हरिद्वार, 14 अप्रैल . वैशाखी के अवसर पर श्री हरिद्वार आश्रम में चल रहे सत्संग कार्यक्रम में महात्मा दिलेश्वरानन्द दास ने कहा कि परमात्मा, परमेश्वर या परमब्रह्म की प्राप्ति न तो जप, तप, व्रत, यज्ञ, तीर्थ स्नान या सन्यास से होती है और न ही केवल योग-साधना से. उन्होंने स्पष्ट किया कि परमात्मा की सच्ची प्राप्ति तत्वज्ञान से ही संभव है. यह कार्यक्रम का आयोजन संत ज्ञानेश्वर स्वामी सदानंद परमहंस द्वारा संस्थापित सदानंद तत्वज्ञान परिषद के तत्वावधान में किया गया.
महात्मा दिलेश्वरानन्द ने कहा कि जीव को ही आत्मा या ईश्वर और आत्मा या ईश्वर को ही परमात्मा या परमेश्वर मानने वाले लोग साधना से परमात्मा परमेश्वर या खुदा को प्राप्त कर लेने की घोषणा करते हैं, जबकि जीव एवं ईश्वर (आत्मा) और परमेश्वर (परमात्मा) तीनों हर मामले में अलग-अलग हैं. वास्तव में योग-साधना या अध्यात्म से हम जिसे प्राप्त करते हैं, वह परमात्मा, परमेश्वर नहीं बल्कि आत्मा, ईश्वर है और आत्मा, ईश्वर परमात्मा, परमेश्वर का अंश है. उस आत्मा या ईश्वर का मायावी दोष-गुण से युक्त होने को ही जीव कहते हैं. उन्हाेंने कहा कि तीनों ही एक दूसरे से हर मामले में सर्वथा भिन्न-भिन्न होते हैं, जिन्हें तत्त्वज्ञान रूप भगवद् ज्ञान के अंतर्गत यथावत साक्षात् पृथक-पृथक देखा जाता है. बातचीत करते हुए उनका परिचय-पहचान भी प्राप्त किया जाता है. गीता वाले विराट रूप को भी सामने ही देखने का सुअवसर तत्त्वज्ञान के अंतर्गत ही हर भगवद् समर्पित शरणागत जिज्ञासु को प्राप्त होता है. उन्हाेंने बताया कि वर्तमान में सन्त ज्ञानेश्वर ने अपने हजारों-हजार शिष्यो को जीव ईश्वर परमेश्वर का साक्षात् दर्शन कराया.
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/ डॉ.रजनीकांत शुक्ला