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दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल का नई दिल्ली विधानसभा सीट से हार के साथ चुनाव में आप की शर्मनाक हार के साथ 10 साल से दिल्ली की सत्ता में काबिज पार्टी की विदाई हो गई है। दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के नंबर वन नेता अरविंद केजरीवाल और नंबर दो मनीष सिसौदिया की हार बताती है कि पार्टी को दिल्ली की जनता ने बुरी तरह नकार दिया है।
दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की करारी हार के साथ अरविंद केजरीवाल भारतीय राजनीति ऐसे शख्स हो गए है जो एक झटके में अर्श से फर्श पर पहुंच गए है। 2 अक्टूबर 2012 को महात्मा गांधी की जयंती पर अरविंद केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी का गठन कर अपने राजनीतिक सफर की औपचारिक शुरुआत की थी और 10 साल में ही राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल कर लिया था। ऐसे में अब जब अरविंद केजरीवाल अपना गढ़ ही गवां बैठे हो तो उनके सियासी वजूद के सामने भी बड़ा संकट खड़ा हो गया है।
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नई दिल्ली से क्यों हार गए अरविंद केजरीवाल?-नई दिल्ली से विधानसभा सीट से अरविंद केजरीवाल की हार उनके सियासी करियर के लिए बड़ा झटका है। अरविंद केजरीवाल पिछले 10 साल से नई दिल्ली विधानसभा सीट से विधायक थे और इस बार विधानसभा चुनाव में भाजपा के उम्मीदवार प्रवेश वर्मा ने अरविंद केजरीवाल को हरा दिया। 2015 विधानसभा चुनाव में नई दिल्ली विधानसभा सीट से 31 हजार से अधिक वोटों से जीतें थे वहीं 10 साल बाद 2025 के विधानसभा चुनाव में भाजपा उम्मीदवार प्रवेश वर्मा से 3 हजार से अधिक वोटों से हार गए।
अरविंद केजरीवाल की राजनीति का सबसे बड़ा हथियार उनकी ईमानदार राजनेता वाली छवि थी लेकिन जिस तरह से पिछले पांच साल में शराब घोटाले में अरविंद केजरीवाल को तिहाड़ जेल जाना पड़ा उससे उनकी छवि को खासा नुकसान पहुंचां। इसके साथ मुख्यमंत्री निवास को शीशमहल बनाने का मुद्दा भी भाजपा ने चुनाव में खूब उठाया जो कहीं न कहीं जनत पर असर कर गया। वहीं जेल से बाहर आने के बाद अरविंद केजरीवाल ने जिस तरह से मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर आतिशी को मुख्यमंत्री बनाया, वह दांव भी उल्टा पड़ गया। 2015 और 2020 विधानसभा चुनाव में आक्रामक रहने वाली अरविंद केजरीवाल इस बारे पूरे चुनाव में डिफेंसिव दिखाई दिए।
10 साल में अर्श से फर्श पर केजरीवाल
?- अरविंद केजरीवाल आम आदमी पार्टी के सबसे बड़े नेता थे और पूरी पार्टी उनके ही इर्द-गिर्द निर्भर थी। ऐसे में अरविंद केजरीवाल की हार के साथ ही आम आदमी पार्टी के अस्तित्व पर भी सवाल उठने लगा है।2013 के दिल्ली में पहले विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने 28 सीटों पर जीत हासिल कर अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज कराई थी। वहीं दो साल बाद 2015 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने दिल्ली की 70 सदस्यीय विधानसभा मे 67 सीटें जीत कर ऐसा इतिहास रचा जिसने सभी सियासी पंडितों को भौचक्का कर दिया। वहीं पांच साल बाद 2020 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में भी आम आदमी पार्टी 53.57 फीसदी वोट हासिल कर 62 सीटों के साथ दिल्ली की सत्ता से फिर से अपना कब्जा जमाया और मोदी की प्रचंड लहर के बाद भी दिल्ली का किला बचा कर रखा है।
दिल्ली के बाद आम आदमी पार्टी ने पंजाब में अपनी गहरी पैठ बनाई। 2017 के पंजाब विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने 23.7 फीसदी वोट हासिल करके 20 सीटें जीती थी वहीं 2022 के पंजाब विधानसभा चुनाव में 42. 01 फीसदी वोट हासिल कर 117 सीटों वाली पंजाब विधानसभा में 92 सीटों पर जीत हासिल कर प्रचंड बहुमत से अपनी सरकार बनाई। वहीं आयोग ने अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी को चार राज्यों दिल्ली, गोवा, पंजाब और गुजरात में उसके चुनावी प्रदर्शन के आधार पर राष्ट्रीय पार्टी के रूप में दर्जा प्राप्त कर लिया।