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मुख्य न्यायाधीश मनीन्द्र मोहन श्रीवास्तव और न्यायमूर्ति जी अरुलमुरुगन की पीठ के सामने आयोग के वकील निरंजन राजगोपालन ने कहा कि यह प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट के बिहार मामले के दिशा-निर्देशों के मुताबिक होगी।
उन्होंने बताया कि आयोग ने सभी राज्यों के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों (CEOs) के साथ बातचीत कर एकसमान प्रक्रिया सुनिश्चित की है। यह बयान एक जनहित याचिका (PIL) की सुनवाई के दौरान आया, जिसे पूर्व AIADMK विधायक बी. सत्यनारायणन ने दायर किया था।
क्या है याचिका का पूरा मामला?
बी. सत्यनारायणन, जो 2016 से 2021 तक टी नगर विधानसभा क्षेत्र के विधायक रहे, ने अपनी याचिका में सनसनीखेज आरोप लगाए। उन्होंने दावा किया कि 2021 के विधानसभा चुनाव से पहले टी नगर की मतदाता सूची में भारी गड़बड़ियां हुईं। हजारों मतदाताओं के नाम गलत तरीके से हटाए गए, जिनमें ज्यादातर AIADMK समर्थक थे।
सत्यनारायणन ने बताया कि वे 2021 में DMK प्रत्याशी जे. करुणानिधि से महज 137 वोटों से हार गए थे। उन्होंने कहा, “इतने कम अंतर से हार और मतदाता सूची में हजारों नामों की गड़बड़ी साफ दिखाती है कि कुछ गलत हुआ, जिसने चुनाव नतीजों को प्रभावित किया।”
जनसंख्या बढ़ी, लेकिन वोटर क्यों नहीं?
सत्यनारायणन ने कोर्ट को बताया कि पिछले 25 सालों में टी नगर की जनसंख्या में भारी इजाफा हुआ, लेकिन मतदाताओं की संख्या में मामूली बढ़ोतरी हुई। 1996 में 2,08,349 वोटर थे, जो 2021 में सिर्फ 2,45,005 हो गए। इसे “स्थिर वृद्धि” बताते हुए उन्होंने इसे कानूनी और संवैधानिक चिंता का विषय बताया। उनकी याचिका में मांग की गई कि टी नगर के सभी 229 मतदान केंद्रों की मतदाता सूची की बूथ स्तर के अधिकारियों (BLOs) के जरिए पूरी जांच हो।
BLOs पर गंभीर आरोप
सत्यनारायणन ने आरोप लगाया कि BLOs ने बिना जमीनी सर्वे के मतदाता सूची तैयार की, जिससे डुप्लिकेट नाम, गैर-निवासियों और मृत लोगों के नाम शामिल हो गए। साथ ही, कई वैध मतदाताओं के नाम हटा दिए गए। उन्होंने खुद 229 में से 100 बूथों की जांच की और भारी गड़बड़ियां पाईं। उन्होंने ये रिपोर्टें चुनाव अधिकारियों को दीं, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। सत्यनारायणन ने इसे “कर्तव्य में लापरवाही” और लोकतंत्र की निष्पक्षता को कमजोर करने वाला बताया।
13,000 AIADMK समर्थकों के नाम हटाए गए?
याचिका में एक तमिल अखबार की रिपोर्ट का जिक्र है, जिसमें दावा किया गया कि 13,000 से ज्यादा AIADMK समर्थकों के नाम मतदाता सूची से हटाए गए। सत्यनारायणन ने कहा कि यह जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 और संविधान के अनुच्छेद 326 का उल्लंघन है। उन्होंने चेतावनी दी कि ऐसी गड़बड़ियां चुनावों की निष्पक्षता को खतरे में डालती हैं और जनता का भरोसा तोड़ती हैं।
चुनाव आयोग का जवाब
निर्वाचन आयोग के वकील ने कोर्ट को भरोसा दिलाया कि याचिकाकर्ता की सभी शिकायतों का समाधान आगामी मतदाता सूची पुनरीक्षण में कर लिया जाएगा। उन्होंने कहा कि आयोग पारदर्शी प्रक्रिया के लिए प्रतिबद्ध है और सुप्रीम कोर्ट के बिहार मामले के निर्देशों का पालन करेगा। कोर्ट ने आयोग को सुप्रीम कोर्ट के आदेश की कॉपी जमा करने का निर्देश दिया और याचिकाकर्ता को अतिरिक्त दस्तावेज जमा करने की इजाजत दी। सुनवाई को एक हफ्ते के लिए टाल दिया गया।