जीवितपुत्रिका व्रत यानी पितृपक्ष यानी अश्विन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को रखा जाता है. यह व्रत एक मुश्किल व्रत माना जाता है. ऐसा बोला जाता है कि इस व्रत में माताएं अपनी संतान के सुख और लंबी उम्र की कामना करती हैं और उनके लिए आशीर्वाद मांगती हैं. आपको बता दें कि यह व्रत तीन दिन तक चलता है. यह तीन दिन तक चलता है. सप्तमी पर व्रत नहाय खाय से प्रारम्भ होता है और अष्टमी पर व्रत और नवमी पर पारण होता है. इस व्रत पूजा की थाली में चावल, पेड़ा, दूर्वा की माला, पान, लौंग, इलायची, सुपारी, श्रृंगार का सामान, सिंदूर पुष्प, गांठ का धागा, कुशा से बनी जीमूत वाहन की मूर्ति, धूप, दीप, मिठाई, फल, फूल, चाहिए होते हैं. यहां हम आपको बताएंगे कि किस चीज की कहां आवश्यकता होगी.
इस व्रत में लाल कपड़ा, पूजा की चौकी जिसे पर भगवान की मूर्ति रखी जाएगी चाहिए. इसके अतिरिक्त मिट्टी की आवश्यकता होगी, -जिससें गणेश जी। कुशा या मिट्टी से जीमूतवाहन देव की मूर्ती, चील और सियारिन की प्रतिमा बनाई जाएंगी. इसके अतिरिक्त एक कलश, नारियाल, हल्दी, सुपारी,दुर्वा, इलायची , लौंग आदि इस कलश मेंं रखा जाता है. पूजा में जितिया का धागा खास तौर पर रखा जाता है. रौली, मौली और कुछ खिलौने या टॉफी भी पूजा में रखते हैं और पूजा के बाद बच्चों में बांट देते हैं. नैनुआ के पत्तों को पूजा में रखा जाता है. पान के पत्ते या अशोक के पत्ते भी ले सकते हैं. भोग में भीगे हुए काले चने चाहिए होते हैं, इन्हें आप सुबह भिगो सकते हैं. वा घर में बनी मिठाईऔर पांच फल भी पूजा में चाहिए .