बिहार के सासाराम के बड्डी गांव के आकाशदीप ने इंग्लैंड की धरती पर वह इतिहास रच दिया, जो पिछले 39 सालों में कोई भारतीय गेंदबाज नहीं कर सका था। एजबेस्टन में खेले गए टेस्ट मैच में उन्होंने 10 विकेट झटककर भारत को ऐतिहासिक जीत दिलाई। पहली पारी में 4 और दूसरी पारी में 6 विकेट लेकर उन्होंने 1986 में चेतन शर्मा द्वारा रचा गया कारनामा दोहराया। इस अभूतपूर्व प्रदर्शन से न केवल भारत, बल्कि उनका गांव सासाराम भी गर्व से झूम उठा है।
लेकिन इस सफलता के पीछे एक लंबा संघर्ष छिपा है। एक समय ऐसा भी था जब आकाशदीप अपने करियर और भविष्य को लेकर मायूस थे। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी, खुद को मजबूत किया, और आज उसी जुनून और मेहनत के दम पर टीम इंडिया का हिस्सा बन चुके हैं।
परिवारिक पृष्ठभूमि और संघर्ष की कहानी
रोहतास जिले के एक सामान्य परिवार में जन्मे आकाशदीप के पिता रामजी सिंह एक शारीरिक शिक्षक थे। घर में क्रिकेट को लेकर सख्ती थी और आकाशदीप को खेलने की अनुमति नहीं थी। लेकिन क्रिकेट के प्रति उनकी दीवानगी उन्हें सासाराम से दुर्गापुर और फिर कोलकाता ले गई।
वर्ष 2015 में उनकी जिंदगी में बड़ा तूफान आया। पहले पिता और फिर दो महीने बाद बड़े भाई का निधन हो गया। इस गहरे आघात ने उन्हें क्रिकेट से तीन साल दूर कर दिया। इस दौरान वह मां लड्डूमा देवी और भतीजियों की देखभाल में लगे रहे। आर्थिक तंगी और जिम्मेदारियों के बावजूद उन्होंने अपने जज्बे को मरने नहीं दिया।
खुद पर भरोसा और सपनों की उड़ान
अपने चचेरे भाई वैभव कुमार के सहयोग से आकाशदीप दुबई में एक टूर्नामेंट खेलने गए और फिर कोलकाता लौटकर बंगाल की अंडर-23 टीम का हिस्सा बने। 2017-18 में उन्होंने 42 विकेट लेकर सबका ध्यान खींचा। इसके बाद रणजी ट्रॉफी में शानदार प्रदर्शन करते हुए 2022 में रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर (RCB) द्वारा आईपीएल में चुने गए।
इंडिया-ए टीम से होते हुए उन्होंने राष्ट्रीय टीम में अपनी जगह बनाई। 2024 में रांची टेस्ट में इंग्लैंड के खिलाफ अपने डेब्यू के दौरान उनकी मां स्टेडियम में मौजूद थीं — यह पल उनके लिए बेहद भावुक और गर्वभरा था।
गांव का गौरव और प्रेरणा का स्रोत
आज आकाशदीप न केवल भारत के लिए खेल रहे हैं, बल्कि अपने गांव सासाराम में एक क्रिकेट अकादमी चलाकर सैकड़ों बच्चों को भी प्रेरित कर रहे हैं। उन्होंने यह साबित कर दिया है कि कठिनाइयाँ चाहे जितनी भी हों, अगर इरादे मजबूत हों तो कोई भी सपना हकीकत में बदला जा सकता है।
गांव में जश्न का माहौल
हालांकि उनकी मां लड्डूमा देवी फिलहाल लखनऊ में हैं, लेकिन उनके गांव में खुशी की लहर है। चाचा गुरु प्रसाद और श्यामलाल का कहना है कि आकाशदीप ने गांव का नाम रोशन किया है और अंग्रेजों को उन्हीं की सरजमीं पर हराकर एक नया इतिहास लिखा है। गांव के लोग गर्व से उन्हें बधाइयाँ दे रहे हैं।
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