बीकानेर न्यूज़ डेस्क - बीकानेर अपनी समृद्ध परम्परा और संस्कृति के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। यहां होली कार्यक्रम शुरू करने से पहले राजपरिवार की कुलदेवी से अनुमति ली जाती है, जिसके बाद पूरे शहर में होली का आयोजन उत्साहपूर्वक किया जाता है। यह अनूठी परम्परा करीब 537 वर्षों से चली आ रही है और शहर की स्थापना के बाद से शाकद्वीपीय समाज द्वारा इसका निरंतर पालन किया जा रहा है, जो बीकानेर की सांस्कृतिक विरासत में चार चांद लगाता है।
शाकद्वीपीय समाज के पुरुषोत्तम लाल सेवग और पवन शर्मा के अनुसार शहर के बाहर से गैर निकाली जाती है, जिसमें सबसे पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है और माता जी के भजन गाए जाते हैं। इस समारोह में हास्य गीत, रसभरा गीत 'पन्ना' और बच्चों व बड़ों की भागीदारी देखी जा सकती है। गैर गोगागेट से शहर में प्रवेश करती है और फिर इसे दूसरे समुदाय को सौंप दिया जाता है। इसके बाद होली का कार्यक्रम शुरू होता है और बाद में रम्मत व अन्य समुदायों की गैर निकाली जाती है।
गुलाल और इत्र से होती है शुरुआत
शहर की स्थापना के बाद बीकानेर राज्य के संस्थापक राव बीकाजी ने राजपरिवार की कुलदेवी नागणेचीजी माता को फाग खेलने के बाद शाकद्वीपीय समाज को शहर में प्रवेश की अनुमति दी थी। तब से शाकद्वीपीय समाज फाल्गुन सुदी सप्तमी को नागणेचीजी माता को गुलाल और इत्र चढ़ाकर तथा नागणेचीजी मंदिर से फाग गीत गाते हुए गेर के रूप में शहर में प्रवेश करता है। शाम को 6:30 बजे समाज के पुरुष और महिलाएं नागणेचीजी मंदिर पहुंचकर 7 से 8 बजे तक फाग गीत गाते हैं और इस दौरान माता के साथ गुलाल, फूल और इत्र से फाग खेला जाता है। रात 8 बजे माता की आरती के बाद गुलाल उड़ाते हुए अपने-अपने घर के लिए निकल पड़ते हैं। इसके बाद शहर में पांच स्थानों पर सामूहिक समागम होता है और अंत में रात 11 बजे गोगागेट से गेर के रूप में शहर में प्रवेश करते ही होली शुरू हो जाती है।
पांच स्थानों पर होती है गोठ
शाकद्वीपीय मग ब्राह्मण समाज के लिए यह दिन बहुत महत्वपूर्ण होता है। शहर में पांच अलग-अलग स्थानों पर सामूहिक गोठ का आयोजन किया जाता है, जिसमें श्यामोजी वंश मूंधड़ा प्रन्यास भवन, हसावतों की तलाई, नाथ सागर स्थित सूर्य भवन, डागा चौक स्थित शिव शक्ति भवन और जसोलाई स्थित जनेश्वर भवन में प्रसाद वितरित किया जाता है। इसके अलावा चौक स्थित शिव शक्ति सदन में वृंदावन पार्टी द्वारा प्रस्तुत सांस्कृतिक कार्यक्रम इस दिन की रौनक और उल्लास को और बढ़ा देते हैं।
विभिन्न स्थानों से गुजरती है गैर
यह गैर नागणेछी मंदिर से शुरू होती है, यहां सबसे पहले समाज के बुजुर्ग और युवा सामूहिक रूप से प्रसाद ग्रहण करते हैं। इसके बाद रात 11:30 बजे सभी लोग गोगागेट पर एकत्रित होते हैं और फाग गीत गाते हुए गैर के रूप में शहर में प्रवेश करते हैं। इस क्रम में यह गेर बागड़ी मोहल्ला, भुजिया बाजार, चाय पट्टी, बैदोन बाजार, नाइयों स्ट्रीट, मरूनायक चौक और चौधरी घाटी से होकर गुजरती है और मुंधड़ा सेवगोन चौक पर समाप्त होती है।