बिहार समाचार: बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक गतिविधियाँ तेज हो गई हैं। इंडिया गठबंधन ने चुनाव से पहले मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण के निर्णय पर कड़ी आपत्ति जताई है। उनका आरोप है कि चुनाव आयोग की इस कार्रवाई के पीछे किसी विशेष इरादे से करोड़ों मतदाताओं को वोट देने से वंचित करने की योजना है।
कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल, समाजवादी पार्टी, सीपीआई, और सीपीआई (एमएल) सहित 11 विपक्षी दलों के प्रतिनिधियों ने बुधवार को चुनाव आयोग के अधिकारियों से मुलाकात की। इस बैठक में उन्होंने बताया कि मतदाता सत्यापन के लिए मांगे गए 11 दस्तावेज अधिकांश लोगों के पास नहीं हैं, जिससे करोड़ों लोग मतदाता सूची से बाहर हो सकते हैं। इससे बिहार के गरीब और अन्य राज्यों में काम करने वाले लोगों का वोट डालने का अधिकार संकट में है।
कांग्रेस नेता डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि प्रतिनिधिमंडल ने चुनाव आयोग को बताया कि बिहार में 2003 में विशेष गहन पुनरीक्षण किया गया था, जबकि अगला लोकसभा चुनाव एक साल बाद और विधानसभा चुनाव दो साल बाद होने वाले थे। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या 2003 के बाद से बिहार में हुए सभी चुनाव गलत या अवैध थे?
सिंघवी ने कहा कि बिहार, जो कि भारत के दूसरे सबसे बड़े मतदाता राज्य है, में यदि विशेष गहन पुनरीक्षण करना था तो इसकी घोषणा चुनाव से ठीक पहले जून में क्यों की गई? इसे चुनाव के बाद किया जा सकता था। बिहार में लगभग 8 करोड़ मतदाता हैं और इतने कम समय में सभी का सत्यापन करना अत्यंत कठिन होगा।
उन्होंने यह भी कहा कि पिछले एक दशक से आधार कार्ड हर काम के लिए मांगा जा रहा था, लेकिन अब कहा जा रहा है कि यदि जन्म प्रमाण पत्र नहीं होगा तो मतदाता नहीं माना जाएगा। जिन लोगों का जन्म 1987-2012 के बीच हुआ है, उनके माता-पिता के जन्म का भी प्रमाण होना चाहिए। ऐसे में गरीब लोगों को इन दस्तावेजों को जुटाने में काफी कठिनाई होगी।
डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने चुनाव आयोग के नए निर्देश पर भी आपत्ति जताई, जिसमें नेताओं की संख्या सीमित करने का प्रावधान है। उन्होंने बताया कि प्रत्येक पार्टी के अध्यक्ष सहित केवल दो प्रतिनिधियों को ही अनुमति दी जा सकती है, जिससे कई वरिष्ठ नेता बाहर इंतजार करने को मजबूर हुए।