आगामी विधानसभा चुनाव में सामाजिक न्याय की आड़ में जातिगत समीकरण जीत का कारक बन सकते हैं। इस समीकरण में वोट बैंक के गणित में जो गठबंधन जितना पिछड़ा होगा, सत्ता की कुर्सी उससे उतनी ही दूर होगी। लेकिन इसके अलावा एक और कारक इस चुनाव में कारगर साबित हो सकता है। और वह कारक है सत्ता विरोधी लहर। सत्ताधारी दल को इसका खतरा सता रहा है। बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव में यह खतरा नीतीश कुमार के नेतृत्व में लड़ रहे दलों को झेलना पड़ सकता है। क्या नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री के तौर पर करीब 20 साल के कार्यकाल पर सत्ता विरोधी लहर का खतरा मंडरा रहा है? 'आईओएन भारत' के एक हालिया सर्वे में इस मुद्दे पर बात की गई है।
सर्वेक्षण का आधार 5340 अति पिछड़ी जातियां बनीं
प्रतीकात्मक रामबंधु वत्स ने बिहार के 5340 अति पिछड़ी जाति के वार्ड पार्षदों के वॉयस सैंपल बनाए और उन सभी से सवाल पूछे गए और उनके जीवन के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला गया कि नीतीश कुमार सत्ता विरोधी लहर के शिकार हैं।
क्या नीतीश कुमार की लोकप्रियता में गिरावट आई है?
'आयन भारत' के सपोलोजिस्ट रामबंधु वत्स ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की मौजूदा लोकप्रियता और सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी भावना पर यह सर्वे किया है। सत्ता विरोधी भावना को समझने के लिए 'आयन भारत' ने बेरोजगारी, नौकरशाहों की मनमानी, विकास कार्यों में लापरवाही, भूमि सर्वेक्षण, रिश्वतखोरी, बिगड़ती कानून व्यवस्था, शराबबंदी, बालू खनन और सरकारी टेंडरों में पक्षपात, भूमि विवाद आदि जैसे सवाल उठाए हैं। उनके ताजा सर्वे के मुताबिक बिहार में नीतीश कुमार के खिलाफ सत्ता विरोधी भावना है और उनकी लोकप्रियता में भी गिरावट आई है। राज्य में सरकार के खिलाफ जबरदस्त सत्ता विरोधी भावना है।
नीतीश सरकार के कामकाज से 63 फीसदी लोग नाखुश
सर्वे के मुताबिक 63 फीसदी लोग सरकार के कामकाज से नाखुश हैं जबकि 16 फीसदी लोग सरकार के कामकाज से खुश हैं। साथ ही 21 फीसदी लोगों ने 'पता नहीं' का विकल्प चुना है।
सत्ता विरोधी लहर के कारण
सेपोलॉजिस्ट राम बंधु वत्स ने भी एनबीटी से सत्ता विरोधी लहर के कारणों पर खुलकर बात की। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की बिगड़ती सेहत के कारण विपक्षी दल सरकार पर हमला कर रहे हैं। स्वास्थ्य कारणों से नीतीश कुमार न तो सरकार चला पा रहे हैं और न ही अब जेडीयू की कमान उनके हाथ में है। जेडीयू के सभी फैसले नीतीश कुमार की सहमति के बिना दूसरे नेता ले रहे हैं। जमीन विवाद के कारण सरकार के प्रति सत्ता विरोधी रुख है। राज्य में जमीन के मामलों में भ्रष्टाचार, धड़ल्ले से फर्जी दस्तावेज तैयार करने और जमीन विवाद के कारण हत्या के मामलों के कारण लोगों में सरकार के प्रति गुस्सा है।
पिछड़ों में सीएम फेस के तौर पर नीतीश?
इस सर्वे के अनुसार, 34 फीसदी लोगों ने माना है कि वे लोकसभा चुनाव की तरह इस बार भी विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार को वोट देंगे। 19 फीसदी लोगों ने वोट देने से इनकार किया है। इसके साथ ही 47 फीसदी लोगों ने 'पता नहीं' का विकल्प चुना है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि 47 फीसदी लोगों के बीच नीतीश कुमार की लोकप्रियता में उतार-चढ़ाव हो रहा है। 19 फीसदी लोगों के बीच उनकी लोकप्रियता खत्म हो गई है।
छत्तीसगढ़ विधानसभा में सर्वे सच साबित हुआ
मनोवैज्ञानिक राम बंधु वत्स ने इससे पहले छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के दौरान एक सर्वे किया था। उस समय यह सर्वे काफी चर्चा में रहा था। छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव पर पहला सर्वे साल 2018 में आया था। इस सर्वे के जरिए यह आकलन किया गया था कि धान खरीद में पैक्स में भ्रष्टाचार के कारण सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर है। और इसी मुद्दे पर भाजपा की रमन सरकार को हार का सामना करना पड़ा था। उसके बाद 2023 के विधानसभा चुनाव में आदिवासी वोटों में बदलाव, सतनामी समुदाय का वोटिंग पैटर्न भाजपा के पक्ष में रहने का अनुमान लगाया गया और भाजपा ने यह चुनाव जीत लिया।