विदेश मंत्री ने कहा, "आज भारत 10 साल पहले की तुलना में सालाना पांच गुना अधिक संसाधन लगा रहा है, जिसके परिणाम दिख रहे हैं. हालांकि, साल 2020 से सीमा की स्थिति बहुत अशांत रही है और सितंबर 2020 से भारत चीन के साथ समाधान खोजने के तरीके पर बातचीत कर रहा था. सबसे जरूरी बात यह थी कि सैनिकों को पीछे हटाना था क्योंकि वे एक-दूसरे के बहुत करीब थे और वहां कुछ भी हो सकता था. इसके बाद दोनों तरफ से सैनिकों की संख्या बढ़ने के कारण तनाव कम हुआ."
डॉ एस जयशंकर ने बताया, "एक बड़ा मुद्दा यह है कि आप सीमा का प्रबंधन कैसे करते हैं और सीमा समझौते पर बातचीत कैसे करते हैं. अभी जो कुछ भी हो रहा है वह पहला पार्ट है, जो कि पीछे हटना है. भारत और चीन 2020 के बाद कुछ जगहों पर इस बात पर सहमत हुए कि सैनिक अपने ठिकानों पर कैसे लौटेंगे पर एक महत्वपूर्ण हिस्सा गश्त से संबंधित था. गश्त को रोका जा रहा था और हम पिछले दो सालों से इसी पर बातचीत करने की कोशिश कर रहे थे. ऐसे में 21 अक्टूबर को जो हुआ वह यह था कि उन विशेष क्षेत्रों देपसांग और डेमचोक में हम इस बात पर सहमत हुए कि गश्त फिर से शुरू होगी जैसे पहले होती थी."
21 अक्टूबर, 2024 को विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने ऐलान किया था कि पिछले कई हफ्तों से चल रही चर्चाओं के बाद दोनों देश एलएसी पर गश्त व्यवस्था को लेकर एक समझौते पर पहुंचे हैं, जिसके बाद सैनिकों की वापसी हुई और अंततः जून 2020 में गलवान घाटी में हिंसक झड़प के बाद क्षेत्र में पनपे मुद्दों का हल हो रहा है. 'एनडीटीवी' की वर्ल्ड समिट में विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा था कि यह समझौता, उस शांति और सौहार्द का आधार तैयार करता है, जो सीमावर्ती क्षेत्रों में होना चाहिए और जो 2020 से पहले मौजूद भी था.