सेंसेक्स 84 हजार के पार, अर्थव्यवस्था है बुलंदी पर और पकड़े रफ्तार
डॉ. सूर्यभूषण, प्रोफेसर September 21, 2024 05:12 PM

हाल ही में सेंसेक्स ने लंबी छलांग मारी है और सेंसेक्स 84 हजार के पार चला गया है. इसके बाद निफ्टी में भी भारी उछाल देखने को मिला और कुल मिलाकर बाजार में एक उत्साह का वातावरण देखने को मिला है. भारत में दो प्रमुख संस्थान हैं, जो शेयर बाजार की ट्रेडिंग करते हैं. उसमें एक बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज है, जो सबसे पुराना है. वह प्राइवेट सोसायटी की तरह से बना है और उसमें 30 बडे़ शेयर्स को चुना जाता है. ये पूरी अर्थव्यवस्था का प्रतिनिधित्व करते हैं. जैसे, एक कंपनी अगर ऑयल की होगी, तो दूसरी मैन्युफैक्चरिंग की, यानी उस बकेट में एक तरह से पूरी इकोनॉमी दृश्यमान रहती है. ये 30 बहुत बड़ी कंपनियों के रहते हैं. इसमें आइटी, फार्मा, मैन्युफैक्चरिंग, ट्रेड इत्यादि सभी की कंपनी होती है और इस बास्केट में जो कंपनियां होती हैं, वो लीडर की भूमिका में होती हैं, लीडर की तरह होती हैं. हो सकता है कि दो साल पहले वो लीडर न हों, अभी न हों, लेकिन वो सैंपल पूरी जनसंख्या (कंपनियों की) का प्रतिनिधित्व करती है. 

सेन्सेक्स को समझिए 

ये जो 30 कंपनियां हैं, उनका इन्डेक्स बनाया जाता है. यह 1978 से शुरू हुआ यानी वही इसका आधार-वर्ष है. इनकी वैल्यूज को 100 के स्केल पर मापा गया. जब लोग लगातार ट्रेड  करते हैं,  तो उतार-चढ़ाव होता है, आज वही जो आर्च (इन्डेक्स, झुकाव) है, वह रिकॉर्डतोड़ 84 हजार तक पहुँच गया है. दूसरा जो इन्डिकेटर है, वो सरकार ने 1992 का आधार-वर्ष मानकर 1994 में बनाया था. उसको निफ्टी कहते हैं. निफ्टी में सरकार की समिति बैठी और उसने तय किया कि वह बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज की तरह एक सरकार भी अपना सिस्टम बनाएगी. तो, यहां जो मेजर किया जाता है, उसको निफ्टी बोला जाता है और बीएसई (बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज) में जो होता है, उसे सेन्सेक्स बोलते हैं. सेन्सेक्स दरअसल दो शब्दों को मिलाकर बनाया गया है. वह सेंसिटिव और इन्डेक्स दोनों के मेल से बना हुआ शब्द है. चूंकि वह काफी संवेदनशील होता है, इसलिए उसका ऐसा नाम रखा गया है. 

नेशनल स्टॉक एक्सचेंज में जो ट्रेडिंग होती है, उसमें जो बास्केट बनाया गया है, वो 50 शेयर्स का है. वह थोड़ा और बेहतर प्रतिनिधित्व करता है. जाहिर तौर पर निफ्टी का जो मूवमेंट है, वह थोड़ा बेहतर रिप्रजेंंटेशन है, एनएसई की तुलना में. इसको अर्थव्यवस्था से कैसे जोड़ना है, यह जानने के लिए कुछ बुनियादी बातें जाननी होंगी. 

शेयर बाजार मतलब भविष्य की कवायद

भारत के शेयर बाजार में जो भी ट्रेडिंग होती है, जो उतार-चढ़ाव होता है, वह भविष्य को बताता है. इसका मतलब है कि किसी भी अर्थव्यवस्था में जो लोग निवेश करते हैं, उनकी कहीं न कहीं अपने भविष्य को लेकर भी उम्मीद रहती है कि आगे आनेवाला समय कैसा होगा, तो निफ्टी हो या सेन्सेक्स हो, वह एक प्रातिनिधिक व्यवस्था है, हमारी भविष्य की अर्थव्यवस्था का. आनेवाला समय आज से बेहतर है, या खराब होनेवाला है, वह सेन्सेक्स दिखाता है. अगर आपका भविष्य अच्छा है, तो शेयर बाजार का इन्डेक्स बढ़िया रहेगा, बढ़ेगा और अगर भविष्य की झलक खराब है, तो वह बैठ जाएगा. सेन्सेक्स का निर्माण जिस आधार पर होता है, वह मार्केट कैपिटलाइजेशन होता है. इसको सरल भाषा में यूँ समझना होगा कि अगर कोई कंपनी है और मान लीजिए आपने उसको सौ हिस्सों में बांटा. उसकी वैल्यू (मूल्य) अगर 100 है तो आपने उसके 100 शेयर बनाए. अब इसमें जिसके पास सबसे अधिक शेयर होंगे, वो कंपनी पर अधिक अधिकार पाएगा. इससे बस जोखिम को बांटा जाता है. अगर आप खुद पूंजी लगाते हैं, तो उसका जोखिम और फायदा दोनों बस आपका होता है, अगर वह शेयर में बंटता है तो जोखिम भी बंटता है. हालांकि, इसमें ये होता है कि चूंकि लोग बहुतेरे होते हैं, तो सबकी उम्मीदें बिल्कुल अलग होती हैं. 

शेयर बाजार और जुआ

इसको जुआ इसलिए कहते हैं क्योंकि यह अनुमान पर आधारित होता है, लोग स्पेक्युलेशन करते हैं. इसीलिए, जॉन केन्स कहते भी हैं कि सेन्सेक्स एक ब्यूटी कॉन्टेस्ट की तरह है. कहने का मतलब ये है कि लोगों को जो शेयर अच्छा लगता है, वही बेहतरीन है, बाकी बातें बेमानी हो जाती है, उसके गुण-दोष से अधिक आम राय मायने रखने लगती है. एक को लगता है कि नहीं दूसरे भी उसको अच्छा समझेंगे, इसलिए वे भी उसका चुनाव करते हैं. दूसरा भी ठीक ऐसी ही करता है. इसलिए, इसको जुआ या स्पेक्युलेटिव एक्टिविटी कह दिया जाता है. सट्टेबाजी में क्या होता है...यही तो होता है. किसी ने क्लू दे दिया कि फलां घोड़ा आगे जाएगा, तो सब उस पर दांव लगाते हैं. उसी तरह शेयरों की खरीद है. जैसे ही एक खरीदता है, या क्लू देता है तो दूसरे खरीदते हैं. अब जैसे ही उसकी खरीद बढ़ती है तो उसके भाव बढ़ते हैं. 

भारतीय अर्थव्यवस्था बहुत मजबूत 

भारतीय इकोनॉमी को अगर पिछले 10-15 वर्षों में देखें, तो मिडिल क्लास बहुत उभर कर आया है. उसमें भी यूथ जो है, वह बहुत प्रभावी है. वह कई सारे अनुमानित फैसले लेता है, और उसमें डरता नहीं है. हमारा बाजार, हमारी अर्थव्यवस्था एक तरह से कहें तो अनुछुए थे, अनटैप्ड थे. बाहर के निवेशक भी हमारे यहां बहुत अधिक निवेश नहीं कर रहे थे. वे इसलिए नहीं करते थे क्योंकि उनके नजरिए से भारत एक रूढ़िवादी बाजार था. अगर हमारा शेयर बाजार आज बढ़ा है तो जाहिर तौर पर उसमें हमारे घरेलू निवेशकों का योगदान है, लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि उसमें बाहर के निवेशकों ने भी पैसा डाला है. संस्थागत बड़े निवेशकों ने भी पैसा लगाया है क्योंकि उनको लगता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में जान है. ये निवेशक बहुत संभल कर और पूरी छानबीन के बाद ही निवेश करते हैं, पैसा लगाते हैं. उनको लग रहा है कि भविष्य भारत का है और उनको बेहतरीन रिटर्न मिलेगा. इस भरोसे की वजह से ही वे निवेश कर रहे हैं. 

हमने कोविड का समय भी देखा है. उस समय लगभग सारी इकोनॉमी ऋणात्मक हो गयी. हालांकि, शेयर बाजार को अगर देखें, तो वहां ऐसी आफत नहीं आयी थी. कहा जाए कि वहां लोग बढे़ ही, तो गलत नहीं होगा. इसके पीछे एक कारण यह भी था कि लोगों ने यह सोचा कि यह भी एक आर्थिक गतिविधि है, जिसे हम कर सकते हैं. यहां तक कि फिलहाल बचत भी कम हो गयी है और लोग वहां पैसा न डालकर शेयर बाजार में लगा रहे हैं. 

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