भारत के पारंपरिक इलाज को वैश्विक पहचान दिलाने की तैयारी, WHO के हेल्थ सिस्टम में शामिल होगा आयुष
TV9 Bharatvarsh December 24, 2025 11:42 AM

अब आयुर्वेद, सिद्ध और यूनानी सिर्फ़ देसी पहचान तक सीमित नहीं रहेंगे, बल्कि वैश्विक स्वास्थ्य प्रणाली की आधिकारिक भाषा में दर्ज होंगे. इसी दिशा में एक अहम क़दम उठाते हुए World Health Organization और Ministry of Ayush ने 2021 दिसंबर को दिल्ली में दो दिवसीय तकनीकी बैठक की. इस बैठक का मकसद था पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों को International Classification of Health Interventions (ICHI) में शामिल करना था.

आयुष मंत्रालय और WHO के बीच हुए ऐतिहासिक MoU और डोनर एग्रीमेंट और इस समझौते के तहत आयुर्वेद, सिद्ध और यूनानी (ASU) के लिए ICHI में एक अलग मॉड्यूल विकसित किया जा रहा है, ताकि ये पद्धतियां भी वैश्विक स्वास्थ्य मानकों का हिस्सा बन सकें. भारत इस पूरी प्रक्रिया में तकनीकी और वित्तीय सहयोग दे रहा है.

आयुष को दुनिया के ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुंचाना है मकसद

यह पहल सीधे उस सोच से जुड़ी है, जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई बार सामने रख चुके हैं. मन की बात में प्रधानमंत्री कह चुके हैं कि वैज्ञानिक मानकीकरण से आयुष को दुनिया के ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सकता है. आयुष सचिव वैद्य राजेश कोटेचा भी पहले साफ कर चुके हैं कि ICHI में जगह मिलने से आयुष को वैश्विक पहचान और वैज्ञानिक स्वीकार्यता मिलेगी.

दिलचस्प बात यह रही कि इस बैठक में WHO के सभी छह क्षेत्र अफ्रीका से लेकर यूरोप और पश्चिमी प्रशांत तक के प्रतिनिधि शामिल हुए. जिनेवा स्थित WHO मुख्यालय के विशेषज्ञों के साथ-साथ भारत, ब्रिटेन, अमेरिका, ब्राज़ील, ईरान, नेपाल, श्रीलंका, दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों ने भी हिस्सा लिया। सभी का फोकस एक ही था. पारंपरिक चिकित्सा को एक साझा, वैज्ञानिक और अंतरराष्ट्रीय ढांचे में ढालना है.

पारंपरिक इलाज भी रिसर्च का हिस्सा होगा

असल में ICHI कोडिंग किसी इलाज की कॉमन लैंग्वेज होती है. इससे अलग-अलग देशों के डॉक्टर और स्वास्थ्य सिस्टम यह समझ पाते हैं कि कौन-सा इलाज कितनी बार हुआ, कितना असरदार रहा और नीति स्तर पर उसका क्या महत्व है. आयुष को इसमें शामिल करने का मतलब है अब पारंपरिक इलाज भी वैश्विक डेटा, रिसर्च और हेल्थ पॉलिसी का हिस्सा बनेंगे.

WHO इस परियोजना को तय समयसीमा में, सख़्त वैज्ञानिक मानकों के साथ आगे बढ़ाएगा. सरकार को उम्मीद है कि इससे न सिर्फ़ रिसर्च और नीति निर्माण को मजबूती मिलेगी, बल्कि आयुष पद्धतियों को दुनिया भर के राष्ट्रीय स्वास्थ्य सिस्टम में जगह मिलने का रास्ता भी खुलेगा.

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