जानिए, पिंडदान श्राद्ध और तर्पण में क्या है अंतर
Sneha Srivastava September 23, 2024 02:27 AM

पितृपक्ष एक ऐसा समय होता है जब हम अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं. यह 15 दिनों का समय, जो 18 सितंबर 2024 से प्रारम्भ होकर 2 अक्टूबर 2024 तक चलेगा, पितरों को याद करने और उनकी आत्मा की शांति के लिए विशेष अनुष्ठानों को करने का होता है. इस दौरान लोग अपने पितरों के निमित्त श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण जैसे धार्मिक कार्य करते हैं.

तर्पण क्या है?: तर्पण का मतलब जल अर्पित करना होता है. ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास के अनुसार, तर्पण में पितरों को जल, दूध, तिल और कुश अर्पित किए जाते हैं. यह कार्य पितृपक्ष के किसी भी दिन किया जा सकता है. इसमें तिल मिले जल से पितरों, देवताओं और ऋषियों को तृप्त किया जाता है. मान्यता है कि इससे पितृ संतुष्ट होते हैं और आशीर्वाद देते हैं.

पिंडदान क्या है?: पिंडदान को पितरों की आत्मा की मुक्ति के लिए सबसे जरूरी माना जाता है. इसका मतलब है कि पितरों को भोजन अर्पित किया जाए ताकि उनकी आत्मा को शांति मिले. पिंडदान के जरिए पूर्वजों की आत्मा मोह-माया से मुक्त होकर अपनी अगली यात्रा की ओर बढ़ती है. इस कर्मकांड को करने के लिए गया जी को सबसे पवित्र स्थल माना जाता है, हालांकि हरिद्वार, चित्रकूट, पुष्कर जैसी जगहों पर भी पिंडदान किया जाता है.

श्राद्ध क्या है?: श्राद्ध एक विस्तृत कर्मकांड होता है जिसमें ब्राह्मणों द्वारा पिंडदान, हवन, भोजन और दान कराए जाते हैं. इसे पितरों की मुक्ति का मार्ग बोला जाता है. श्राद्ध के दौरान श्राद्धकर्ता को विभिन्न नियमों का पालन करना होता है, जैसे पंचबली अर्पित करना, जिसमें गाय, कौआ, कुत्ता, देवता और चींटियों को भोजन दिया जाता है.

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