हिन्दू धर्म में ‘गया’ को ‘मोक्ष की भूमि’ कहा जाता है और पितरों के लिए पिंडदान करने का सबसे पवित्र स्थान भी. यहां तर्पण और पिंडदान करने से पूर्वजों को मुक्ति मिलती है. पौराणिक कथाओं और शास्त्रों में भी इसका जिक्र किया गया है. गया में पिंडदान करने से पितरों के लिए मोक्ष प्राप्ति का मार्ग आसान हो जाता है और वे स्वर्ग लोक को प्राप्त कर लेते हैं. गया में पिंडदान करने से लोगों को पितृ ऋण से मुक्ति मिलती है, क्योंकि भगवान विष्णु स्वयं पितृ देवता के रूप में यहां विराजमान हैं और पिंडदान करने वालों को आशीर्वाद देते हैं. गया में पिंडदान का महत्व पौराणिक कथाओं, गरुड़ पुराण, विष्णु पुराण और वायु पुराण जैसे धर्मग्रंथों में विस्तार से बताया गया है.
पौराणिक कथा के अनुसार, गयासुर नाम का एक शक्तिशाली असुर था, जिसने ब्रह्मा जी से यह वरदान प्राप्त किया था कि जो भी उसे देखेगा, उसके पापों का नाश हो जाएगा और उसे मोक्ष मिलेगा. इस वरदान के कारण लोग सीधे मोक्ष प्राप्त करने लगे, जिससे यमलोक में भीड़ कम हो गई और धार्मिक नियमों का उल्लंघन होने लगा. देवताओं ने भगवान विष्णु से इस समस्या का समाधान करने का अनुरोध किया. भगवान विष्णु ने गयासुर से यज्ञ के लिए अपना शरीर देने का आग्रह किया. गयासुर सहमत हो गया.
गयासुर का शरीर इतना विशाल था कि उसके ऊपर यज्ञ करने के लिए देवताओं को भी परेशानी हुई. अंत में, भगवान विष्णु ने अपने पैर से गयासुर को दबाया, और गयासुर का शरीर पत्थर बनकर फैल गया. यही स्थान गया नगरी कहलाई. गयासुर की भक्ति और त्याग से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उसे यह वरदान दिया कि जो भी व्यक्ति इस स्थान पर अपने पितरों के लिए पिंडदान और श्राद्ध कर्म करेगा, उसके पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होगी और वे सीधे स्वर्ग लोक जाएंगे.
भगवान विष्णु का निवासगया क्षेत्र में भगवान विष्णु स्वयं पितृ देवता के रूप में विराजमान हैं, जिन्हें ‘गदाधर’ के रूप में पूजा जाता है. मान्यता है कि भगवान विष्णु के चरणों के निशान इस भूमि पर हैं, और इन चरणों के दर्शन मात्र से भी पापों का नाश होता है. जब कोई भक्त यहां पिंडदान करता है, तो भगवान विष्णु स्वयं पितरों को मोक्ष प्रदान करते हैं.
पितृ ऋण से मुक्तिगया में पिंडदान करने से व्यक्ति को पितृ ऋण से मुक्ति मिल जाती है. हिंदू धर्म में पितृ ऋण को एक महत्वपूर्ण ऋण माना जाता है, जिसे संतानों को चुकाना होता है. यह माना जाता है कि गया में पिंडदान करने से 108 कुल और 7 पीढ़ियों तक के पूर्वजों का उद्धार हो जाता है.
विशेष पवित्र स्थलरामायण काल में भगवान राम और माता सीता ने स्वयं अपने पिता राजा दशरथ की आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए गया में ही पिंडदान किया था. महाभारत काल में पांडवों ने भी यहां श्राद्ध कर्म किया था, जो इस स्थान के महत्व को और बढ़ाता है. अन्य तीर्थों में पिंडदान के लिए कुछ विशिष्ट समय होते हैं, लेकिन गया में किसी भी काल में पिंडदान किया जा सकता है. यहां कोई भी काल निषिद्ध नहीं है. कुछ मान्यताओं के अनुसार, गया में पिंडदान करने के बाद पितरों को ‘परमगति’ प्राप्त हो जाती है और वे पितृलोक या स्वर्ग को चले जाते हैं, जिससे उन्हें अब आगे वार्षिक श्राद्ध की आवश्यकता नहीं होती है.
विद्वानों और परंपराओं की ये है मान्यताकुछ विद्वानों और परंपराओं का यह भी मानना है कि गया में पिंडदान करने के बाद भी, पितरों के प्रति श्रद्धा और सम्मान व्यक्त करने के लिए वार्षिक श्राद्ध कर्म करना चाहिए. यह उस विशेष पितर के प्रति कृतज्ञता और स्मरण का प्रतीक है, और यह संतान के लिए पुण्य संचय का भी मार्ग है. गरुड़ पुराण भी वार्षिक श्राद्ध के महत्व पर जोर देता है. इसलिए, यह व्यक्तिगत आस्था और पारिवारिक परंपरा पर निर्भर करता है, लेकिन यह निश्चित है कि गया में किया गया पिंडदान पितरों को विशेष रूप से मुक्ति और शांति प्रदान करता है, जो अन्य स्थानों पर किए गए पिंडदान से अलग माना जाता है.
Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है. टीवी9 भारतवर्ष इसकी पुष्टि नहीं करता है.