कोटा में अनोखी पहल! टाइगर रिजर्व के लिए 327 परिवारों ने खुद ही छोड़ा गांव, बाघों को मिलेगगा नया आशियाना
aapkarajasthan September 17, 2025 12:42 PM

राजस्थान के शहर कोटा के लोगों ने वन्यजीवों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखाई है। एक ओर जहाँ लोग अपनी ज़मीन का दो गज़ हिस्सा भी किसी को नहीं देना चाहते, वहीं दूसरी ओर कोटा के 327 परिवारों ने अपनी ज़मीन वन्यजीवों के लिए दान कर दी है, ताकि उस पर चरागाह विकसित किया जा सके और जानवर वहाँ रह सकें। सोचने वाली बात है कि इन परिवारों के पूर्वज वर्षों से यहाँ रहते आए हैं, इसके बावजूद यहाँ रहने वाले लोगों ने अपने घर, खेत-खलिहान छोड़कर वहाँ से दूर जाने का फ़ैसला किया है।

मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा टाइगर रिज़र्व को लेकर सजग

इन परिवारों द्वारा छोड़े गए खेत और घर अब बड़े चरागाह बन गए हैं। घने पेड़ों की वजह से पूरा इलाका जंगल में तब्दील हो गया है। इससे बाघों की आबादी बढ़ाने के प्रयासों में मदद मिलेगी। आपको बता दें कि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही नहीं, बल्कि राजस्थान के मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा भी टाइगर रिज़र्व को लेकर काफ़ी सजग हैं। इसी दिशा में एक और कदम बढ़ाते हुए इस इलाके को चरागाह में बदलने का फ़ैसला किया गया है।

327 परिवारों ने छोड़ा अपना घर

बता दें कि इसे टाइगर रिज़र्व बनाने की अधिसूचना 2013 में जारी हुई थी, जिसके बाद 3 अप्रैल 2018 को यहाँ बाघ भी छोड़े गए। वहीं, सरकार ने इन लोगों को वन भूमि छोड़कर दूसरी जगह बसने के लिए बुनियादी सुविधाएँ मुहैया कराई हैं। इस क्षेत्र में 54 गाँवों के कुल 1955 परिवार रहते थे, जिनमें से 327 परिवारों ने स्वेच्छा से अपना घर छोड़कर कहीं और बसने का फैसला किया। वहीं, बाकी परिवारों को इन इलाकों से हटाकर पूरी तरह से पुनर्वासित करने की कोशिशें जारी हैं।

जो परिवार इस जगह को छोड़कर नई जगह जा रहे हैं, उन्हें सरकार की ओर से 15 लाख रुपये का पैकेज दिया जा रहा है। हालाँकि, लगभग 1500 परिवार अभी भी उसी जगह पर हैं। अधिकारियों ने उन लोगों को समझाया कि टाइगर रिज़र्व के अंतर्गत आ चुके गाँव में न तो कभी बिजली पहुँचेगी, न ही सड़कें बन पाएंगी और न ही स्कूल-अस्पताल जैसी बुनियादी ज़रूरतें पूरी हो पा रही हैं।

वर्तमान की बात करें तो लक्ष्मीपुर गाँव पूरी तरह से विस्थापित हो चुका है, इसके अलावा खाली बावड़ी और घाटी जागीर से भी लोग पलायन कर रहे हैं। मासलपुर के भी 90 प्रतिशत परिवार दूसरी जगहों पर जा चुके हैं। वहीं, दामोदरपुर में भी विस्थापन की प्रक्रिया जारी है। इन परिवारों की पहल सराहनीय है, क्योंकि इनके प्रयासों से जंगल और वन्यजीवों को बचाया जा सकता है। बताया जा रहा है कि उस क्षेत्र में चरागाह विकसित करने से वन्यजीवों को बचाया जा सकेगा।

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