”बस एक बारिश और” इन गांवों पर मंडराने लगेगा मौत का खतरा
Sneha Srivastava September 23, 2024 12:27 AM

आज हम जानेंगे राजस्थान की जीवनदायिनी इंदिरा गाँधी नहर के बारे में, जो दुनिया में सबसे लम्बी मानव निर्मित नहर है , राजस्थान की वो जीवनदायिनी नहर जिसने बंजर रेगिस्तान को हरा भरा कर दिया , राजस्थान का वो क्षेत्र जहाँ मीलों बस बंजर जमीन और रेत थी उसे हरे भरे खेत खलिहान में बदलने वाली इंदिरा गाँधी नहर के बारे में.

इंदिरा गाँधी नहर कब बनी,  इतने दुर्गम मरुस्थल और जानलेवा गर्मी  में ये कैसे बन पायी , इसे किसने  बनाया , 949  किलोमीटर लम्बे इसके यात्रा की दास्तान , राजस्थान के काया कल्प की दास्तान , इस नहर के आस पास बसे शहरों की कहानी.  तो आईये जानते हैं राजस्थान की जीवनदायिनी इंदिरा गाँधी नहर की कहानी राजस्थान में स्थित थार दुनिया का 17वाँ सबसे बड़ा रेगिस्तान और दुनिया का 9वाँ सबसे बड़ा गर्म मरुस्थल है. जब हिंदुस्तान और पाक का बंटवारा हुआ तो मरुस्थल भी दोनों देशो के बीच बंट गया, जिसमे पाक के हिस्से में इस मरुस्थल का 15% हिस्सा आया, वहीँ हिंदुस्तान को इसका 85 फीसदी हिस्सा मिला. विशाल थार के रेगिस्तान जहां मीलों लम्बी दूरी तक रेतीले धोरों के सिवाय कुछ नजर नहीं आता, ये राजस्थान का वो हिस्सा था जहां का लगभग हिस्सा बंजर और सूखा रहता था. यहां लोगों को पीने का पानी लेन के लिए कई मील दूर पैदल चलकर जाना पड़ता था राजस्थान में यहां पानी तलाश करना एक जंग लड़ने जैसा ही थासन 1899 में उत्तर हिंदुस्तान में विशाल अकाल पड़ा, राजस्थान बुरी तरह से इस विशाल अकाल की चपेट में आया. जिसके चलते राजस्थान के जयपुर, जोधपुर, नागौर, चुरू और बीकानेर क्षेत्र विशाल ढंग से सूखे की जद में आये थे ये अकाल विक्रम संवत 1956 में होने के कारण इसे क्षेत्रीय भाषा में ‘छप्पनिया अकाल’ भी बोला जाता है अंग्रेजों के गजेटियर में ये अकाल ‘द ग्रेट भारतीय फैमीन 1899′ के नाम से दर्ज हो गया था अकाल की तबाही से सबक लेते हुए राजा, महाराज और प्रशाशक भविष्य में आने वाले ऐसे अकालों से निपटने के तरीकों की योजना बनाने में जुट गए. बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह अकाल से निपटने की योजना में सबसे आगे रहे और उन्होंने राजस्थान में नहर के द्वारा पानी लाने की योजना पर विचार करना प्रारम्भ किया. और ये जिम्मा कंवर सेन को मिला. महाराजा चाहते थे कि पंजाब से वार्ता करके सतलुज नदी से एक नहर निकालकर राजस्थान के बीकानेर तक पहुंचाय जा सके, जिससे बीकानेर की प्रजा को पानी की परेशानी से राहत मिले. इस नहर को गंग नहर के नाम से जाना गया और इसी नहर के चलते राजस्थान को अपना अन्न का कटोरा कहलाने वाला शहर गंगानगर मिला.

गंग नहर से बीकानेर में तो पानी की परेशानी से राहत मिल गई थी लेकिन महाराजा गंगा सिंह और कंवर सेन पूरे राजस्थान को पानी की परेशानी से छुटकारा दिलाना चाहते थे. इसी सपने को साकार करने के लिए महाराज गंगा सिंह जी ने पंजाब से पानी राजस्थान तक लाने के लिए एक नहर का ड्राफ्ट तैयार किया और उस समय की अंग्रेजी गवर्नमेंट को पेश किया. लेकिन लेकिन वर्ष 1947 में कैंसर के कारण महाराज गंगा सिंह का मृत्यु हो गया जिसके बाद इनके बेटे साधुल सिंह बीकानेर के नए राजा बने. पर वर्ष 1947 में राष्ट्र आजाद होने के साथ ही राजशाही भी समाप्त हो गई, जिसके चलते ये ड्राफ्ट ठंडे बस्ते में चला गया. इसके बाद कंवर सेन ने वर्ष 1948 में एक बार फिर से इस नहर की योजना को बीस हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में सिंचाई सुविधा मौजूद कराने के लिए गवर्नमेंट के समक्ष रखा, जिसे लम्बे विचार विमर्श के पश्चात स्वीकृति मिली और 31 मार्च 1958 को केन्द्रीय गृह मंत्री गोविन्द वल्लभ पंत ने इसकी आधारशिला रख इसे राजस्थान नहर का नाम दिया. इसके साथ ही पंजाब भी एक अच्छे पडोसी की तरह राजस्थान को पानी देने के लिए तैयार हो गया था. इस नहर के पानी के लिए पंजाब के फिरजपुर के निकट सतलज और ब्यास नदी के संगम पर हरिके बैराज बनाने का फैसला लिया गया. लेकिन स्वीकृति और पानी के व्यवस्था के बाद भी इस नहर का निर्माण आसान काम नहीं था.

थार के रेगिस्तान में सैकड़ों किलोमीटर की लम्बाई में रेतीले धोरों की मिट्‌टी को हटा कर उन्हें समतल कर नहर बनाना अपने आप में बहुत कठिन कार्य रहा. रेगिस्तान की भयानक गर्मी और आंधियों ने इंजिनियरों और श्रमिकों के लिए यहां काम करना लगभग नामुनकिन कर दिया था, इसके अतिरिक्त काफी मजदूर और इंजिनियर तो भयानक गर्मी और सर्दी में भयानक ठंड से दम तोड़ चुके थे. उस समय ना तो आधुनिक मशीनें थी और ना ही पर्याप्त संसाधन थे लेकिन कंवर सिंह ने नहर के ड्राफ्ट तैयार करते समय यहां के वातावारण को भी ध्यान में रखा था, तभी तो उस से निपटने के लिए कंवर सिंह और उनकी टीम जमीन खोदने के लिए रेगिस्तान के जहाज कहे जाने वाले ऊंट का इस्तेमाल किया. ऊंटों से जमीन खोदने का काम शुरु किया गया तो सबसे मेहनती जानवर कहलाये जाने वाले गधे ने भी माल ढोने का काम भली–भाँति निभाया ऊंट और गधों ने मिलकर युद्धस्तर पर काम शुरु कर मिट्टी की खुदाई और ढुलाई के नामुमकिन काम को संभव कर दिखाया ये जानवर नहीं होते ये नहर बन पाना नामुमकिन था इस नहर को बनाने में असंख्यों जानवरों ने जान गवाई लेकिन काम को रोका नहीं गया

आख़िरकार लम्बे इंतजार, सैकड़ों जानवरों और लोगों की क़ुरबानी के बाद थार के रेगिस्तान के लिए स्वर्णिम अक्षरों में अंकित होने वाला दिन आया, जब 1 जनवरी 1987 को विशाल रेगिस्तान को चीरते हुए हिमालय का पानी 649 किलोमीटर का यात्रा तय कर जैसलमेर के मोहनगढ़ पहुंचा. राजस्थान को जीवन जीवन देने वाली यह नहर वास्तव में अपने आकार और लम्बाई के कारण एक नदी के समान है. यह नहर पंजाब के फिरजपुर के निकट सतलज और ब्यास नदी के संगम पर बने हरिके बैराज से प्रारम्भ होती है. राष्ट्र की सबसे लम्बी यह नहर 649 किलोमीटर लम्बी है. यहां एक जरूरी बात समझनी होगी की भिन्न-भिन्न तरह की प्राकृतिक विषमताएं होने के चलते एक ही बार में इस नहर का निर्माण संभव नहीं था. इसलिए इसे 2 भिन्न-भिन्न चरणों में पूरा किया गया, इसके पहले चरण में पंजाब से राजस्थान तक 204 किलोमीटर लम्बी फीडर नहर बनाई गयी , तो वहीं दूसरे चरण में 445 किलोमीटर लम्बी मुख्य नहर बनाई गई. इसके पहले चरण में बनायीं गयी फीडर नहर की 204 किलोमीटर की लम्बाई का 170 किलोमीटर हिस्सा पंजाब और हरियाणा में और 34 किलोमीटर का हिस्सा राजस्थान में आता है. राजस्थान मे मैन फीडर के अतिरिक्त 189  किलोमीटर लम्बी मुख्य नहर भी तैयार की गयी थी. राजस्थान की सीमा पर इस नहर की गहराई 21 फीट और तल की चौड़ाई 134 फीट और सतह 218 फीट चौड़ी है.

लेकिन इसके पहले और दूसरे चरण में इस नहर का पानी केवल हनुमानगढ़ तक ही पहुंच सका था, अब इसके निर्माताओं के सामने इसे जैसलमेर तक पहुंचाने के लिए एक बड़ी चुनौती प्रतीक्षा कर रही थी. चुनौती ये थी की हनुमानगढ़ से जैसलमेर तक 145 लम्बी इस नहर को सपाट जगहों में नहीं बल्कि ढलान से ऊंचाई की और बनाना था. इसके बाद नहर के इंजीनियरों ने हर किसी की कल्पना से परे रेगिस्तानी जिलों में इंजीनियरिंग लिफ्ट नहर का निर्माण कर इस चुनौती को पूरा किया. इस नहर का निर्माण पूरा होने के बाद इसने राजस्थान के उन क्षेत्रों को आबाद किया जहां वर्ष में केवल 4 से 5 बार बारिश होती थी.  आज हनुमानगढ़ के मसीतावाली से लेकर जैसलमेर के मोहनगढ़ तक फैली मुख्य नहर से नौ शाखाएं निकलती हैं. सिंचाई के लिए इसकी वितरिकाएं 9,245 किलोमीटर लम्बी हैं, जिससे राजस्थान के दस रेगिस्तानी जिलों के लोगों के जीवन मे पानी की कमी पूरी होती हैं. इसके अतिरिक्त कई बिजली परियोजनाओं के लिए भी पानी यही नहर मौजूद कराती है.

इस नहर के निर्माण से मानों राजस्थान को एक नया जीवनदान मिला हो, इस नहर से रेगिस्तान की चिलचिलाती और बंजर रेत आज हरे-भरे खेतों, मैदानों और शहरों में बदल गई है. इसकी बदौलत राजस्थान में बारिश 40 से 50 फीसदी तक बढ़ी तो दूसरी ओर पलायन भी 48 से 60 फीसदी तक कम हुआ, इतना ही नहीं ये क्षेत्र इतना उपजाऊ हुआ की पंजाब और हरियाणा से भी लोग यहां खेती और दूसरे रोजगारों के चलते खिंचे आये. इस नहर से राजस्थान के गंगानगर हनुमानगढ़ बीकानेर जैसलमेर बाड़मेर जोधपुर नागौर चूरू झुंझुनू सीकर जैसलमेर और बाड़मेर जैसे जिलों की किस्मत और जीवन दोनों बदल गए हैं. थार का विशाल रेगिस्तान जहां कभी मीलों लम्बी दूरी तक रेतीले धोरों के सिवाय कुछ नजर नहीं आता था वहां अब हरियाली छाई रहती है. वीरान क्षेत्र आबाद हो चुके हैं और बम्पर कृषि उपज पैदा हो रही है. राजस्थान की जीवन रेखा बनी इस नहर की वजह से रेगिस्तान अब पूरी तरह से बदल चुका है. जोधपुर-बीकानेर सहित दस बड़े शहरों की जनसंख्या पानी की जरूरतों के लिए पूरी तरह से इस नहर के पानी पर निर्भर है. साथ ही भारत-पाक सीमा के बिलकुल समानान्तर चलने वाली यह नहर सुरक्षा लाइन का भी काम करती है.

आज इस नहर के बगैर राजस्थान के रेगिस्तानी जिलों की कल्पना भी नहीं की जा सकती है. इस नहर ने ऐसे क्षेत्र में पानी पहुंचा दिया जहां पहले वर्ष में महज दस इंच बारिश ही कठिन से होती थी. अब रेगिस्तान में हर तरफ हरियाली लहलहा रही है. नहर के आगमन के पश्चात रेगिस्तानी क्षेत्र पूरी तरह से बदल गया. नहरी क्षेत्र की जनसंख्या तेजी से बढ़ी, जिससे कई गांव और कस्बे विकसित हो गए. नयी मंडियां खुलने से कई कृषि आधारित उद्योग स्थापित हुए. महज पशुपालन पर निर्भर रेगिस्तानी क्षेत्र के लोगों के समक्ष रोजगार के द्वार खुल गए. इन सब के चलते इस क्षेत्र का परिदृश्य पूरी तरह से बदल चूका है.

यहां का नहरी क्षेत्र सालाना 37 लाख टन कृषि उत्पादन करने लगा. तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी के मृत्यु के पश्चात 2 नवम्बर 1984 को राज्य गवर्नमेंट ने इसका नाम राजस्थान नहर से बदल कर इंदिरा गांधी नहर कर दिया था. तो दोस्तों ये थी राजस्थान नहर के इंदिरा गाँधी नहर बनने की कहानी, वीडियो देखने के लिए धन्यवाद, यदि आपको यह वीडियो पसंद आया तो प्लीज कमेंट कर अपनी राय दें, चैनल को सब्सक्राइब करें, वीडियो को लाइक करें, और अपने फ्रेंड्स और फेमिली के साथ इसे जरूर शेयर करें.

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