Chhath Puja: आप महापर्व छठ का प्रसाद पा गये होंगे। पूजा पाठ में भी शामिल हुए होंगे। क्या आपको पता है कि छठ की परंपरा कब प्रारम्भ हुई थी। किस देवी- देवता ने इस व्रत को रखकर क्या हासिल किया था। आप अपने दिमाग पर बल मत डालिए। प्रभात समाचार की इस समाचार को पढ़िए और छठ की महत्ता और व्रत से मिलने वाले वरदान को हमेशा के लिए अपने शरीर के कंप्यूटर में (दिमाग) में सेव कर लीजिए। आप तक हम ये जानकारी अखिल विश्व गायत्री परिवार के प्रमुख और विख्यात अध्यात्मवेत्ता डॉ प्रणव पण्ड्या के माध्यम से लेकर आए हैं। विख्यात अध्यात्मवेत्ता डॉ प्रणव पण्ड्या का बोलना है कि हिंदुस्तान सहित अनेक राष्ट्रों में मनाये जाने वाला छठ सूर्य उपासना के लिए मशहूर महापर्व है। मूलतः सूर्य षष्ठी व्रत होने के कारण इसे छठ बोला जाता है | यह महापर्व बिहार, झारखण्ड, उत्तरप्रदेश सहित अनेक स्थानों में बड़े ही उत्साह एवं उमंग के साथ मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि छठ व्रत का शुरुआत माता कुंती ने किया था और कर्ण जैसे महाप्रतापी पुत्र को पाया था | उनके बाद द्रौपदी ने व्रत रखा था और उसके फलस्वरूप पाण्डवों द्वारा हारा हुआ राजपाट पुनः प्राप्त किया | मान्यता यह भी है कि प्रभु श्री राम और माता सीता ने भी संयुक्त रूप से विधि विधान से छठ व्रत किया और लव-कुश जैसे दिव्य प्रतिभा सम्पन्न पुत्र के माता पिता बने। भगवान दिवाकर की मुश्किल साधना-उपासना साधकों की इच्छा पूर्ण करती हैं
छठ महापर्व के समय व्रती जिस तरह दिनचर्या रखते हैं। यह स्वस्थ आहार और सकारात्मक व्यवहार दोनों मिलकर मानसिक स्थिरता और दृढ़ता के साथ महापर्व की सार्थकता को बेहतर बनाता है। चार दिवसीय छठ व्रत ही एक ऐसा महापर्व है, जहां डूबते हुए सूर्य और उगते हुए भास्कर दोनों को अर्घ्य दिया जाता है। वर्तमान समय में भगवान दिवाकर ही एकमात्र प्रत्यक्ष देवता हैं, जो समस्त जीव जंतुओं को पोषित करते हैं। इसमें सफाई और स्वच्छता वाले पक्ष को ही महत्व दिया जाए तो निश्चित रूप से इसे स्वच्छता का राष्ट्रीय पर्व बोला सकता है। छठ महापर्व की धार्मिक मान्यताएं और सामाजिक महत्व भी है, क्योंकि इसे धार्मिक भेदभाव, ऊंच-नीच,जात-पात से ऊपर उठकर एक साथ मनाते हैं। छठ पर्व को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो षष्ठी तिथि (छठ) को एक विशेष खगोलीय बदलाव होता है। इस समय सूर्य की पराबैंगनी किरणें पृथ्वी पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्र हो जाती हैं, इस कारण इसके संभावित कुप्रभावों से प्राणी मात्र की यथासंभव रक्षा करने का सामर्थ्य छठ पर्व से प्राप्त होता है। पृथ्वी के जीवों को इससे बहुत फायदा मिलता है।
विश्व विख्यात अखिल विश्व गायत्री परिवार की अधिष्ठात्री स्नेहसलिला शैलदीदी लिखती हैं कि छठ व्रत सूर्योपासना का महापर्व है। यह व्रत शुद्धता, पवित्रता, सामूहिकता और भक्ति का प्रतीक है। हमारे जीवन में छठ व्रत के दौरान जागी ऊर्जा, उत्साह साल भर बनी रहे, तो रोजाना उत्सव जैसा ही रहेगा और हमारा परिवार, समाज स्वर्ग जैसा सुन्दर दिखने लगेगा। आस्था का महापर्व छठ प्रकृति के साथ जुड़ने का एक महोत्सव का नाम है। व्रत के कुछ दिन प्रकृति से जुड़कर प्रफुल्लित होते हैं, तो यदि जीवन भर प्रकृति के अनुरूप आहार, व्यवहार रखें, तो जीवन आनंद से परिपूर्ण रहेगा। छठी मैया हम सभी को ऐसी शक्ति और भक्ति दें।