सचिन तेंदुलकर: 2011 के विश्व कप में भारत की ऐतिहासिक जीत के बाद, सचिन तेंदुलकर ने फाइनल में एक महत्वपूर्ण निर्णय के पीछे की वजह का खुलासा किया है। बल्लेबाजी क्रम में बदलाव, जिसमें एमएस धोनी को युवराज सिंह से पहले भेजा गया, ने मैच का परिणाम बदल दिया।
प्रशंसक इस निर्णय के बारे में लंबे समय से अटकलें लगा रहे थे, और अब मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर ने इस पर अपनी बात रखी है। उनके स्पष्टीकरण ने उस रणनीतिक सोच को उजागर किया है जिसके कारण भारत को यह अविस्मरणीय जीत मिली। यह खुलासा मुंबई की उस जादुई रात की यादों को ताजा कर देता है।
2011 विश्व कप की जीत के एक दशक बाद, सचिन तेंदुलकर ने टूर्नामेंट के सबसे चर्चित फैसलों में से एक के बारे में खुलकर बात की है। श्रीलंका के खिलाफ फाइनल में युवराज सिंह से पहले एमएस धोनी को भेजने का निर्णय सभी को चौंका दिया था, लेकिन यह एक मास्टरस्ट्रोक साबित हुआ।
धोनी की नाबाद 91 रनों की पारी और प्रसिद्ध विजयी छक्का क्रिकेट की कहानियों में दर्ज है, लेकिन प्रशंसक हमेशा सोचते रहे हैं कि बल्लेबाजी क्रम में बदलाव का विचार किसका था। अब, सचिन तेंदुलकर ने इस कहानी की पुष्टि की है और उस साहसिक कदम के पीछे की रणनीतिक सोच का खुलासा किया है।
हाल ही में एक बातचीत में, सचिन तेंदुलकर से उस निर्णय के बारे में पूछा गया जिसने 2011 के फाइनल का रुख बदल दिया। सवाल सीधा था- "क्या यह सच है कि युवराज से पहले धोनी को तरजीह देने का विचार आपका था?" सचिन ने इस सवाल का जवाब देते हुए कहा, "इसके दो कारण थे। पहला, बाएं और दाएं संयोजन से दोनों ऑफ स्पिनर परेशान हो सकते थे। दूसरा, मुथैया मुरलीधरन चेन्नई सुपर किंग्स के लिए खेल चुके थे, और एमएस ने उन्हें तीन सीज़न नेट्स पर खिलाया था।"
यह खुलासा इस कदम के पीछे की रणनीतिक कुशलता को दर्शाता है। उस समय, श्रीलंका के पास दो ऑफ स्पिनर थे—मुथैया मुरलीधरन सबसे बड़ा खतरा थे। बाएं-दाएं बल्लेबाजी संयोजन से लगातार क्षेत्ररक्षण बदलना पड़ता और गेंदबाजों की लय बिगड़ती। इसके अलावा, चेन्नई सुपर किंग्स के अभ्यास सत्रों से धोनी की मुरली से अच्छी जान-पहचान ने भारत को एक महत्वपूर्ण बढ़त दिलाई।
इस फैसले के समय, युवराज सिंह शानदार फॉर्म में थे और टूर्नामेंट में मैच जिताऊ भूमिका निभा चुके थे। धोनी को पहले बल्लेबाजी के लिए भेजना जोखिम भरा था, लेकिन यह बिलकुल सही साबित हुआ। धोनी ने भारत के मुश्किल हालात में बल्लेबाजी की और दबाव को झेलते हुए पलटवार किया। 79 गेंदों में नाबाद 91 रनों की पारी, जिसमें एक यादगार छक्का भी शामिल था, ने भारत को 28 साल बाद दूसरी विश्व कप जीत दिलाई।
सचिन के स्पष्टीकरण से पता चलता है कि यह फैसला न केवल सहज था, बल्कि मजबूत क्रिकेट तर्क पर आधारित था। रणनीतिक मुकाबलों और मुरलीधरन के खिलाफ धोनी के व्यक्तिगत अनुभव का संयोजन खेल को बदलने वाला साबित हुआ। अब प्रशंसकों को भारतीय क्रिकेट इतिहास की सबसे चर्चित रणनीतियों में से एक पर स्पष्टता मिल गई है।
तेंदुलकर का यह खुलासा वायरल हो रहा है, और यह एक बार फिर इस बात पर प्रकाश डालता है कि कैसे टीम वर्क, योजना और चतुर सोच ने मुंबई की उस अविस्मरणीय रात में भारत को गौरवान्वित किया। 2011 का फाइनल न केवल धोनी के पराक्रम के लिए, बल्कि पर्दे के पीछे के प्रतिभाशाली दिमागों के लिए भी हमेशा याद रखा जाएगा।