दिल्ली हाईकोर्ट में जज रहते जस्टिस यशवंत वर्मा के आवास से कथित तौर पर बड़ी मात्रा में जले हुए नोट मिले थे. इस मामले में जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग लाने की तैयारी सरकार ने कर ली है. इसके लिए सरकार ने लोकसभा का रास्ता चुना है. हालांकि इसकी शुरुआत कांग्रेस ने की है. लोकसभा में प्रस्ताव लाने के लिए 100 सांसदों के हस्ताक्षर की जरूरत होगी. इससे पहले ही कांग्रेस ने 50 से ज्यादा सांसदों के साइन करा लिए हैं.
राज्यसभा में महाभियोग प्रस्ताव लाने के लिए 50 सांसदों के दस्तखत जरुरी होते हैं. विपक्ष ने पिछले सत्र में 50 से ज़्यादा सांसदों के दस्तखत के साथ प्रस्ताव चेयर को दिया था. अब सरकार नए सिरे से लोकसभा में महाभियोग लाना चाहती है. हालांकि लोकसभा और राज्यसभा के नियम अलग हैं. लोकसभा में महाभियोग लाने के लिए 100 सांसदों के दस्तखत चाहिए हैं. लोकसाभ के जरिए सरकार सभी दलों के दस्तखत चाहती है.
क्या है विपक्ष का पूरा प्लान?लोकसभा में मोशन लाने के लिए 100 सांसद चाहिए वो आपके पास हैं, जैसे राज्यसभा में 50 से ज़्यादा का दस्तखत कराकर हमने दिया था. इसलिए सत्ता पक्ष मोशन लाने में सक्षम है, वो लाये. आखिर राज्यसभा में हमने जो शुरुआत की, उसके साथ क्यों नहीं आये?
साथ ही मोशन आने पर बहस में विपक्ष को जस्टिस शेखर यादव का मुद्दा उठाने का मौका मिलेगा ही, इसके साथ ही हाल में जजों को रिटायरमेंट के बाद मिले पदों का हवाला देकर सरकार को घेरने का मौका मिलेगा. हालांकि, सूत्रों का कहना है कि, इस रणनीति के तहत विपक्ष अपने सियासी मकसद में कामयाब होकर करप्शन के खिलाफ जस्टिस वर्मा के खिलाफ मोशन का समर्थन भी कर देगा.
विपक्ष की सरकार को दो टूककांग्रेस सूत्रों के मुताबिक, विपक्षी दलों ने पहले ही जस्टिस वर्मा के खिलाफ 50 से ज्यादा सांसदों के दस्तखत के साथ महाभियोग प्रस्ताव भेजा था. यानी महाभियोग की शुरुआत विपक्ष की तरफ से की गई है. ऐसे में अब राज्यसभा के बजाय लोकसभा में सबको साथ लेकर चलने की सियासत करके सत्ता पक्ष सियासी नंबर बढ़ाना चाहता है. कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्षी दलों ने तय किया कि, जब राज्यसभा में इसी बात पर हमने शुरुआत की, तो आपने साथ नहीं दिया, तो लोकसभा में हमारे दस्तखत की जरूरत क्यों?