दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने कहा कि वर्ष 2025 की शीत ऋतु के दौरान दिल्ली में पराली जलाने की एक भी घटना दर्ज न होना, दिल्ली सरकार की प्रदूषण नियंत्रण नीति की बड़ी और ठोस उपलब्धि है. मुख्यमंत्री ने कहा कि यह सफलता विकास विभाग की कृषि इकाई और पर्यावरण विभाग के समन्वित प्रयासों, सतत निगरानी और किसानों के सहयोग से संभव हो पाई है.
मुख्यमंत्री ने बताया कि शीतकाल में वायु गुणवत्ता में गिरावट दिल्ली के लिए एक गंभीर चुनौती मानी जाती है, जिसमें पराली जलाने की घटनाएं एक बड़ा कारण हैं. इसी को ध्यान में रखते हुए दिल्ली सरकार ने वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) के दिशा-निर्देशों के अनुरूप विंटर एक्शन प्लान को सख्ती से लागू किया. इसके लिए विकास विभाग की कृषि इकाई ने पर्यावरण विभाग के साथ मिलकर पराली और फसल अवशेष जलाने की रोकथाम के लिए ज़ीरो टॉलरेंस नीति अपनाई.
7,000 एकड़ भूमि पर धान की खेतीरेखा गुप्ता ने बताया कि वर्ष 2025 में दिल्ली में लगभग 7,000 एकड़ भूमि पर धान की खेती की गई थी. इसके बावजूद विभाग के निरंतर और सुव्यवस्थित प्रयासों के परिणामस्वरूप पूरे एनसीटी दिल्ली में पराली जलाने की शून्य घटनाएं दर्ज की गईं. यह उपलब्धि दर्शाती है कि सही नीति, प्रभावी क्रियान्वयन और किसानों की सहभागिता से प्रदूषण जैसी गंभीर समस्या पर नियंत्रण पाया जा सकता है.
सीएम रेखा गुप्ता ने कहा कि इसके लिए 24×7 कार्य करते हुए दैनिक समीक्षा की गई. यह समीक्षा विकास आयुक्त शूरबीर सिंह द्वारा नियमित रूप से की गई, ताकि पराली या फसल अवशेष जलाने की किसी भी गतिविधि पर कड़ी निगरानी रखी जा सके और किसी भी उल्लंघन पर तत्काल कार्रवाई सुनिश्चित हो.
निगरानी और जागरूकता अभियानमुख्यमंत्री ने जानकारी दी कि विकास विभाग ने पराली जलाने की रोकथाम के लिए व्यापक स्तर पर क्षेत्रीय निगरानी और जागरूकता अभियान चलाया. इसके तहत कुल 11 टीमों को तैनात किया गया, जिनमें कृषि प्रसार अधिकारी और प्रसार सहायक शामिल थे. ये टीमें उत्तरी, उत्तर-पश्चिम, दक्षिण, दक्षिण-पश्चिम और पश्चिम जिला के पांचों धान उत्पादक जिलों में 24×7 गश्त कर रही थीं. इन टीमों ने खेतों में निगरानी के साथ-साथ किसानों को पराली जलाने के दुष्परिणामों के प्रति जागरूक किया.
बायो-डीकम्पोजर का छिड़काव करायाउन्होंने बताया कि पराली प्रबंधन को बढ़ावा देने के लिए धान की कटाई के बाद खेतों में पूसा बायो-डीकम्पोजर का छिड़काव कराया गया. भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (पूसा) द्वारा विकसित यह बायो-डीकम्पोज़र पराली को खेत में ही सड़ाकर मिट्टी की उर्वरता और गुणवत्ता को बेहतर बनाता है. यह सुविधा किसानों को पूरी तरह निःशुल्क उपलब्ध कराई गई.
सीएम ने कहा कि भविष्य में फसल अवशेष प्रबंधन को और सुदृढ़ बनाने के लिए विकास विभाग उत्तर और दक्षिण-पश्चिम जिलों में दो कस्टम हायरिंग सेंटर (सीएचसी) स्थापित करने की प्रक्रिया में है. इन केंद्रों के माध्यम से किसानों को पराली प्रबंधन से जुड़ी आवश्यक मशीनरी और उपकरण उपलब्ध कराए जाएंगे, जिससे पराली जलाने की आवश्यकता पूरी तरह खत्म हो सके.
फील्ड स्टाफ को तुरंत कार्रवाई के निर्देशउन्होंने जानकारी दी कि कृषि इकाई के मुख्यालय में एक विशेष नियंत्रण कक्ष स्थापित किया गया. इस नियंत्रण कक्ष पूसा के CREAMS पोर्टल से प्राप्त उपग्रह आधारित सूचनाओं का विश्लेषण करता है और किसी भी संभावित घटना की रिपोर्ट मिलने पर जियो-लोकेशन के आधार पर फील्ड स्टाफ को तुरंत कार्रवाई के निर्देश देता है.
उन्होंने बताया कि किसानों को जागरूक करने के लिए पूसा बायो-डीकम्पोज़र के 97 प्रदर्शन दिल्ली के सभी पांच धान उत्पादक जिलों में किए गए. इसके अतिरिक्त, धान की पराली प्रबंधन पर 25 किसान प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए गए, जिनका उद्देश्य किसानों को टिकाऊ कृषि पद्धतियों और पराली जलाने के विकल्पों के प्रति प्रेरित करना था.
दिल्ली सरकार की नीति का प्रभावी प्रमाणमुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने कहा कि 24×7 गश्त, सतत निगरानी, प्रशिक्षण, प्रदर्शन, बायो-डीकम्पोज़र का छिड़काव, नियंत्रण कक्ष की स्थापना और CREAMS पोर्टल के माध्यम से उपग्रह निगरानी जैसे व्यापक प्रयासों का ही परिणाम है कि वर्ष 2025 की शीत ऋतु में दिल्ली में पराली जलाने की एक भी घटना सामने नहीं आई. उन्होंने कहा कि यह उपलब्धि प्रदूषण के खिलाफ दिल्ली सरकार की नीति का प्रभावी प्रमाण है और आने वाले समय में भी सरकार इसी प्रतिबद्धता के साथ स्वच्छ और स्वस्थ दिल्ली के लक्ष्य की ओर आगे बढ़ती रहेगी.