दर्शकों को झकझोर के रख देने वाली 'तुम्बाड़' की 'वासना' की कहानी!
सर्वजीत सिंह चौहान September 30, 2024 09:12 AM

Tumbbad Lyricist Raj Shekhar Interview: मैंने ठीक 6 साल पहले 'तुम्बाड़' देखी थी, जब वो पहली बार रिलीज हुई थी. सब कुछ बहुत अद्भुत लगा. ऐसा लगा जैसे बचपन में जो लोककथाएं और कहानियां मैंने अपनी दादी-नानी या मोहल्ले की बड़ी अम्मा से सुनी थी, वो सब कुछ मेरी आंखों के सामने बिल्कुल वैसे ही जीवंत होकर घूम रही हैं. ऐसा लगा जैसे कॉमिक्स के जमाने में पहुंच गया हूं, जहां विजुअल्स दिमाग में घूमते थे बिल्कुल हमारे अगल-बगल, जैसे कि हम उन्हें महसूस कर पा रहे हों. 

ऐसा सिर्फ इसलिए ही मुमकिन हो पाया क्योंकि कुछ साहसी फिल्मकारों की टीम ने 'तुम्बाड़' बनाने की सोची. याद कीजिए कब किसी फिल्म का गाना आपको कहानी के साथ जोड़ने में मददगार हुआ है हाल-फिलहाल में? '3 इडियट्स' का 'गिव मी सम सनशाइन, गिव मी सम रेन' या 'बहती हवा सा था वो' न होते तो फिल्म क्या वैसा प्रभाव डाल पाती, जैसा वो आने वाली पीढ़ियों पर भी डालने वाली है. 

अरसे बाद 'तुम्बाड़' में वही कहानी फिर से दोहराई गई. फिल्म में सिर्फ एक गाना है और वो पूरी फिल्म का सार कुछ इस तरह से बता जाता है जैसे 'धृतराष्ट्र' को शायद संजय ने महाभारत की कहानी बताई होगी. कहने का मतलब ये कि अगर आप फिल्म न भी देखें और गाना सुन लें, तो आपको पूरी फिल्म का मैसेज पता चल जाएगा. और अगर आप फिल्म देखते हुए 'अरे आओ न तुम्बाड़ भोगना है तुम्हें' सुनते हैं तो रोंगटे खड़े होते हैं.


कैसे मुमकिन हो पाया ये?

जब मैं ये फिल्म देख रहा था तो सोच रहा था वाह क्या गाना है, कितने बेहतर तरीके से लिखा गया है. जो फिल्म में किसी दूसरी बॉलीवुड फिल्म की तरह जबरन भेड़चाल वाली मजबूरी में नहीं थोपा गया. बल्कि उसे बेहद बारीक तरीके से तैयार किया गया है, ताकि फिल्म की आत्मा दर्शकों की आत्मा से जुड़ जाए. ये गीत सिर्फ इसलिए बेहतर नहीं है कि इसे गाया बहुत बढ़िया तरीके से गया है, बल्कि इसलिए बेहतरीन है क्योंकि इसे लिखने में जान डाली गई है.

और ये जान डालने वाले लिरिसिस्ट का नाम है राज शेखर. शायद आप लोग भी परिचित न हों, मैं तो बिल्कुल भी नहीं था. हां मैं बहुत बड़ी संख्या वाले ऐसे दर्शक समूह का हिस्सा जरूर था जिनका गाने के लिरिक्स पर ध्यान जरूर जाता है, लेकिन लिरिसिस्ट कौन है ये ढूंढने की कोशिश नहीं करते. तो जब मैंने राज शेखर से बात की, तो सबसे पहले यही सवाल मेरे मन में आया और मैंने उनसे पूछ भी लिया.

'तुम्बाड़' के लिरिसिस्ट राज शेखर से बातचीत के कुछ अंश

सवाल- मैंने आपके गाने 'तनु वेड्स मनु', शुद्ध देसी रोमांस, एनिमल और तुम्बाड़ में सुने. लेकिन माफ कीजिएगा मैं आपसे ठीक से परिचित नहीं था. आपके गाने लाखों-करोड़ों कानों तक पहुंचे लेकिन आपका नाम इतने लोगों तक नहीं पहुंच पाया. ये जो गैप है क्या इस वजह से कोई टीस उठती है कि आपको उस तरह से लोग नहीं जानते जैसे कि किसी फिल्म स्टार या सिंगर को जानते हैं?

जवाब- मैं चाहता हूं कि आप इस बात को अपनी कॉपी में जरूर लिखें, क्योंकि ये एक लिरिसिस्ट के लिए रोज की बात है. अच्छा लगता है कि हमारा काम हमसे ज्यादा लोगों तक पहुंचा है. लेकिन कहीं न कहीं एक गैप है हमारे काम और नाम के बीच. हालांकि, ये अच्छा भी लगता है कि अब कम से कम हमारे बारे में लोग जानना चाहते हैं.

सवाल- आप बिहार से आते हैं, बॉलीवुड फिल्म के लिए गाना लिखते हैं, वो भी ऐसी फिल्म के लिए जो मराठी लोककथा पर आधारित है. गाने के बोल ऐसे हैं कि वो हैं तो हिंदी में लेकिन उसमें संस्कृत और मराठी का टच महसूस होता है. आपकी भाषा से संबंधित इस जर्नी की शुरुआत कैसे हुई और आपने कुछ इतना अलहदा कैसे लिख दिया?

जवाब- मेरी ये जर्नी तनु वेड्स मनु से शुरू हुई जिसकी कहानी यूपी से दिल्ली होते हुए पंजाब और हरियाणा तक पहुंचती है.  मैं इस मामले में बहुत खुशकिस्मत रहा कि भाषाएं और उन्हें बोलने वाले लोग मुझे आकर्षित करते हैं. मैं उन्हें बहुत ध्यान से सुनता और देखता हूं कि क्या बोला जा रहा है. मेरी मातृभाषा मैथिली है, इसलिए जब मैं अपने लिखने में किसी दूसरी भाषा का इस्तेमाल करता हूं तो उन लोगों से बात करके सीखता हूं जो उस भाषा में बोलने वाले लोग होते हैं.

वो आगे कहते हैं, ''मैं लिखने के बाद उस भाषा के बोलने वाले लोगों से जानने की भी कोशिश करता हूं कि कहीं मैंने कुछ गलती तो नहीं कर दी. तुम्बाड़ का गाना जब मैंने लिखा तो फिल्ममेकर्स चाह रहे थे कि कि ये गाना संस्कृत जैसा सुनने में लगे लेकिन चूंकि पैन इंडिया फिल्म है तो हो हिंदी में ही. इसलिए मैंने गाना उसी लिहाज से लिखा कि उसका ध्वनि बिंब संस्कृत जैसा लगे.''


सवाल- ये गाना फिल्म की आत्मा से रूबरू कराता है और फिल्म के लीड कैरेक्टर की सोने से जुड़ी लालसा और उसके पुण्य-पाप की कहानी कह देता है. गाने में आपने बहुत चतुराई से 'वासना' के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रभाव बता दिए हैं. उसे बिल्कुल ऐसे कैसे तैयार कर पाए कि कहानी पर हूबहू फिट बैठ गया. 

इसके जवाब में राज शेखर कहते हैं-

[blurb]''फिल्म का जो लीड कैरेक्टर है उसे सोने की लालसा है. उसके पास सोना बहुत हो गया. तो उसकी दूसरी लालसाएं बढ़ी. अब उसे चाहिए थी अपनी गाथा और इतिहास और अमरता. अमरता तभी आएगी जब उसका नाम लेने वाले लोग होंगे. लोग तब होंगे जब वो अपनी महागाथा कहेगा. यहां पर सीमांत उपयोगिता का नियम लगता है. यानी किसी चीज से मिलने वाली जो शुरुआती संतुष्टि थी अब वो कम हो गई है. उसकी सोने के लिए लालसा कम हो गई है, लेकिन उसके अंदर की वासना कम नहीं हुई. वो अपने बच्चे के सामने खुद को कैसे ग्लोरिफाई करेगा. वो तभी कर पाएगा जब वो अपनी वासना को ग्लोरिफाई करेगा. इस फिल्म का हीरो उदात्त नायक नहीं है, इसलिए ये उसे भी पता है, इसलिए मैंने खुद उसका चोला पहना और जानने की कोशिश की कि अगर मैं विनायक राव होता तो क्या करता. बस यूं बन गया ये गाना.''[/blurb]

क्या है जो लिखते वक्त परेशान करता है?

सवाल- जब आप कोई गाना लिखते हैं, तो कितनी बार फ्रस्ट्रेट होते हैं और कितनी बार अपनी कॉपी से कोई पन्ना फाड़ के डस्टबिन में डाल देते हैं. क्या-क्या रुकावटें आती हैं किसी गाने को लिखते समय और खासकर ये गाना तैयार करने में आपको कितना समय लगा?

जवाब- कम से कम 15-20 दिन का समय लगा था गाना तैयार करने में. सबसे ज्यादा दिक्कत ये होती है गाना लिखने में कि भाषा क्या होगी और उस गाने को हम कैसे जस्टिफाई कर पाएंगे.

 
 
 
 
 
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अच्छी राइटिंग के लिए क्या जरूरी है?
इसके जवाब में राज शेखर कहते हैं, ''लिखने के लिए जरूरी है कि आप में खास बात क्या है. बस उसे ढकिए मत, उसे खोलकर रख दीजिए. किसी के प्रेशर में आकर लिखने की जरूरत नहीं है कि कोई कैसा लिख रहा है उसकी तरह ही लिखना है. आप खुद को बाहर लाइए. अच्छा लिख पाएंगे.''

वो आगे कहते हैं कि ट्रेंडिंग क्या है उसके चक्कर में मत पड़िए वरना आपकी खासियत खो जाएगी. मैंने कभी कोशिश नहीं की कि मैं किसी और से प्रभावित होकर लिखूं.

करियर के लिहाज से कैसा है राइटिंग का प्रोफेशन
इसके जवाब में राज शेखर कहते हैं, ''देखिए करोड़ों तो नहीं मिलते, लेकिन इतना जरूर मिल जाता है कि आप मुंबई जैसे महंगे शहर में अच्छी लाइफ जी सकते हैं. शुरुआत में दिक्कत हो सकती है लेकिन संघर्ष के बाद पॉजिटिव रिजल्ट जरूर मिल सकता है. इसलिए घबराने की बात नहीं है. संघर्ष जरूर है, लेकिन करियर के लिहाज से ये बेहतरीन हो सकता है.''

पुरखों का खूबसूरत हिंदुस्तान वाला तसव्वुर, जो सच होता दिखता है

राज शेखर ने हमसे बातचीत के दौरान कई कमाल की बातें भी कीं. ऐसा लग रहा था जैसे वो बात नहीं बातों में कविता करते हैं. उन्होंने कहा, '' मैंने मलयालम फिल्म के लिए भी लिखा है. इस मलयालम फिल्म की कहानी मुंबई पर बेस्ड थी. सोचिए मलयालम फिल्म जो महाराष्ट्र की जमीन पर बन रही है, उसका गाना बनाने वाला एक तमिल लड़का है और उसे लिखने वाला एक बिहारी और गा रहा है एक हिंदुस्तानी. कितनी खूबसूरत चीज है ये और यही हिंदुस्तान है. हमारे पुरखों ने जिस हिंदुस्तान का तसव्वुर किया होगा ये वही हिंदुस्तान है.''

भाषाओं का सम्मान होना चाहिए
राज शेखर ने आगे एक कमाल की बात की. उन्होंने भाषाई स्तर पर होने वाले विभाजन का बड़ी सहजता से विरोध करते हुए कहा कि भाषाओं का सम्मान होना चाहिए. वो चाहे कोई बोली हो या भाषा जिसका व्याकरण भी नहीं है, उसका भी सम्मान होना चाहिए. 

बता दें कि राज शेखर को अबु धाबी में हाल में ही संपन्न हुए IIFA Awards 2024 में फिल्म 'एनिमल' के गाने 'पहले भी मैं' के लिए गोल्ड अवॉर्ड फॉर बेस्ट लिरिसिस्ट मिला है.

तुंबाड़ के बारे में

ये वही फिल्म है जिसकी पहली रिलीज को दर्शकों ने नकार दिया, लेकिन रीरिलीज में फिल्म ने इतनी कमाई कर ली कि 'शोले' जैसी फिल्म के रीरिलीज का रिकॉर्ड ब्रेक कर दिया. फिल्म दोबारा रिलीज होकर ब्लॉकबस्टर साबित हो गई. सोहम शाह की इस फिल्म के दूसरे पार्ट का भी ऐलान कर दिया गया है. बता दें कि पहली फिल्म को राही अनिल बर्वे ने डायरेक्ट किया था.

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