बिहार में विधानसभा चुनाव को लेकर नामांकन दाखिल करने की प्रक्रिया आज सोमवार को खत्म हो रही है. नामांकन के बाद अब चुनाव प्रचार में तेजी आएगी. राजनीतिक रैलियों का दौर शुरू होगा. कई सीटें अपनी-अपनी वजह से चर्चा में बनी हुई हैं. हर बार की तरह बिहार के इस चुनाव में भी कई सीटों पर सियासी वारिसों का भविष्य दांव पर लगा है. ऐसी ही एक सीट है कैमूर जिले की चैनपुर. ये वो सीट है जहां से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने 45 साल पहले ही जीत का खाता खोल लिया था, अब उन्हीं नेता के बेटे भी मैदान में हैं और उन पर एक नई पार्टी का खाता खुलवाने की जिम्मेदारी है.
कैमूर जिले की चैनपुर सीट पर भारतीय जनता पार्टी का दबदबा रहा है. बीजेपी से जुड़े 2 नेताओं (लालमुनि चौबे और बृज किशोर भिंड) ने इस सीट पर जीत की हैट्रिक लगाई है. महाबलि सिंह भी बीएसपी और राष्ट्रीय जनता दल के टिकट पर लड़ते हुए अपनी हैट्रिक बनाई है. हालांकि 2020 के विधानसभा चुनाव में यहां का परिणाम अप्रत्याशित रहा था क्योंकि मायावती की बहुजन समाज पार्टी ने जीत हासिल की थी. बीएसपी को एकमात्र जीत यहीं से मिली थी. बीएसपी के मोहम्मद जमा खान ने बीजेपी के बृजकिशोर भिंड को 24 हजार से भी अधिक वोटों से हराया था.
1980 में बीजेपी के लिए खोला खाताचैनपुर सीट लालमुनि चौबे की वजह से जानी जाती है, और यह सीट इस बार इसलिए चर्चा में आ गई है क्योंकि प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी ने उनके बेटे हेमंत चौबे को अपना प्रत्याशी बनाया है. लालमुनि चौबे बिहार की सियासत में बड़ा चेहरा रहे हैं. लालमुनि बीजेपी में आने से पहले भारतीय जनसंघ और जनता पार्टी से जुड़े रहे.
लालमुनि ने 1972 में पहली बार चैनपुर सीट से जीत हासिल की. तब वह भारतीय जनसंघ से जुड़े हुए थे. 1977 के चुनाव में वह जनता पार्टी के टिकट पर विधायक बने. लेकिन 1980 के चुनाव से पहले लालमुनि बीजेपी में आ गए और इस चुनाव में बीजेपी के लिए जीत का खाता खोला. तब से लेकर अब बीजेपी 5 बार चुनाव में जीत हासिल कर चुकी है.
प्रशांत किशोर की जन सुराज का वंशवादप्रशांत किशोर ने लालमुनि चौबे के बेटे हेमंत चौबे को यहां से प्रत्याशी बनाया है. राजनीतिक वारिसों का विरोध करने वाले प्रशांत ने भी राजनीतिक वंशवाद को बढ़ावा दिया है. अब हेमंत चौबे अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत कर रहे हैं. हालांकि उनके लिए पिता के उलट राजनीतिक वारिस होना बड़ा प्लस प्वाइंट हो सकता है.
हेमंत चौबे के पिता लालमुनि चौबे बक्सर संसदीय सीट से 4 बार के सांसद चुने गए थे. इसके अलावा वह कैमूर जिले की चैनपुर सीट से 4 बार विधायक भी चुने गए. यहीं वह बिहार सरकार में मंत्री भी रहे थे.
कितनी आसान है जीत की राहयहां का राजनीतिक समीकरण कुछ इस तरह का है कि ग्रामीण इस क्षेत्र में अनुसूचित जाति के करीब 21% वोटर्स हैं तो अनुसूचित जनजाति 9.38%. मुस्लिम वोटर की संख्या भी करीब 10 फीसदी 7% हैं. ऐसे में यहां पर कांटे का मुकाबला हो सकता है. हेमंत के पास कैमूर सीट पर पहली बार चुनाव लड़ रही जन सुराज पार्टी के लिए जीत का खाता आसान नहीं होगा.
अगर हेमंत को राजनीतिक परिवार से होने का फायदा मिलता है तो उनके सामने सत्तारुढ़ एनडीए की ओर से जनता दल यूनाइटेड ने मोहम्मद जमा खान को मैदान में उतारा है. जबकि महागठबंधन की ओर से विकासशील इंसान पार्टी के बाल गोविंद भिंड अपनी चुनौती पेश कर रहे हैं. जेडीयू प्रत्याशी मोहम्मद जमा खान पिछले चुनाव में बीएसपी के टिकट पर विजयी हुए थे और इस बार वह जेडीयू के टिकट पर अपनी दावेदारी ठोक रहे हैं. देखना होगा कि हार-जीत में खास भूमिका निभाने वाले मुस्लिम वोटर्स वाले इस क्षेत्र में किस दल के प्रत्याशी को जीत मिलती है.