क्या संविधान से हटाए जा सकते हैं 'धर्मनिरपेक्षता' और 'समाजवाद' जैसे शब्द? क्या हैं संविधान संशोधन के नियम
Webdunia Hindi July 04, 2025 01:42 AM


Secular And Socialist Words In Indian Constitution Controversy: हाल ही में RSS नेता दत्तात्रेय होसबाळे के एक बयान ने देश में एक नई बहस छेड़ दी है। यह बहस है भारतीय संविधान से 'धर्मनिरपेक्षता' और 'समाजवाद' जैसे शब्दों को हटाने की संभावना पर। यह मुद्दा केवल राजनीतिक गलियारों तक सीमित नहीं है, बल्कि आम जनता में भी इसको लेकर चर्चाएं तेज हो गई हैं। ऐसे में यह समझना महत्वपूर्ण है कि क्या ये शब्द संविधान से हटाए जा सकते हैं और इसके लिए संविधान संशोधन के क्या नियम हैं।

कब जुड़े ' धर्मनिरपेक्षता ' और ' समाजवाद ' संविधान में ?
'धर्मनिरपेक्षता' और 'समाजवाद' जैसे शब्द मूल संविधान का हिस्सा नहीं थे। इन्हें 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा भारतीय संविधान की प्रस्तावना में जोड़ा गया था। यह संशोधन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा आपातकाल के दौरान किया गया था।
धर्मनिरपेक्षता ( Secularism): इस शब्द को जोड़ने का उद्देश्य भारत को एक ऐसे राष्ट्र के रूप में स्थापित करना था जहाँ राज्य का कोई अपना धर्म नहीं होगा और वह सभी धर्मों के प्रति समान भाव रखेगा। इसका अर्थ है कि देश में किसी भी धर्म को विशेष तरजीह नहीं दी जाएगी और सभी नागरिकों को अपने धर्म का पालन करने, प्रचार करने और मानने की स्वतंत्रता होगी।
समाजवाद ( Socialism): इस शब्द को जोड़ने का उद्देश्य भारत को एक समाजवादी गणराज्य बनाना था, जहाँ सामाजिक और आर्थिक असमानताओं को कम करने पर जोर दिया जाएगा। इसका लक्ष्य समाज के कमजोर वर्गों का उत्थान करना और धन के समान वितरण को सुनिश्चित करना था।

क्या इन्हें हटाना है संभव ? जानिए संविधान संशोधन के नियम
संविधान से इन शब्दों को हटाना सैद्धांतिक रूप से संभव है, लेकिन यह एक जटिल प्रक्रिया है और इसके लिए भारतीय संविधान के संशोधन नियमों का पालन करना होगा।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 368 के तहत संविधान संशोधन की प्रक्रिया दी गई है। संविधान के कुछ प्रावधानों को बदलने के लिए संसद के दोनों सदनों में विशेष बहुमत (प्रत्येक सदन के कुल सदस्यों का बहुमत और उपस्थित व मतदान करने वाले सदस्यों का दो-तिहाई बहुमत) की आवश्यकता होती है।

हालांकि, 'धर्मनिरपेक्षता' और 'समाजवाद' जैसे शब्द संविधान की प्रस्तावना का हिस्सा हैं। सुप्रीम कोर्ट ने केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973) मामले में अपने ऐतिहासिक फैसले में संविधान के मूल ढांचे (Basic Structure Doctrine) का सिद्धांत प्रतिपादित किया था। इस सिद्धांत के अनुसार, संसद संविधान के किसी भी हिस्से में संशोधन कर सकती है, लेकिन वह संविधान के मूल ढांचे को नहीं बदल सकती। सुप्रीम कोर्ट ने विभिन्न निर्णयों में 'धर्मनिरपेक्षता' और 'समाजवाद' को संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा माना है। इसका मतलब है कि संसद इन शब्दों को हटाकर संविधान के मूल स्वरूप को नहीं बदल सकती।

क्या इन्हें हटाना है संभव ? जानिए संविधान संशोधन के नियम
संविधान में किसी भी शब्द या प्रावधान को हटाना या जोड़ना एक जटिल प्रक्रिया है, जिसे संविधान संशोधन कहा जाता है। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 368 संविधान में संशोधन की शक्ति और प्रक्रिया का प्रावधान करता है।

संविधान संशोधन की प्रक्रिया मुख्यतः तीन प्रकार की होती है:
1. संसद के साधारण बहुमत से संशोधन: कुछ प्रावधानों को संसद के दोनों सदनों में उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के साधारण बहुमत से संशोधित किया जा सकता है। हालांकि, प्रस्तावना या उसके मूल तत्वों में इस विधि से संशोधन नहीं होता।

2. संसद के विशेष बहुमत से संशोधन: संविधान के अधिकांश प्रावधानों में संशोधन के लिए संसद के प्रत्येक सदन में कुल सदस्यों के बहुमत (50% से अधिक) और उपस्थित तथा मतदान करने वाले सदस्यों के कम से कम दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती है। 'धर्मनिरपेक्षता' और 'समाजवाद' जैसे शब्द इसी श्रेणी में आते हैं। यदि इन्हें हटाना है, तो इस प्रक्रिया का पालन करना होगा।

3. संसद के विशेष बहुमत और राज्यों के अनुसमर्थन से संशोधन: कुछ संघीय ढांचे से संबंधित प्रावधानों में संशोधन के लिए संसद के विशेष बहुमत के साथ-साथ कम से कम आधे राज्यों के विधानमंडलों के साधारण बहुमत से अनुसमर्थन की भी आवश्यकता होती है।

तो, क्या 'धर्मनिरपेक्षता' और 'समाजवाद' हटाना संभव है? सैद्धांतिक रूप से, हाँ, इन्हें हटाया जा सकता है, लेकिन यह एक अत्यंत कठिन प्रक्रिया होगी। इसके लिए संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होगी। इसके अलावा, सर्वोच्च न्यायालय ने केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973) मामले में 'मूल संरचना सिद्धांत' (Basic Structure Doctrine) प्रतिपादित किया था। इस सिद्धांत के अनुसार, संसद संविधान के किसी भी हिस्से में संशोधन कर सकती है, लेकिन वह संविधान की 'मूल संरचना' को नहीं बदल सकती। 'धर्मनिरपेक्षता' को अक्सर संविधान की 'मूल संरचना' का हिस्सा माना जाता है। ऐसे में, इन शब्दों को हटाने का कोई भी प्रयास कानूनी चुनौती का सामना कर सकता है और अंततः सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इसे रद्द किया जा सकता है, यदि यह माना जाता है कि यह संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन करता है।




© Copyright @2025 LIDEA. All Rights Reserved.