पहले के जमाने में पढ़ाई करना हर किसी के बस की बात नहीं थी. सिर्फ कुछ ही लोग पढ़ पाते थे, वो भी गुरुकुल में जाकर. वहां वेद, युद्ध कला, धर्म और आयुर्वेद जैसी चीजें सिखाई जाती थीं. नालंदा और तक्षशिला जैसे विश्वविद्यालय पूरी दुनिया में मशहूर थे.
फिर अंग्रेजों के आने से पढ़ाई का तरीका ही बदल गया. 21वीं सदी में तो पढ़ाई और भी महंगी हो गई है. लेकिन माता-पिता बच्चों की पढ़ाई के लिए किसी भी कीमत पर समझौता नहीं करना चाहते. वो चाहते हैं कि उनके बच्चों को अच्छी पढ़ाई मिले, लेकिन महंगी फीस उनके लिए एक बड़ी समस्या बन गई है.
CRISIL की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल के अंत तक स्कूल-कॉलेजों को फीस के नाम पर मोटा मुनाफा होने वाला है. उनकी कमाई 12-14% बढ़ने का अनुमान है. ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि स्कूल-कॉलेजों में बच्चों की संख्या बढ़ रही है और फीस भी बढ़ाई जा रही है. नए-नए कोर्स भी शुरू हो रहे हैं, जिनमें एडमिशन लेने के लिए बच्चे टूट पड़ रहे हैं. पिछले तीन सालों से तो स्कूल-कॉलेज जमकर पैसा कमा ही रहे थे, लेकिन इस साल तो और भी मालामाल हो जाएंगे.
भले ही टीचरों की सैलरी और नए कोर्स का खर्चा बढ़ रहा है, लेकिन ज्यादा बच्चों के एडमिशन लेने से स्कूल-कॉलेजों को कोई फर्क नहीं पड़ रहा. उनका मुनाफा तो 28% के आसपास ही रहेगा. CRISIL ने 96 स्कूल-कॉलेजों का एनालिसिस किया है, जो कुल मिलाकर 20,000 करोड़ रुपये की फीस वसूलते हैं. इससे पता चलता है कि स्कूल-कॉलेज अच्छी आर्थिक स्थिति में हैं.
स्कूल-कॉलेजों को कर्ज लेने की जरूरत नहीं
भले ही स्कूल-कॉलेज फीस बढ़ा रहे हैं लेकिन उन्हें ज्यादा पैसे की जरूरत नहीं है. क्योंकि पिछले कुछ सालों से उन्हें फीस का पैसा 45-50 दिनों के अंदर ही मिल जाता है. इस साल तो उनकी आर्थिक स्थिति और भी मजबूत होने वाली है.
CRISIL के एसोसिएट डायरेक्टर नागार्जुन अलापर्थी का कहना है कि स्कूल-कॉलेज इतना पैसा कमा रहे हैं कि पिछले साल उन्होंने अपने इंफ्रास्ट्रक्चर पर जमकर खर्च किया था. इस साल भी वो अपनी क्षमता बढ़ाने के लिए जमीन और इंफ्रास्ट्रक्चर पर काफी पैसा खर्च करेंगे और नए-नए कोर्स भी शुरू करेंगे. लेकिन चिंता की कोई बात नहीं, क्योंकि उनके पास पहले से ही काफी पैसा है और उन्हें कर्ज लेने की जरूरत नहीं है."
स्कूलों में एडमिशन क्यों बढ़ रहे हैं?
स्कूलों में बच्चों की संख्या बढ़ने के कई कारण हैं. सबसे पहला और साफ कारण है देश की बढ़ती जनसंख्या. ज्यादा बच्चे मतलब स्कूलों में ज्यादा एडमिशन. दूसरा आजकल माता-पिता पढ़ाई को लेकर काफी जागरूक हो गए हैं. उन्हें पता है कि अच्छी पढ़ाई से ही बच्चों का भविष्य बन सकता है. सभी पेरेंट्स अपने बच्चों को अच्छी से अच्छी पढ़ाई कराना चाहते हैं. इसलिए अच्छे स्कूलों में एडमिशन के लिए रेस लगी रहती है. लोगों की आमदनी बढ़ रही है, तो वो बच्चों की पढ़ाई पर भी ज्यादा खर्च कर पा रहे हैं.
CRISIL रेटिंग्स के डायरेक्टर हिमांक शर्मा का कहना है कि इंजीनियरिंग कॉलेजों में कंप्यूटर साइंस कोर्स में अभी भी काफी बच्चे एडमिशन ले रहे हैं, हालांकि नौकरी मिलने में थोड़ी दिक्कत हो रही है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, डेटा साइंस और मशीन लर्निंग जैसे नए कोर्स भी काफी पॉपुलर हो रहे हैं. 2025 में इन फील्ड में नौकरियां ज्यादा मिलने की उम्मीद है जिससे इन कोर्स में एडमिशन और भी बढ़ेंगे. मेडिकल कॉलेज और स्कूलों में भी एडमिशन बढ़ रहे हैं. इसलिए स्कूल-कॉलेज हर साल फीस बढ़ा रहे हैं और इस साल उनकी कमाई 12-14% तक बढ़ सकती है.
आखिर पढ़ाई इतनी महंगी क्यों हो रही है?
सबसे बड़ा कारण तो महंगाई ही है. जब हर चीज के दाम बढ़ रहे हैं, तो पढ़ाई का खर्चा भी बढ़ रहा है. बैंक बाजार की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले कुछ सालों में चीजों के दाम 5-5.6% बढ़े हैं, लेकिन पढ़ाई का खर्चा 8-10% की रफ्तार से बढ़ रहा है. मतलब, हर 6-7 साल में पढ़ाई का खर्चा दोगुना हो जाता है.
आजकल शिक्षा को भी एक बिजनेस की तरह देखा जाने लगा है. स्कूल-कॉलेज ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए फीस बढ़ा रहे हैं. इससे पढ़ाई का खर्चा आसमान छू रहा है. स्कूल-कॉलेजों में पहले से ज्यादा सुविधाएं दी जा रही हैं, जैसे अच्छी बिल्डिंग, कंप्यूटर लैब, लाइब्रेरी, खेल का मैदान, एक्टिविटीज आदि. इन सब चीजों के लिए पैसा फीस के जरिए ही आता है.
अच्छे टीचरों को अच्छी सैलरी देनी पड़ती है. इससे भी स्कूल-कॉलेजों का खर्चा बढ़ता है और उन्हें फीस बढ़ानी पड़ती है. नए-नए कोर्स शुरू हो रहे हैं और पढ़ाई में टेक्नोलॉजी का भी इस्तेमाल बढ़ रहा है. इन सब चीजों के लिए भी पैसा चाहिए होता है.
फीस बढ़ी, लेकिन कीमत किसकी?
स्कूल-कॉलेजों की कमाई बढ़ रही है, लेकिन इसका खामियाजा माता-पिता को भुगतना पड़ता है. फीस बढ़ने से सबसे ज्यादा असर माता-पिता की जेब पर पड़ता है. उन्हें अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा बच्चों की पढ़ाई पर खर्च करना पड़ता है. कई बार तो उन्हें कर्ज भी लेना पड़ जाता है. फीस बढ़ने से बच्चों पर भी दबाव बढ़ता है. उन्हें लगता है कि उनके पेरेंट्स उनकी पढ़ाई के लिए इतनी मेहनत कर रहे हैं, तो उन्हें भी अच्छे नंबर लाने ही होंगे. इससे उनके मन पर एक अलग ही बोझ आ जाता है.
फीस बढ़ने का सामाजिक असर भी होता है. फीस बढ़ने से शिक्षा में असमानता बढ़ती है. जिनके पास पैसा है, वो अपने बच्चों को अच्छे स्कूलों में भेज सकते हैं, लेकिन कम आय वाले लोगों के बच्चों को सस्ते और कम सुविधाओं वाले स्कूलों में ही पढ़ना पड़ता है.
कितने प्रतिशत बच्चे जाते हैं कॉलेज?
सरकार चाहती है कि साल 2035 तक 50% बच्चे कॉलेज जाएं, जबकि अभी यह आंकड़ा 30% से भी कम है. इसके लिए सरकार नए कॉलेज खोलने के साथ-साथ पुराने कॉलेजों को भी बड़ा और बेहतर बनाने पर काम कर रही है. वहीं इस साल स्कूल-कॉलेजों में सीटें भरने का रेट 86-87% तक पहुंच सकता है, जो पिछले साल 85% था. मतलब, पहले से ज्यादा बच्चे एडमिशन लेंगे.
2021 में नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च से पता चला है कि ज्यादातर माता-पिता तो यह मानते हैं कि अच्छी पढ़ाई से ही बच्चों का भविष्य बन सकता है, लेकिन उन्हें पढ़ाई का खर्चा उठाना मुश्किल हो रहा है. करीब 60% माता-पिता ने कहा कि प्राइवेट स्कूल फीस के नाम पर बहुत ज्यादा पैसे ले रहे हैं, जबकि पढ़ाई उतनी अच्छी नहीं है.
पढ़ाई का खर्चा: कहीं ज्यादा, कहीं कम!
पढ़ाई का खर्चा हर जगह एक जैसा नहीं है. महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे अमीर राज्यों में तो फीस बहुत तेजी से बढ़ रही है. बिहार, उत्तर प्रदेश और ओडिशा जैसे गरीब राज्यों में फीस उतनी तेजी से नहीं बढ़ रही.
महाराष्ट्र में खासकर मुंबई और पुणे जैसे शहरों में इंजीनियरिंग कोर्स की फीस पिछले 10 सालों में 70% तक बढ़ गई है. ऐसा इसलिए है क्योंकि राज्य सरकार प्राइवेट कॉलेजों को बढ़ावा दे रही है. कर्नाटक में भी फीस काफी बढ़ी है. 2019 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, प्राइवेट कॉलेजों में प्रोफेशनल कोर्स की फीस पिछले 10 सालों में 60% तक बढ़ गई है.
KG से लेकर कॉलेज तक कितना आता है खर्चा?
प्ले स्कूल के लिए प्राइवेट स्कूल भी हैं और सरकारी आंगनवाड़ी भी. जो लोग ज्यादा फीस नहीं दे सकते, वो अपने बच्चों को आंगनवाड़ी भेज सकते हैं. प्ले स्कूल की फीस 5000 रुपये से लेकर 50,000 रुपये साल तक हो सकती है.
पहली से आठवीं तक की पढ़ाई प्राइमरी स्कूल में होती है. इसकी फीस 20,000 रुपये से लेकर 1 लाख रुपये साल तक हो सकती है. नौवीं से तो पढ़ाई का खर्चा और भी बढ़ जाता है. नौवीं और दसवीं की फीस 80,000 रुपये से लेकर 1.5 लाख रुपये साल तक हो सकती है. 11वीं और 12वीं में तो फीस और भी ज्यादा हो जाती है. यह 20,000 रुपये से लेकर 3 लाख रुपये साल तक हो सकती है, जो कि सब्जेक्ट पर भी निर्भर करता है.
वहीं कॉलेज की पढ़ाई का खर्चा इस बात पर निर्भर करती है कि आप कौन सा कॉलेज चुनते हैं और वो कहां है. सरकारी कॉलेज तो सस्ते होते हैं, लेकिन प्राइवेट कॉलेजों की फीस बहुत ज्यादा होती है. चार साल के डिग्री कोर्स के लिए 16 लाख रुपये तक खर्च करने पड़ सकते हैं. अगर 6% की रफ्तार से महंगाई बढ़ती रही, तो अगले 15 सालों में यही कोर्स 40 लाख रुपये हो सकती है.