बेटियों विरासत कानून – भारत में बेटी होना आज भी कई जगहों पर एक चुनौती माना जाता है, खासकर जब बात आती है संपत्ति और पैतृक जमीन की। “लड़की तो पराया धन होती है”, “शादी के बाद मायके से क्या लेना-देना”, जैसे पुराने और दकियानूसी विचार आज भी गांव-कस्बों में गूंजते हैं। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसा फैसला सुनाया है जिसने बेटियों को संपत्ति में बराबरी का अधिकार दिलाने का रास्ता साफ कर दिया है। अगर आप भी बेटी हैं या किसी बेटी के भविष्य की चिंता करते हैं, तो यह खबर आपके लिए बेहद अहम है।
सबसे पहले बात करते हैं उस कानून की जिसने इस बदलाव की नींव रखी। साल 2005 में सरकार ने हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (Hindu Succession Act) में बड़ा बदलाव किया। इस संशोधन के बाद बेटियों को भी वही अधिकार दिए गए जो बेटों को मिलते थे। यानी अब बेटी चाहे शादीशुदा हो या कुंवारी, उसे अपने पिता की पैतृक संपत्ति में बराबरी का हिस्सा मिलेगा।
पहले यह हक सिर्फ बेटों के पास होता था, लेकिन 2005 के इस संशोधन के बाद बेटियों को भी पैतृक संपत्ति में कानूनन बराबरी का हक मिल गया।
सबसे बड़ा विवाद हमेशा खेती की जमीन को लेकर होता रहा है। बहुत से राज्यों में आज भी यह धारणा बनी हुई थी कि बेटी को खेत की जमीन नहीं दी जानी चाहिए। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने 2020 और 2024 के फैसलों में साफ कहा कि बेटी को खेती की जमीन में भी बेटों जितना ही हक मिलेगा।
अब न तो भाई बहाने बना सकते हैं और न ही पंचायत या स्थानीय पटवारी इस अधिकार को रोक सकते हैं। अदालत ने यह भी कहा कि राज्य सरकारें इस भेदभाव को रोकने के लिए कदम उठाएं।
बहुत से लोग यह नहीं समझते कि पैतृक संपत्ति और स्व-अर्जित संपत्ति में फर्क क्या है। आइए थोड़ा आसान भाषा में समझते हैं:
2020 में Vineeta Sharma बनाम Rakesh Sharma केस में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि बेटी को पैतृक संपत्ति में जन्म से ही अधिकार मिलेगा, भले ही उसके पिता की मृत्यु 2005 से पहले हुई हो या बाद में। इससे पहले ये एक भ्रम की स्थिति थी कि 2005 से पहले पिता की मृत्यु होने पर बेटी को हक नहीं मिलेगा, लेकिन इस फैसले ने इसे भी खत्म कर दिया।
अब सवाल ये है कि अगर आपके पिताजी की मृत्यु हो चुकी है और आपने अपनी पैतृक जमीन का हक नहीं लिया है, तो आप क्या कर सकती हैं?
कुछ स्थितियों में बेटी को हक नहीं मिलता, जैसे:
कानून बदलने से सब कुछ नहीं बदल जाता। ग्रामीण भारत में आज भी बेटियों को उनके हक से वंचित किया जा रहा है। 2020 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश में सिर्फ 16% महिलाओं के नाम पर ही जमीन है। यानी कानून तो है, लेकिन इसका पालन कम हो रहा है।
बेटियों को खुद ही जागरूक होना होगा, परिवार से सवाल करना होगा और अगर जरूरत हो तो कानूनी रास्ता अपनाना होगा।
आज का भारत बदल रहा है। बेटियां डॉक्टर, इंजीनियर, ऑफिसर बनने के साथ-साथ अब जमीन-जायदाद की मालिक भी बन सकती हैं। सुप्रीम कोर्ट का फैसला इसी बदलाव की मजबूत कड़ी है। बस जरूरत है बेटियों के जागरूक होने और अपने हक की लड़ाई खुद लड़ने की।
अगर आप बेटी हैं या आपके परिवार में कोई बेटी है, तो इस जानकारी को उन तक जरूर पहुँचाएं। क्योंकि हक मांगने की नहीं, लेने की चीज़ होती है – और अब कानून भी बेटियों के साथ है।