भारत और अमेरिका के बीच रक्षा सौदा: भारत और अमेरिका एक महत्वपूर्ण रक्षा समझौते की ओर बढ़ रहे हैं। इस समझौते के तहत भारतीय वायुसेना के लिए 97 एलसीए मार्क-1ए तेजस लड़ाकू विमानों को शक्ति प्रदान करने के लिए 113 इंजन खरीदे जाएंगे। इस सौदे की अनुमानित लागत 1 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक है। यह ऑर्डर उन 99 जीई-404 इंजनों के अतिरिक्त होगा, जिनकी आपूर्ति पहले से 83 तेजस विमानों के लिए तय की जा चुकी है।
यह घटनाक्रम उस समय सामने आया है जब अमेरिकी राष्ट्रपति ने भारत पर रूस के साथ व्यापार के लिए 50% टैरिफ लगाने का निर्णय लिया है। इससे भारत और अमेरिका के आर्थिक संबंधों में तनाव उत्पन्न हुआ है। इसके अलावा, चीन के साथ तनाव और वैश्विक भू-राजनीतिक परिस्थितियों के बीच यह रक्षा सौदा भारत के लिए रणनीतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है।
रक्षा सूत्रों के अनुसार, 113 इंजनों के सौदे पर बातचीत लगभग समाप्त हो चुकी है और इस पर सितंबर तक हस्ताक्षर होने की संभावना है। यह सौदा हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) के लिए इंजन आपूर्ति की निरंतरता सुनिश्चित करेगा, जिससे स्वदेशी लड़ाकू विमानों के उत्पादन में कोई रुकावट नहीं आएगी। एचएएल ने 83 तेजस विमानों की पहली खेप 2029-30 तक और शेष 97 विमानों की डिलीवरी 2033-34 तक पूरी करने का लक्ष्य रखा है। जीई कंपनी प्रति माह दो इंजन की आपूर्ति करेगी, जिससे उत्पादन समय पर आगे बढ़ सके।
इस बीच, एचएएल जीई कंपनी के साथ एक और महत्वपूर्ण समझौते की तैयारी कर रहा है। लगभग 1.5 अरब अमेरिकी डॉलर के इस सौदे में 200 जीई-414 इंजनों की खरीद शामिल होगी। इन इंजनों का उपयोग एलसीए मार्क-2 और भविष्य के एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एएमसीए) कार्यक्रम में किया जाएगा। इस समझौते के तहत 80% तकनीक हस्तांतरण का प्रावधान भी होगा, जो भारत के रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगा।
जीई-414 इंजन का उपयोग 162 एलसीए मार्क-2 विमानों और एएमसीए के 10 प्रोटोटाइप में किया जाएगा। ये दोनों विमान भारतीय वायुसेना की दीर्घकालिक रणनीति का हिस्सा हैं, जिनका उद्देश्य पुराने मिग-21 बेड़े को बदलना है। मिग-21 विमान अब अपने अंतिम चरण में सेवानिवृत्त हो रहे हैं, ऐसे में तेजस और एएमसीए कार्यक्रम भारतीय वायुसेना की ताकत में नई जान फूंकेंगे।
भारत इस समय फ्रांसीसी कंपनी सफ्रान के साथ मिलकर स्वदेशी इंजन निर्माण पर भी काम कर रहा है। यदि यह परियोजना सफल होती है, तो भारत न केवल अपने लिए बल्कि अन्य देशों के लिए भी लड़ाकू विमान इंजन निर्माण करने में सक्षम हो जाएगा। इससे भारत रक्षा क्षेत्र में आयात-निर्भरता घटाकर वैश्विक स्तर पर एक निर्यातक के रूप में भी उभर सकता है।