मनोज जरांगे पाटिल ने 'दिल्ली चलो' का ऐलान किया
Samachar Nama Hindi September 19, 2025 08:42 PM

महाराष्ट्र में पिछले करीब दो साल से मराठा आरक्षण आंदोलन को लेकर मनोज जरांगे पाटिल सुर्खियों में बने हुए हैं। उनकी सक्रियता और आंदोलनों ने राज्य सरकार के लिए कई बार सियासी चुनौतियां खड़ी की हैं।

पिछले महीने जरांगे पाटिल ने मुंबई कूच कर फडणवीस सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी थीं। इस दौरान सरकार को हैदराबाद गैजेट मानने के लिए राजी कर लिया गया था, लेकिन अब जरांगे पाटिल सरकार से अपने वादों को पूरा करने की मांग कर रहे हैं।

इस बीच ओबीसी नेता और वरिष्ठ नेता छगन भुजबल ने नाराजगी जताई है। उनका कहना है कि आंदोलन का यह स्वरूप राजनीतिक विवादों और संगठनात्मक मतभेदों को बढ़ा सकता है।

हालांकि, मनोज जरांगे पाटिल ने नया दांव खेलते हुए 'दिल्ली चलो' का ऐलान किया है। उन्होंने कहा कि मराठा आरक्षण की मांग को लेकर दिल्ली में प्रदर्शन और आंदोलन किया जाएगा। जरांगे पाटिल के इस कदम से यह संकेत मिलता है कि अब मराठा आंदोलन राज्य की सीमाओं से बाहर फैल रहा है।

विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम हार्दिक पटेल के पाटीदार आंदोलन की तर्ज पर उठाया गया है। जैसे पाटीदार नेता ने केंद्र सरकार के सामने अपनी मांगें रखी थीं, वैसे ही जरांगे पाटिल भी अब केंद्र सरकार से आरक्षण के लिए देशभर के मराठा समुदाय को जुटाने का प्रयास करेंगे।

जरांगे पाटिल ने मीडिया से बातचीत में कहा कि इस आंदोलन का उद्देश्य केवल मराठा समाज के अधिकारों की रक्षा करना है। उन्होंने कहा, "दिल्ली में हम मराठा समुदाय के लिए आरक्षण की मांग को मजबूती से रखेंगे और केंद्र सरकार से वादों को पूरा करने की मांग करेंगे।"

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इस कदम से राज्य और केंद्र सरकार दोनों पर दबाव बढ़ सकता है। अगर आंदोलन देशव्यापी स्तर पर फैलता है, तो सरकार को कानूनी और सियासी स्तर पर जवाब देना पड़ सकता है।

मराठा आरक्षण आंदोलन की यह नई दिशा यह दर्शाती है कि मनोज जरांगे पाटिल केंद्र की नीति और राज्य सरकार की घोषणाओं के पालन को लेकर गंभीर हैं। आंदोलन का यह स्वरूप भविष्य में राजनीतिक हलचल और प्रशासनिक चुनौतियों को जन्म दे सकता है।

कुल मिलाकर, मनोज जरांगे पाटिल का 'दिल्ली चलो' आंदोलन मराठा आरक्षण की मांग को राज्य स्तर से राष्ट्रीय स्तर तक ले जाने की दिशा में पहला बड़ा कदम माना जा रहा है। इससे न केवल मराठा समुदाय की आवाज़ बुलंद होगी, बल्कि सरकारों पर अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने का दबाव भी बढ़ेगा।

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