तमिलनाडु में विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के बाद जारी आंकड़ों ने भूचाल ला दिया है। क्या यह सामान्य प्रक्रिया है या मताधिकार छीनने की कोई बड़ी साजिश? पढ़िए डेटा विश्लेषण में सामने आए 5 चौंकाने वाले खुलासे। तमिलनाडु में चुनाव आयोग द्वारा 19 दिसंबर 2025 को जारी ड्राफ्ट मतदाता सूची ने एक बड़े राजनीतिक और सामाजिक विवाद को जन्म दे दिया है। राज्य से एक झटके में 97.37 लाख मतदाताओं के नाम हटा दिए गए हैं। इसके साथ ही कुल मतदाताओं की संख्या 6.41 करोड़ से घटकर 5.43 करोड़ रह गई है।
द हिंदू की विस्तृत रिपोर्ट और पोलिंग स्टेशन स्तर के डेटा विश्लेषण ने ऐसी "सांख्यिकीय विसंगतियों" (Statistical Anomalies) को उजागर किया है, जो किसी भी तर्क से गले नहीं उतर रहीं।

डेटा में छिपे 5 गंभीर सवाल (The 5 Red Flags),आंकड़ों की खुदाई करने पर जो पैटर्न सामने आए हैं, वे न केवल चौंकाने वाले हैं, बल्कि डरावने भी हैं:
1. युवाओं की रहस्यमयी
'मौतें': आमतौर पर मृत्यु दर बुजुर्गों में अधिक होती है, लेकिन SIR डेटा कुछ और ही कहानी कह रहा है। 14 पोलिंग स्टेशनों पर हटाए गए नामों में 50 वर्ष से कम उम्र के युवाओं की संख्या असामान्य रूप से ज्यादा है।
उदाहरण: तिरुवल्लूर के माधवरम में एक स्टेशन पर 58 'मृत' मतदाताओं में से 49 युवा (84%) थे। क्या एक ही इलाके में इतने युवाओं की मौत सामान्य है?
2. महिलाओं के नाम नदारद: हटाए गए नामों में लैंगिक असंतुलन (Gender Imbalance) साफ दिखाई दे रहा है। 35 स्टेशनों पर हटाए गए नामों में 75% से अधिक महिलाएं थीं। थोथुकुडी के तिरुचेंदूर में 110 हटाए गए नामों में से 95 महिलाएं थीं।
3.
'थोक' के भाव में नाम कटना: राज्य में औसतन प्रति स्टेशन 130 नाम हटे हैं, जो सामान्य माना जा सकता है। लेकिन 8,613 स्टेशनों पर यह संख्या 260 के पार है। चेन्नई के अन्ना नगर और चेपॉक जैसे वीआईपी इलाकों में 800 से अधिक नाम काटे गए हैं।
4. सिर्फ
'मौत' ही कारण क्यों? सबसे अजीब बात यह है कि 495 स्टेशनों पर नाम हटाने का एकमात्र कारण 'मृत्यु' (Death) बताया गया है। मदुरै के तिरुमंगलम में 142 नाम हटे और रिकॉर्ड के मुताबिक, वे सभी मर चुके हैं। सांख्यिकीय रूप से यह असंभव प्रतीत होता है।
5. अनुपस्थित मतदाता (
Absentee Voters) : 6,139 स्टेशनों पर 'अनुपस्थित' श्रेणी में औसत से दोगुने नाम हटाए गए हैं, जो सत्यापन प्रक्रिया पर सवाल उठाते हैं।
राजनीतिक प्रतिक्रिया : वरिष्ठ विश्लेषक योगेंद्र यादव ने इन आंकड़ों को "बड़े पैमाने पर मताधिकार छीनने (Mass Disenfranchisement)" की संज्ञा दी है। कर्नाटक और महाराष्ट्र में भी विपक्ष ने "वोट चोरी" और फर्जी नाम जोड़ने के गंभीर आरोप लगाए हैं। राहुल गांधी ने इसे लोकतंत्र पर हमला बताया है।
सिर्फ तमिलनाडु नहीं
, पूरे देश में यही पैटर्न?
यह SIR (Special Intensive Revision) एक देशव्यापी अभियान है, और अन्य राज्यों से भी चिंताजनक खबरें आ रही हैं। डेटा बताता है कि यह एक राष्ट्रीय पैटर्न हो सकता है: हालांकि चुनाव आयोग (ECI) ने स्पष्ट किया है कि ये हटाव मृत्यु, स्थानांतरण (Shifted) और डुप्लीकेट एंट्री के आधार पर हुए हैं। आयोग का कहना है कि यह फाइनल लिस्ट नहीं है।
महत्वपूर्ण तारीख : अगर आपका या आपके परिवार का नाम कटा है, तो आप 18 जनवरी 2026 तक दावे और आपत्तियां दर्ज करा सकते हैं। लेकिन यह साफ है कि 2026 के विधानसभा चुनावों से पहले यह मुद्दा केवल प्रशासनिक नहीं, बल्कि राजनीतिक बारूद बन चुका है। क्या ये विसंगतियां सुधारी जाएंगी, या लाखों लोग वोट देने से वंचित रह जाएंगे? यह आने वाले दिनों में ही साफ हो पाएगा।
Edited By: Navin Rangiyal