टमाटर की खेती को ग्राफ्ट करना: झारखंड के हजारीबाग जिले के नगड़ी गांव के किसान अब पारंपरिक खेती की जगह ग्राफ्टिंग तकनीक से टमाटर की खेती कर रहे हैं, जिससे उन्हें बरसात के मौसम में भी नुकसान नहीं हो रहा. यह नई कृषि पद्धति अब पूरे क्षेत्र में किसानों की उम्मीदों का संबल बन चुकी है.
पहले जब भारी बारिश होती थी, तो टमाटर के पौधे सड़ जाते थे और किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ता था. लेकिन अब ग्राफ्टिंग तकनीक के इस्तेमाल से किसान बरसात में भी 90% पौधे सुरक्षित रख पा रहे हैं.
इस पद्धति में टमाटर के तने को बैंगन की जड़ से जोड़ दिया जाता है, क्योंकि बैंगन की जड़ अधिक पानी सहन कर सकती है. इससे टमाटर का पौधा जलभराव में भी खराब नहीं होता और 6 से 9 महीने तक उत्पादन देता है.
चुरचू नारी ऊर्जा फार्मर्स प्रोड्यूसर कम्पनी लिमिटेड (FPO) इस बदलाव में अहम भूमिका निभा रही है.
एक स्थानीय किसान ने पॉलीहाउस में ग्राफ्टिंग कर पौधे तैयार करने का काम शुरू किया है. अब तक 60,000 ग्राफ्टेड पौधे तैयार हो चुके हैं, जिनका इस्तेमाल करीब 30 एकड़ जमीन पर टमाटर की खेती के लिए किया जाएगा.
ग्राफ्टेड पौधों की कीमत सामान्य पौधों से थोड़ी ज्यादा होती है, लेकिन:
नगड़ी गांव के कई किसानों ने बताया कि पहले बरसात में सारी फसल नष्ट हो जाती थी, लेकिन अब ग्राफ्टिंग की वजह से न तो नुकसान होता है और न ही पैदावार घटती है.
एक स्वंयसेवी संस्था किसानों को तकनीकी सहयोग दे रही है ताकि वे इस नई विधि को समझें और अपनाएं. इससे किसानों में आत्मनिर्भरता भी बढ़ रही है और उन्हें अधुनिक खेती की दिशा में आगे बढ़ने का अवसर मिल रहा है.
यह क्षेत्र टमाटर उत्पादन में भारत का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक क्षेत्र है. ऐसे में यहां उन्नत तकनीक का प्रयोग किसानों की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने में बड़ी भूमिका निभा सकता है.
ग्राफ्टिंग तकनीक अब केवल हजारीबाग तक सीमित नहीं रहेगी. यह नवाचार अन्य राज्यों के किसानों के लिए भी एक प्रेरणा बनेगा. सरकार और कृषि विभाग यदि इस तकनीक को व्यापक रूप से बढ़ावा दें तो यह पूरे देश में कृषि क्षेत्र को नई दिशा दे सकता है.