जेनेटिक कारक
वसायुक्त ट्यूमर अक्सर पारिवारिक इतिहास से जुड़े होते हैं। इसके आनुवंशिक रूप से प्रसारित होने की अधिक सम्भावना है।
आयु
ये रोग आमतौर पर 40 से 60 वर्ष की आयु के लोगों में देखा जाता है।
भार बढ़ना
वजन बढ़ना या शरीर में अतिरिक्त वसा फैटी ट्यूमर बनने का कारण हो सकता है।
चोट या घाव
शरीर पर चोट लगने या आघात लगने से वसा जमा हो सकती है।
हार्मोनल परिवर्तन
हार्मोनल परिवर्तन या हार्मोनल असंतुलन फैटी ट्यूमर के निर्माण के लिए अनुकूल वातावरण बना सकते हैं।
शरीर का चयापचय
वसा के चयापचय में परिवर्तन से वसायुक्त ट्यूमर हो सकता है। जब शरीर में वसा से संबंधित अणु एकत्रित होते हैं तो वसा बढ़ जाती है। इसका मतलब यह है कि दो प्रकार की वसा, अच्छी वसा और बुरी वसा, अचानक और असमान रूप से बढ़ जाती है।
आहार संबंधी कारक
कभी-कभी जीवनशैली फैटी ट्यूमर के निर्माण का एक प्रमुख कारक होती है। जब दैनिक आहार अस्वास्थ्यकर होता है तो वसा जमा होने की संभावना अधिक होती है। शारीरिक गतिविधि की कमी भी शरीर में वसा जमा होने में योगदान देती है।
विशेषताएँ:
वसायुक्त गांठें आमतौर पर दर्द रहित, मुलायम और स्पर्श करने पर हिलने-डुलने योग्य होती हैं। ये प्रायः त्वचा के नीचे बनते हैं, विशेषकर गर्दन, कंधों, पीठ, पेट और बाजुओं पर।
इलाज:
अधिकांश वसायुक्त ट्यूमर को उपचार की आवश्यकता नहीं होती। हालांकि, यदि वे दर्द पैदा करते हैं या कॉस्मेटिक कारणों से उन्हें शल्य चिकित्सा द्वारा हटाया जा सकता है। यदि कोई नई गांठ दिखाई दे तो उसकी पुष्टि के लिए डॉक्टर से जांच करवाना जरूरी है।
ध्यान देने योग्य सबसे महत्वपूर्ण बात
जब यह बहुत बड़ा हो जाता है तो इसे शल्य चिकित्सा द्वारा हटाया जा सकता है। मोटापे पर नियंत्रण, स्वस्थ आहार और उचित व्यायाम करके ट्यूमर को नियंत्रित किया जा सकता है। डॉक्टर को कब दिखाएं: यदि ट्यूमर तेजी से बढ़ रहा है, दर्द या जलन पैदा कर रहा है, या आपकी चलने-फिरने की क्षमता को प्रभावित कर रहा है, तो बिना देरी किए डॉक्टर को दिखाएं।