सार - प्रीति यादव
utkarshexpress September 22, 2024 06:42 AM

क्या कुछ मैंने खोया, क्या कुछ पाया,

क्या था मेरा अपना, जो हाथ न आया।

शायद नहीं सहेजा कुछ अपना समझ,

जाने दिया उसे जो जा रहा था अबूझ।

खाली हाथ ले खड़ी रही मैं दोराहे पर,

छीन गया जो छीना जा सका चौराहे पर।

हक ना जताया, ना किसी को ये बताया,

छीनने वाला अपना ही था ना कि पराया।

शब्द भी महत्वहीन हैं करने को आलाप,

शांत रहना ही उचित, व्यर्थ है कोई विलाप।

- प्रीति यादव

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