Guru Gobind Singh Jayanti 2025: पटना में जन्म और पांच प्यारे… गोबिंद राय कैसे बने सिक्खों के 10वें गुरु गोविंद सिंह
TV9 Bharatvarsh December 27, 2025 04:43 PM

Guru Gobind Singh Jayanti 2025: सिख धर्म में गुरु गोविंद सिंह की जयंती को पर्व के रूप में मनाया जाता है. गोविंद सिंह जी की जयंती सिख धर्म में बड़ा ही पावन दिन माना जाता है. इस पर्व के लिए मन में सम्मान, श्रद्धा, गौरव और समर्पण का भाव है. गुरु गोविंद सिंह सिखों के 10वें गुरु थे. उन्होंने खालसा पंथ की स्थापना की थी. गुरु गोविंद सिंह जी अपने जीवनकाल के दौरान धर्म और सच्चाई की राह पर चले और लोगों की सेवा की.

हर साल पौष माह में सप्तमी तिथि पर गुरु गोविंद सिंह जी की जयंती मनाई जाती है. साल 2025 में पहले 6 जनवरी को ये पर्व मनाया जा चुका है, लेकिन फिर से एक बार ये पर्व आज मनाया जा रहा है. ऐसे में आइए जानते हैं कि पटना में जन्म लेने वाले गोबिंद राय कैसे बने सिक्खों के 10वें गुरु गोविंद सिंह जी बनें.

साल 1666 में पटना में हुआ जन्म

गुरु गोविंद सिंह एक महान दार्शनिक, प्रख्यात कवि, निडर और निर्भीक योद्धा थे. उनको युद्ध में कुशलता प्राप्त थी. साथ ही महान लेखक थे और उनको संगीत की भी पारखी समझ थी. गुरु गोविंद सिंह साल 1666 में पटना में जन्मे. उनके बचपन का नाम गोबिंद राय था. वो गुरु तेग बहादुर और माता गुजरी के इकलौते बेटे थे. गुरु गोविंद सिंह ने साल 1699 में बैसाखी के दिन खालसा पंथ की स्थापना की.

भीड़ के सामने उन्होंने अपनी म्यान से तलवार निकालकर घोषणा की कि जिसके अंदर धर्म की रक्षा के लिए अपनी जान देने की हिम्मत हो, ऐसे पांच लोग आगे आए. इसके बाद लाहौर के दयाराम, हस्तिनापुर, उत्तर प्रदेश के धरम राय, जगन्नाथ, ओडिशा के भाई हिम्मत राय, गुजरात के भाई मोहकम राय और बीदर, कर्नाटक के भाई साहिब चंद आगे आए. गुरु गोविंद सिंह सबको बगल के एक तंबू में ले गए.

पांच लोगों को बनाया ‘पंजप्यारे’

थोड़ी देर बाद गुरु गोविंद सिंह इन पांचों लोगों के साथ बाहर निकले. उस समय इन पांचों ने केसरिया रंग के कपड़े और पगड़ी पहन रखी थी. तब जाकर वहां मौजूद लोगों को पता चला कि गुरु गोविंद सिंह ने पांचों के साहस की परीक्षा ली थी. इसके बाद उन्होंने पांचों लोगों को ‘पंजप्यारे’ नाम दिया. पांचों अलग-अलग हिंदू जातियों के थे. इतना ही नहीं गुरु गोविंद सिंह ने एक कड़ाहे में जल भरा.

इसके बाद उसमें शक्कर मिलाई और अपनी कृपाण से उसे मिलाया. फिर पांचों को पीने के लिए दिया. इसके बाद सबके हिंदू नाम बदलकर उन्हें उपनाम ‘सिंह’ दिया गया. नगर कीर्तन में गुरु ग्रंथ साहिब की पालकी के आगे इन ‘पंजप्यारों’ को स्थान दिया जाता है. बाद में गुरु गोविंंद सिंह ने भी स्वयं भी अमृतपान किया और ‘सिंह’ की उपाधि धारण कर गुरु गोविंंद सिंह बन गए. गुरु गोविंद सिंह ने एक नारा भी दिया.

खालसा पंथ के पांच मूल सिद्धांत

वो नारा है ‘वाहे गुरुजी का खालसा, वाहे गुरुजी की फतेह’. उन्होंने खालसा पंथ के पांच मूल सिद्धांत भी दिए. उन्होंने ये मूल सिंद्धात आदर्शात्मक जीवन जीने और स्वयं पर नियंत्रण रखने के लिए दिए, जिनमें केस, कंघा, कड़ा, कछ, किरपाण रखना शामिल है. गुरु गोविंद सिंह के ये सिद्धांत चरित्र निर्माण के मार्ग थे. वो मानते थे कि व्यक्ति चरित्रवान बनके ही विपरित हालातों और अत्याचारों के खिलाफ लड़ सकता है.

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