Sleep And Dementia: क्या आपको भी दिन में नींद बहुत ज्यादा आती है. अगर हां तो सावधान हो जाइए, क्योंकि इससे डिमेंशिया का खतरा बढ़ रहा है. डिमेंशिया तब होता है जब मस्तिष्क की कोशिकाएं खराब होने लगती हैं और समय के साथ धीरे-धीरे क्षतिग्रस्त होने लगती हैं. इससे इंसान की याददाश्त पर असर पड़ता है, भ्रम की स्थिति बनती है, पर्सनालिटी बदलने लगती है, डेली रुटीन तक में दिक्कतें आती हैं. एक स्टडी में इसका खुलासा हुआ है. बुजुर्गों में इसका खतरा ज्यादा है. डिमेंशिया (Dementia) दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ने वाला न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है. अल्जाइमर की बीमारी (Alzheimer) इसी का एक आम प्रकार है.
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खराब नींद से डिमेंशिया का खतरा
जर्नल न्यूरोलॉजी में पब्लिश नई स्टडी में खराब नींद और डिमेंशिया को जोड़ा है. इसमें पाया गया है कि दिन में बहुत ज्यादा नींद महसूस करने वाले 35.5% पार्टिसिपेंट्स में मोटरिक कॉग्नेटिव रिस्क सिंड्रोम विकसित हुआ है. करीब 3 साल तक चली इस स्टडी में 445 बुजुर्गों के बारें में जाना गया, जिनकी औसत उम्र 76 साल है. शुरुआत में सबकुछ सही रहा लेकिन बाद में नींद और डिमेंशिया का कनेक्शन पाया गया.
क्या कहती है स्टडी
शोधकर्ताओं ने पाया कि जिन लोगों ने खराब नींद की शिकायत की, उनमें अच्छी नींद की गुणवत्ता वाले लोगों की तुलना में मोटरिक कॉग्नेटिव रिस्क (MCR) होने की संभावना ज्यादा थी. हालांकि, डिप्रेशन के लक्षणों को मिलाने के बाद ये कनेक्शन कमजोर हो गया, जिससे पता चला कि अगर मेंटल हेल्थ को देखा जाए तो सिर्फ खराब नींद ही एमसीआर के लिए जिम्मेदार नहीं हो सकती है.
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दिन में सोने वालों में कई समस्याएं
अध्ययन में पिट्सबर्ग स्लीप क्वालिटी इंडेक्स (PHQI) का इस्तेमाल करके नींद की गुणवत्ता को चेक किया गया. जिसमें सोने के समय, स्लीप साइकिल बिगड़ने और दिन में एक्टिव रहने जैसे फैक्टर्स शामिल थे. इनमें से सिर्फ दिन में बहुत नींद आना और कम उत्साह ही एमसीआर के हाई रिस्क से जुड़ा था. शोधकर्ताओं ने दिन में नींद से बचने और मेंटल हेल्थ को बेहतर बनाने पर फोकस करने की सलाह दी है. क्योंकि दोनों ही चीजें डिमेंशिया का कारण बन सकते हैं.
Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.
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