थी, और हम अपने तरीके से जी सकते थे।
फिर आया वो पल जिसने सोच बदल दी…
कुछ महीनों बाद, जब मैंने प्रेग्नेंसी टेस्ट किया, तो रिपोर्ट पॉजिटिव आई। यह खबर अनियोजित थी, और मैं घबरा गई। मैंने अपनी सहेली को बताया, तो वह बहुत खुश हुई। उसने कहा, “गर्भावस्था के दौरान परिवार का साथ बहुत जरूरी होता है। तुम मायके या ससुराल चली जाओ।”
मैंने जब यह बात अपनी सास से साझा की, तो वे बहुत खुश हुईं। उन्होंने कहा, “या तो तुम हमारे पास आ जाओ, या हम तुम्हारे पास आ जाते हैं।” लेकिन मैंने साफ मना कर दिया और कहा कि मैं सबकुछ खुद संभाल लूंगी।
गर्भावस्था के दौरान मुझे शारीरिक और मानसिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा। जब भी मैं अपनी सहेली से बात करती, वह बताती कि कैसे उसका पूरा परिवार उसकी देखभाल कर रहा है। उसकी सास, दादा-दादी, सभी उसे सहारा दे रहे थे। उसकी बातें सुनकर मुझे पहली बार एहसास हुआ कि मैंने अलग रहने का फैसला शायद गलत ले लिया।
डिलीवरी के बाद का कठिन समय…
डिलीवरी के बाद मेरी सास कुछ दिनों के लिए आईं, लेकिन जल्द ही वापस चली गईं। शायद मेरी पहले की कही गई बातों ने उन्हें आहत किया था। अब मैं मायके चली गई, लेकिन वहां भी मन नहीं लग रहा था। फिर एक दिन, मेरे ससुर ने मेरे पति को वीडियो कॉल किया और पोते को देखने की इच्छा जताई। जब उन्होंने बच्चे को देखा, तो उनकी आँखों में आंसू आ गए। उन्होंने कहा, “बेटा, इतना दूर हो कि गोद में भी नहीं ले सकता।”
उस रात मेरे पति बहुत उदास थे। अगली सुबह उन्होंने कहा, “चलो, कुछ दिनों के लिए घर चलते हैं।” मैंने बिना कुछ कहे तुरंत हां कर दी।
जब ससुराल में कदम रखा, तो दिल भर आया…
जब हम ससुराल पहुंचे, तो सब हमें देखकर हैरान रह गए। मेरे ससुर, जो ठीक से चल भी नहीं सकते थे, अपनी छड़ी फेंककर दौड़ते हुए आए और मेरे बेटे को गोद में उठा लिया। मेरी सास ने भी उसे प्यार से सीने से लगा लिया। पूरे घर का माहौल खुशी से भर गया।
अगले कुछ दिन किसी सपने से कम नहीं थे। मैं देख रही थी कि मेरे साथ वही हो रहा था जो मेरी सहेली के साथ हुआ था—हर कोई प्यार और देखभाल से भरा हुआ था। उस समय मुझे अपनी जिद और फैसले पर पछतावा हुआ।
पति का फैसला और मेरी सोच में बदलाव…
जब लौटने का समय आया, तो मैंने अपने पति से पूछा, “कब वापस चलना है?” उन्होंने मेरी ओर देखा और गंभीर स्वर में कहा,
“अब वहां नहीं जाना है। तुम हर चीज़ में दिक्कत निकालती हो, लेकिन असल में तुम्हें खुद को बदलने की जरूरत है। मैं अपने मां-बाप को उनके पोते से दूर रखकर उनका हक नहीं मार सकता, और अपने बच्चे को दादा-दादी के प्यार से वंचित नहीं कर सकता।”
उनकी ये बात सुनकर मेरी आंखें खुल गईं। मैं यही तो चाहती थी—एक ऐसा जीवन जिसमें प्यार और अपनापन हो। मुझे समझ आ गया कि मैंने अपने फैसले के कारण बहुत कुछ खो दिया था।
अलग रहने की आज़ादी बनाम परिवार का प्यार…
आजकल कई लड़कियां चाहती हैं कि शादी के बाद वे अलग रहें, ताकि उन्हें कोई रोक-टोक न हो। लेकिन यकीन मानिए, यह सोचने की जरूरत है कि क्या हम इस फैसले में अपनी खुशियों से ज्यादा खो तो नहीं रहे? जब हमें परिवार की सबसे ज्यादा जरूरत होती है, तब एहसास होता है कि उनका महत्व कितना बड़ा है।
संयुक्त परिवार में रहना आसान नहीं होता, लेकिन जब परिवार का प्यार और अपनापन मिलता है, तो यह छोटी-छोटी परेशानियां कोई मायने नहीं रखतीं। जो रिश्ते हमें बिना शर्त अपनाते हैं, उन्हें खोने से पहले दो बार सोचना जरूरी है।
“शादी सिर्फ दो लोगों का नहीं, दो परिवारों का रिश्ता होती है। अगर रिश्ते को सच्चे प्यार और समझदारी से निभाया जाए, तो यह जीवन की सबसे खूबसूरत यात्रा बन सकती है।”