Kosi Puja, Chhath Puja: लोक आस्था के महापर्व छठ का आज तीसरा दिन है. 26 अक्टूबर यानी बीते कल खरना का दिन था. खरना के पूजन के बाद व्रतियों ने विशेष प्रसाद ग्रहण किया. इसके साथ ही 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू हो गया, जिसका पारण 28 अक्टूबर यानी कल उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद किया जाएगा.
आज छठ महापर्व में संध्या अर्घ्य का दिन है. आज शाम के समय अस्ताचलगामी यानी डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा. संध्या अर्घ्य के अवसर पर कोसी भरी जाती है. आइए जानते हैं कि संध्या अर्घ्य के अवसर पर कोसी क्यों भरी जाती है? इसके पीछे की वजह क्या है? साथ ही जानते हैं कोसी भरने की विधि और महत्व.
कोसी क्या होती है?
कोसी छठ पूजा की एक विशेष परंपरा है. जिसमें गन्नों से छतरीनुमा संरचना बनाई जाती है, जिसके बीच में मिट्टी का हाथी और कलश रख दिया जाता है. इसमें प्रसाद और पूजा की सामग्री रखी जाती है. साथ ही दीपक जलाया जाता है. कोसी छठ पूजा के तीसरे दिन यानी संध्या अर्घ्य के समय भरी जाती है.
क्यों भरी जाती है कोसी?धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कोसी भरना आस्था और कृतज्ञता का प्रतीक माना जाता है. जब भक्तों की कोई मनोकामना पूरी हो जाती है, तो वो कोसी भरते हैं और छठी मैया के प्रति अपना आभार जताते हैं. लोग इस परंपरा का निर्वहन परिवार में सुख-समृद्धि, संतान की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य के लिए भी करते हैं. किसी कठिन रोग से मुक्ति पाने के लिए भी कोसी भरी जाती है.
कोसी का महत्वकोसी के घेरे को परिवारिक एकता और सुरक्षा कवच का प्रतीक माना जाता है, जबकि गन्नों से बनी छतरी छठी मैया की कृपा और आशीर्वाद का प्रतीक कही जाती है. ये पूजा में महिलाओं की आस्था दर्शाती है. महिलाएं ये पूजा परिवार की सुख-शांति और संतान की दीर्घायु के लिए करती हैं.
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(Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं और सामान्य जानकारियों पर आधारित है. टीवी9 भारतवर्ष इसकी पुष्टि नहीं करता है.)