वो पाकिस्तानी सिंगर जिसे रोकने की कोशिश की थी दिलीप कुमार ने!
IANS एजेंसी September 20, 2024 07:42 PM

Noor Jehan Birthday Special: 'जवां है मोहब्बत, हसीं है जमाना, लुटाया है दिल ने खुशी का खजाना', ये गाना है फिल्म अनमोल घड़ी का और इस गीत को आवाज दी थी मल्लिका-ए-तरन्नुम नूरजहां ने. उनकी आवाज का जादू ऐसा था कि जो भी उन्हें सुनता, वह उनकी आवाज में खो जाता. कई दशक तक उन्होंने अपनी जादुई आवाज से लोगों के दिलों पर राज किया.

लता मंगेशकर भी थीं नूरजहां की फैन

नूरजहां की लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि 'भारत रत्न' स्वर कोकिला भी उनकी बहुत बड़ी फैन थीं. जब लता मंगेशकर ने फिल्मों में गाना शुरू किया था तो वह नूरजहां से प्रभावित थीं. वह दोनों बहुत ही कम समय में बहुत अच्छी दोस्त बन गई थीं, लेकिन देश के बंटवारे के बाद नूरजहां पाकिस्तान चली गईं और लता मंगेशकर भारत में ही रहीं. हालांकि, बंटवारे की आंच उनकी दोस्ती पर नहीं आई.

21 सितंबर 1926 को पंजाब के कसुर में पैदा हुईं नूरजहां के बचपन का नाम अल्लाह राखी वसाई था. नूरजहां के माता पिता थिएटर में काम करते थे और उनका संगीत की ओर भी झुकाव था. घर का माहौल संगीतमय था और इसका प्रभाव उन पर भी पड़ा. जब वह छह साल की थीं तो उन्होंने गाना गाना शुरू कर दिया, उनके इस शौक से परिवार वाले भी प्रभावित हुए और उन्होंने नूरजहां को घर में संगीत की शिक्षा देने की व्यवस्था की.


सिंगर के साथ-साथ एक्टर भी थीं नूरजहां

नूरजहां ने संगीत की शुरुआती शिक्षा कज्जनबाई से ली, लेकिन बाद में उन्होंने शास्त्रीय संगीत की शिक्षा उस्ताद गुलाम मोहम्मद और उस्ताद बडे़ गुलाम अली खां से ली. इस दौरान उन्होंने बचपन में ही सिंगिंग के अलावा एक्टिंग में भी हाथ आजमाया. बाल कलाकार के तौर पर साल 1930 में रिलीज हुई फिल्म 'हिन्द के तारे' से अपने फिल्मी करियर की शुरुआत की. तब तक उनका नाम अल्लाह राखी वसाई था. हालांकि, गायिका मुख्तार बेगम ने उन्होंने नूरजहां नाम दिया.

1937 आते-आते नूरजहां का परिवार लाहौर शिफ्ट हो गया. नूरजहां ने 'गुल-ए-बकवाली' फिल्म में अभिनय किया और ये सुपरहिट साबित हुई और इसके गीत भी बहुत लोकप्रिय हुए. इसके बाद 'यमला जट' (1940), 'चौधरी' जैसी फिल्में की.

इनके गाने 'कचियां वे कलियां ना तोड़' और 'बस बस वे ढोलना कि तेरे नाल बोलना' लोगों की जुबान पर चढ़ गए. साल 1942 में उनकी फिल्म 'खानदान' आई, जिसमें पहली बार उन्होंने लोगों का ध्यान खींचा. इसी फिल्म के निर्देशक शौकत हुसैन रिजवी के साथ बाद में उन्होंने शादी कर ली, लेकिन 1953 में दोनों अलग हो गए. नूरजहां ने दूसरी शादी एजाज दुर्रानी से की थी, जो कुछ सालों बाद टूट गई.

दिलीप कुमार ने की थी भारत में रोकने की कोशिश

भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के बाद नूरजहां हमेशा के लिए पाकिस्तान चली गई. फिल्म अभिनेता दिलीप कुमार ने नूरजहां से भारत में ही रहने की पेशकश की थी, मगर उन्होंने यहां रुकने से मना कर दिया और कहा 'मैं जहां पैदा हुई हूं, वहीं जाऊंगी.'

हालांकि, वह पाकिस्तान जाने के बाद भी भारतीय फिल्मों के लिए गाने गाती रहीं. भारत में रहते हुए नूरजहां ने 'खानदान', 'जुगनू', 'दुहाई', 'नौकर', 'दोस्त', 'बड़ी मां' और 'विलेज गर्ल' में काम किया. बतौर अभिनेत्री नूरजहां की आखिरी फिल्म 'बाजी' थी, जो 1963 में रिलीज हुई थी. उन्होंने पाकिस्तान में रहकर 14 फिल्में बनाई थी.

इस बीच उन्होंने गायकी को जारी रखा. नूरजहां को सर्वश्रेष्ठ महिला गायिका के लिए 15 से अधिक निगार पुरस्कार, सर्वश्रेष्ठ उर्दू गायिका के लिए आठ और पंजाबी पार्श्व गायिका के लिए कई अवॉर्ड से नवाजा गया. उनकी दिलकश आवाज के चलते उन्हें मल्लिका-ए-तरन्नुम की उपाधि दी गई. मल्लिका-ए-तरन्नुम ने 23 दिसंबर 2000 को हार्ट अटैक के कारण दुनिया को अलविदा कह दिया. उस समय वह 74 साल की थीं.

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