विराट कोहली-रोहित शर्मा को मजबूर कर BCCI ने क्या हासिल कर लिया?
TV9 Bharatvarsh December 25, 2025 07:42 PM

भारतीय क्रिकेट में जब से बतौर चीफ सेलेक्टर अजीत अगरकर और फिर हेड कोच गौतम गंभीर की एंट्री हुई है, तब से ही इस बात पर जोर दिया जा रहा है कि हर क्रिकेटर को घरेलू टूर्नामेंट्स में भी हिस्सा लेना होगा. खास तौर पर रणजी ट्रॉफी और विजय हजारे ट्रॉफी खेलने पर ज्यादा से ज्यादा जोर दिया गया है. पिछले कुछ वक्त से ये दबाव विशेष रूप से विराट कोहली और रोहित शर्मा जैसे दिग्गजों पर ज्यादा से ज्यादा डाला जा रहा था, जिनके भविष्य पर सवाल उठ रहा है. मगर क्या विजय हजारे ट्रॉफी जैसा टूर्नामेंट इन दिग्गजों की फॉर्म परखने का सही मंच है? क्या उन्हें इस टूर्नामेंट में खेलने के लिए मजबूर किया जाना चाहिए? पहले राउंड के मुकाबलों के बाद ही ये सवाल उठ रहे हैं और इसकी वजह भी हैं.

विराट-रोहित की धमाकेदार बैटिंग

पिछले करीब एक साल से ही विराट कोहली और रोहित शर्मा का क्रिकेट करियर सवालों के घेरे में है. ऐसे में उन्हें लगातार घरेलू क्रिकेट खेलने को कहा जा रहा है. टेस्ट क्रिकेट से संन्यास का ऐलान करने से पहले दोनों ने एक-एक रणजी ट्रॉफी मैच भी खेला था लेकिन फिर तुरंत ही संन्यास भी ले लिया. ऐसे में दोनों सिर्फ वनडे फॉर्मेट में एक्टिव हैं और इसके चलते ही सेलेक्टर्स और बोर्ड इन दिग्गजों से विजय हजारे ट्रॉफी में हिस्सा लेने को बोल रहा है. इसको जहां कुछ समर्थन भी मिला है तो वहीं कुछ सवाल भी उठे कि इन दोनों को कुछ साबित करने की जरूरत नहीं.

हालांकि ये टूर्नामेंट शुरू होने से पहले ही दोनों ने ऑस्ट्रेलिया और साउथ अफ्रीका के खिलाफ दमदार बल्लेबाजी करते हुए जमकर रन बरसाए थे. मगर इसके बाद भी अगली वनडे सीरीज से पहले उन्हें विजय हजारे ट्रॉफी में हिस्सा लेने को कहा गया. आखिरकार विराट और रोहित ने अपनी-अपनी घरेलू टीमों के लिए कुछ मैच खेलने के लिए सहमति भरी भी और फिर टीम से जुड़ गए. टूर्नामेंट के पहले दौर के मुकाबलों में ही दोनों दिग्गजों ने जोरदार प्रदर्शन किया और शतक जमाए. विराट ने जहां दिल्ली के लिए 101 गेंदों में 131 रन बनाए तो वहीं रोहित ने मुंबई के लिए सिर्फ 94 गेंदों में 155 रन कूट दिए.

क्या दिग्गजों को परखने लायक है टूर्नामेंट का स्तर?

जाहिर तौर पर इन दोनों से ही ऐसे प्रदर्शन की उम्मीद थी लेकिन बात यहां पर खत्म नहीं होती. असल में बुधवार 24 दिसंबर से शुरू हुए इस टूर्नामेंट के पहले ही दिन शतकों की बारिश हुई. सिर्फ विराट और रोहित ने ही सेंचुरी नहीं जमाई, बल्कि पहले दिन कुल 22 शतक लगे, जिसमें से एक दोहरा शतक और एक 190 रन की पारी भी शामिल थी. इस दौरान लिस्ट ए क्रिकेट में भारत की तरफ से सिर्फ 32 गेंदों में सबसे तेज शतक लगा, जबकि कुछ ही देर बाद 34 गेंदों में भी सेंचुरी लगी. बिहार की टीम ने अरुणाचल के खिलाफ 574 रन का हैरतअंगेज स्कोर भी बना दिया, जबकि कर्नाटक ने झारखंड के खिलाफ 413 रन का लक्ष्य भी हासिल कर लिया. बंगाल ने भी विदर्भ के खिलाफ 383 रन चेज किए.

ये आंकड़े इसलिए बताए जा रहे हैं क्योंकि इनसे टूर्नामेंट के स्तर पर सवाल उठते हैं. क्या ये टूर्नामेंट ऐसे बल्लेबाजों की मैच फिटनेस, फॉर्म या काबिलियत सही से जांच सकता है, जो वनडे इंटरनेशनल में 80 से ज्यादा शतक और 25 हजार से ज्यादा रन बना चुके हैं? क्या उन्हें इस टूर्नामेंट में खेलने के लिए मजबूर करना सही मायनों में उनके सेलेक्शन का सही पैमाना हो सकता है? ऐसा टूर्नामेंट, जहां रन बनाना एक तरह का मजाक बनकर रह गया है और ये पिछले 3-4 सालों से ऐसा ही है, क्या उन मुकाबलों में विराट और रोहित जैसे धुरंधरों की बैटिंग उनकी फॉर्म या फिटनेस का सही संकेत दे सकती है?

इन सबका एक ही जवाब है- नहीं. असल में इन मुकाबलों में इन दोनों को खेलने के लिए मजबूर कर BCCI ये साबित करना चाहती है कि सभी को घरेलू क्रिकेट में वक्त देना होगा, ताकि इसकी अहमियत भी बढ़े और खिलाड़ी खुद को हमेशा तैयार रख सकें. मगर इस स्तर के क्रिकेट में 15-20 साल के अनुभव वाले सितारों को खिलाकर असल में उन खिलाड़ियों के साथ अन्याय किया जा रहा है, जो उनकी जगह खेलकर खुद को परख सकते थे या खुद को साबित कर सकते थे.

घरेलू क्रिकेट को प्रमोट करने का मौका भी गंवाया

इसके पक्ष में ये दावा किया जा सकता है कि उनके खेलने से घरेलू क्रिकेटर्स को भी कुछ फायदा पहुंचेगा. साथ ही घरेलू क्रिकेट की लोकप्रियता भी बढ़ेगी. पहले दावे से एक बार के लिए सहमति जताई जा सकती लेकिन दूसरा पहलू गले नहीं उतरता. इसकी वजह भी BCCI ही है. किसी भी खेल की लोकप्रियता तभी बढ़ती है जब वो लोगों तक पहुंचता है. मगर जिन मुकाबलों में विराट और रोहित मैदान पर उतरे, उनका टीवी पर या ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर सीधा प्रसारण हुआ ही नहीं और लोग उन्हें खेलते देखने से महरूम रह गए.

मुंबई के मैच में तो दर्शकों को स्टेडियम में आने की इजाजत मिली भी लेकिन दिल्ली के मैच में वो सुविधा भी दर्शकों को नहीं मिली. ऐसे में ये सारे सवाल उठना लाजिमी है और इस कसरत से BCCI या कोच-सेलेक्टर मन ही मन ये सोचकर खुश जरूर हो सकते हैं कि उन्होंने सुपरस्टार खिलाड़ियों को अपने इशारों पर नचाया है लेकिन सच्चाई ये है कि इसका न तो उन दिग्गजों पर कुछ असर होने वाला है और न ही घरेलू क्रिकेट का कुछ फायदा होता दिख रहा है.

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