फैटी लिवर तब होता है जब लिवर की कोशिकाओं में ज़्यादा वसा यानी फैट जमा हो जाता है.
लिवर में थोड़ी मात्रा में फैट मौजूद होता है, लेकिन अगर ये फैट लिवर के कुल वज़न का दस फ़ीसदी से अधिक हो जाए तो इसे फैटी लिवर माना जाता है और इससे गंभीर शारीरिक दिक्कतें पैदा हो सकती हैं.
फैटी लिवर से हमेशा नुक़सान नहीं होता, लेकिन कुछ मामलों में यह अतिरिक्त फैट लिवर में सूजन पैदा कर सकता है. इस स्थिति को स्टिएटोहेपेटाइटिस कहा जाता है, जो वास्तव में लिवर को नुक़सान पहुंचाता है.
कभी-कभी यह सूजन अधिक शराब पीने से हो जाती है. इसे अल्कोहॉलिक स्टिएटोहेपेटाइटिस कहा जाता है. लेकिन यदि शराब इसकी वजह नहीं है तो इसे नॉन-अल्कोहॉलिक स्टिएटोहेपेटाइटिस कहा जाता है.
जब लिवर में सूजन लंबे समय तक बनी रहती है तो ये सख़्त हो जाता है और इसमें जख़्म हो जाते हैं.
इस गंभीर स्थिति को सिरोसिस कहा जाता है, जिससे लिवर काम करना बंद कर सकता है.
फैटी लिवर का लेवलग्रेड 1 यानी हल्का फैटी लिवर
इसमें लिवर की लगभग 33 फ़ीसदी कोशिकाओं में फैट जमा होता है. आमतौर पर इसके कोई लक्षण दिखाई नहीं देते. जीवनशैली में बदलाव, एक्सरसाइज और सही तरीके से खान-पान से इसे ठीक किया जा सकता है. ये फ़ैटी लिवर का शुरुआती और सबसे हल्की स्टेज है.
ग्रेड 2 यानी मॉडरेट फैटी लिवर
इसमें लिवर की लगभग 34 से 66 फ़ीसदी कोशिकाओं में फैट जमा होता है. थकान, पेट में भारीपन या हल्का दर्द इसके लक्षण हो सकते हैं. अगर जीवनशैली में बदलाव नहीं किया गया तो ये स्थिति गंभीर लिवर रोग में बदल सकती है.
ग्रेड 3 यानी गंभीर फैटी लिवर
यह फैटी लिवर का सबसे एडवांस और गंभीर चरण है. इसमें लिवर की 66 फ़ीसदी से अधिक कोशिकाओं में फैट जमा हो जाता है. इस स्थिति में सूजन (स्टिएटोहेपेटाइटिस), घाव या जख़्म (फाइब्रोसिस) और सिरोसिस जैसे जटिल लक्षण दिख सकते हैं.
दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में इंस्टीट्यूट ऑफ़ लिवर, गैस्ट्रोएंटेरोलॉजी और पैन्क्रिएटिको बिलियरी साइंसेज के वाइस चेयरपर्सन डॉ. पीयूष रंजन ने बीबीसी से कहा, ''मोटे तौर पर देखा जाए तो दो तरह की फैटी लिवर डिजीज होती हैं. एक, अल्कोहल यानी शराब पीने की वजह से होती है. दूसरी कैटेगरी की वजह अल्कोहल नहीं होता और इसे नॉन अल्कोहॉलिक फैटी लिवर डिजीज कहते हैं.''
वो कहते हैं कि मोटापा, डाइबिटीज़, थायराइड, कोलेस्ट्रॉल बढ़ने की वजह फैटी लिवर हो सकता है.
डॉ. रंजन के मुताबिक़ जब लिवर में ज्यादा फैट जमा हो जाता है तो इंसुलिन के प्रति संवेदनशीलता कम हो जाती है. ऐसे में टाइप-2 डाइबिटीज़ का ख़तरा बढ़ जाता है. क्योंकि ऐसे लोगों का लिवर इंसुलिन के संकेतों को ठीक से प्रोसेस नहीं कर पाता है.
डॉक्टर रंजन कहते हैं कि फैटी लिवर डिजीज आज की तारीख़ में सिरोसिस का सबसे बड़ा कारण है. उनके मुताबिक़ लगभग 35 फ़ीसदी लोगों को फैटी लिवर होता है. इनमें से 25 फ़ीसदी लोगों में इसके बढ़ने का ख़तरा होता है.
फैटी लिवर के ख़तरों के कैसे जानेंडॉ. रंजन कहते हैं कि लिवर की कोशिकाओं में फैट के सामान्य स्तर से सिरोसिस तक पहुंचने में लंबा समय यानी पांच से दस साल तक लग सकते हैं.
लिवर सिरोसिस के ख़तरे को सिग्निफिकेंट फाइब्रोसिस कहते हैं. इसे फाइब्रोस्कैन से पहचाना जाता है. इलेस्टोग्राफ़ी से भी इसकी पहचान होती है. अगर लिवर में कड़ापन ज़्यादा है तो इसे दवा से ठीक करना पड़ता है. जीवनशैली ठीक कर और एक्सरसाइज से भी इसे नियंत्रित करने की कोशिश की जाती है.
दवा के अलावा मोटापा, डाइबिटीज़ और कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित कर भी फैटी लिवर डिजीज को नियंत्रित करने की कोशिश होती है. एंटी ओबिसिटी दवाइयां फैट को कम करती हैं.
क्या न खाएंविशेषज्ञों के मुताबिक़ क्या खाना चाहिए और क्या नहीं, इस पर गौर करना चाहिए.
नियमित एक्सरसाइज ख़ासकर एरोबिक एक्सरसाइज, फैटी लिवर रोग को नियंत्रित करने में मददगार साबित हो सकते हैं.
विशेषज्ञों के मुताबिक सप्ताह में कम से कम 150 मिनट तक मध्यम तीव्रता वाली एरोबिक एक्टिविटी ज़रूरी है. इनमें तेज़ चाल, साइकिल चलाना और तैराकी शामिल है.
वेटलिफ्टिंग भी फ़ायदेमंद हो सकती है. इन्हें सप्ताह में कम से कम दो दिन शामिल किया जा सकता है.
विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में फैटी लिवर की बीमारी काफी ज्यादा बढ़ रही है. गलत खान-पान, जीवनशैली और एक्सरसाइज न करने से लोग इसके शिकार हो रहे हैं.
मोटापा, डायबिटीज और कोलेस्ट्रॉल पर कंट्रोल न होने से इस बीमारी को न्योता मिल सकता है, इसलिए इससे सावधान रहना ज़रूरी है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित