Chhattisgarh High Court : बेटियों का हक खत्म? पिता की संपत्ति पर हाईकोर्ट का वह फैसला जिसे जानना हर किसी के लिए जरूरी है
Newsindialive Hindi October 25, 2025 11:42 PM

News India Live, Digital Desk : Chhattisgarh High Court : संपत्ति के अधिकार को लेकर हमारे देश में हमेशा से बहस होती रही है, खासकर जब बात बेटियों के हक की आती है। हम सब जानते हैं कि कानून ने अब बेटे और बेटियों को बराबर का अधिकार दिया है, लेकिन क्या यह अधिकार हर स्थिति में लागू होता है? हाल ही में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट (Chhattisgarh High Court) ने एक ऐसा फैसला सुनाया है, जिसने संपत्ति के बंटवारे से जुड़े एक बहुत ही महत्वपूर्ण और बारीक पहलू को उजागर किया है।कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए साफ किया है कि एक बेटी अपने पिता की संपत्ति में हिस्सेदारी का दावानहीं कर सकती, अगर उस संपत्ति काउत्तराधिकार (Succession) एक खास समय से पहले ही खुल चुका हो। यह फैसला उन हजारों पुराने मामलों पर असर डाल सकता है, जो आज भी अदालतों में चल रहे हैं।क्या है वह ‘एक शर्त’ जिसने सब कुछ बदल दिया?यह पूरा मामला एक तारीख और एक कानून से जुड़ा है—हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 (Hindu Succession Act, 1956)।छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने अपने फैसले में यह स्पष्ट किया कि अगर किसी पिता की मृत्यु17 जून, 1956 (यानी इस कानून के लागू होने की तारीख) सेपहले हो गई थी, तो उनकी संपत्ति का बंटवारा उसी समय के पुराने हिंदू कानूनों के तहत हो चुका माना जाएगा। उस समय के नियमों के अनुसार, बेटियों को पिता की संपत्ति में बराबर का हक नहीं मिलता था।इसे सरल शब्दों में ऐसे समझें:कोर्ट का तर्क: हाईकोर्ट ने कहा कि अगर पिता की मृत्यु 1956 से पहले हो गई, तो उत्तराधिकार उसी दिन खुल गया और संपत्ति उस समय के नियमों के अनुसार पुरुष उत्तराधिकारियों (बेटों) को मिल गई। 1956 में बना नया कानून या 2005 का संशोधन, पहले से ही हो चुके और "बंद" हो चुके बंटवारे को फिर से नहीं खोल सकता।तो क्या बेटियों के अधिकार खत्म हो गए?नहीं, ऐसा बिल्कुल नहीं है। यह फैसला आज की बेटियों के अधिकारों को खत्म नहीं करता है, बल्कि यह केवल उनबहुत पुराने मामलों पर लागू होता है, जहां संपत्ति के मालिक (पिता या दादा) की मृत्यु 1956 में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम आने से भी पहले हो गई थी।यह फैसला अलग क्यों है: यह मामला 2005 के संशोधन से भी पुरानी स्थिति पर आधारित है। यह उन मामलों के लिए एक महत्वपूर्ण कानूनी बिंदु तय करता है, जहां संपत्ति का बंटवारा आजादी के तुरंत बाद के दौर में हुआ था।यह फैसला हमें यह बताता है कि संपत्ति के कानून कितने जटिल होते हैं और हर मामले के तथ्य और तारीखें बहुत मायने रखती हैं। यह उन लोगों के लिए एक बड़ी सीख है, जिनके परिवारों में दशकों पुराने संपत्ति विवाद चल रहे हैं।
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