मुंबई, 14 नवंबर। बंगाली सिनेमा के महान अभिनेता, कवि और लेखक सौमित्र चट्टोपाध्याय ने अपने अभिनय और विचारों से भारतीय फिल्म उद्योग को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया। उनके योगदान को इस कदर सराहा गया कि प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक सत्यजीत रे ने अपनी कई फिल्मों की कहानियों को सौमित्र के व्यक्तित्व को ध्यान में रखकर लिखा।
सत्यजीत रे ने अपनी 34 फिल्मों में से 15 में सौमित्र को मुख्य भूमिका दी, जो किसी भी अभिनेता के लिए एक बड़ी उपलब्धि मानी जाती है।
सौमित्र चट्टोपाध्याय का जन्म 19 जनवरी 1935 को पश्चिम बंगाल के कृष्णानगर में हुआ। उनके पिता एक वकील थे और नाटक में भी रुचि रखते थे। उनके परिवार में कला और साहित्य का गहरा प्रभाव था, जिससे सौमित्र का झुकाव अभिनय की ओर बढ़ा। उन्होंने कोलकाता से अपनी पढ़ाई पूरी की और बंगाली साहित्य में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने नाटकों में भाग लेना शुरू किया और धीरे-धीरे अभिनय उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा बन गया।
सिनेमा में कदम रखने से पहले, सौमित्र ऑल इंडिया रेडियो में अनाउंसर के रूप में कार्यरत थे। उनकी गहरी आवाज और आत्मविश्वास ने उन्हें फिल्म निर्देशक सत्यजीत रे के सामने लाया, जिन्होंने उन्हें अपनी फिल्म 'अपुर संसार' (1959) में मुख्य भूमिका के लिए चुना। यह फिल्म प्रसिद्ध अपु त्रयी का अंतिम भाग थी।
अपु त्रयी में तीन प्रमुख फिल्में शामिल हैं: 'पाथेर पांचाली' (1955), 'अपराजितो' (1956), और 'अपुर संसार' (1959)। इस फिल्म में सौमित्र ने अपु का किरदार निभाया, जिससे वे बंगाली सिनेमा के नए सितारे बन गए।
इसके बाद, सौमित्र और सत्यजीत रे का एक लंबा और सफल सहयोग शुरू हुआ, जिसने बंगाली सिनेमा को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई। 'अभिजान', 'चारुलता', 'कापुरुष', 'अरण्येर दिनरात्रि', 'अशनि संकेत', 'सोनार केला', 'जॉय बाबा फेलुनाथ', 'घरे-बाइरे', 'गणशत्रु', और 'शाखा प्रशाखा' जैसी फिल्मों में उनकी जोड़ी ने जादू बिखेरा।
सत्यजीत रे ने एक बार कहा था, 'मैंने कई पटकथाएं सौमित्र को ध्यान में रखकर लिखी हैं।'
सौमित्र केवल एक अभिनेता नहीं थे, बल्कि एक विचारशील कलाकार भी थे। उन्होंने कभी भी अभिनय को पैसे या प्रसिद्धि का साधन नहीं माना। उनका मानना था, 'मैं फिल्मों में पैसे के लिए नहीं आया, बल्कि खुद को अभिव्यक्त करने के लिए आया हूं।'
अपने करियर में, उन्होंने मृणाल सेन, तपन सिन्हा, तरुण मजूमदार और ऋतुपर्णो घोष जैसे निर्देशकों के साथ भी काम किया। 'कोनी', 'सात पाके बांधा', 'झिंदर बांदी', और 'तीन कन्या' जैसी फिल्मों में उन्होंने अपनी छाप छोड़ी।
सौमित्र का थिएटर और साहित्य से भी गहरा संबंध था। वे एक उत्कृष्ट कवि और नाटककार थे, और लोग उनकी कविताएं सुनने के लिए सभागारों में आते थे। उन्होंने कई नाटक लिखे और निर्देशित किए, जिससे उनकी कला का दायरा और भी विस्तृत हुआ।
उनके अद्वितीय योगदान के लिए उन्हें कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिले, जिनमें पद्म भूषण (2004), दादा साहेब फाल्के पुरस्कार (2012), और फ्रांस का 'लीजन ऑफ ऑनर' (2018) शामिल हैं। इसके अलावा, उन्हें कई बार राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार भी मिले।
15 नवंबर 2020 को कोलकाता में 85 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। उनके जाने से बंगाली सिनेमा ने अपना सबसे बड़ा सितारा खो दिया, लेकिन उनकी फिल्में और उनके किरदार आज भी जीवित हैं।