त्रिभाषा फॉर्मूले पर सरकार द्वारा लिए गए फैसलों को वापस लेने के बाद शनिवार को मुंबई में शिवसेना (उद्धव गुट) और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) की संयुक्त विजय रैली आयोजित की गई. इस रैली में शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे और मनसे प्रमुख राज ठाकरे पहली बार एक साथ मंच पर नजर आए, जिससे राज्य की राजनीति में नया हलचल पैदा हो गया है. रैली के बाद दोनों दलों के संभावित गठबंधन को लेकर सियासी गलियारों में चर्चा तेज हो गई है.
इस पूरे घटनाक्रम पर कांग्रेस की पहली आधिकारिक प्रतिक्रिया सामने आई है, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष हर्षवर्धन सपकाल ने इस मुद्दे पर बड़ा बयान देते हुए कहा कि कांग्रेस उन दलों के साथ आगे बढ़ेगी जो उसके मूल्यों को स्वीकार करते हैं.
सपकाल ने कहा, 2019 में कांग्रेस और एनसीपी ने मिलकर चुनाव लड़ा था. शिवसेना ने तब भाजपा से दूरी बनाते हुए हमारे साथ महा विकास अघाड़ी (MVA) का गठन किया था. हमारा उद्देश्य भाजपा को सत्ता से दूर रखना था और इसी के तहत INDIA गठबंधन भी बना.
उन्होंने स्पष्ट किया कि नगर निगम और जिला परिषद जैसे स्थानीय निकाय चुनावों के लिए स्थानीय कांग्रेस समितियों को समान विचारधारा वाले दलों से गठबंधन करने की स्वतंत्रता दी गई है. ऐसे दलों में उद्धव ठाकरे की शिवसेना भी शामिल हो सकती है.
ठाकरे-ठाकरे रैली पर कांग्रेस की प्रतिक्रियाविजय रैली पर प्रतिक्रिया देते हुए सपकाल ने कहा, यह एक सांस्कृतिक और मराठी अस्मिता से जुड़ा कार्यक्रम था, जिसमें दोनों नेता एकजुट हुए. जब भविष्य में इस पर अधिक स्पष्टीकरण सामने आएंगे, तब कांग्रेस स्थिति का आकलन कर फैसला लेगी.
उन्होंने आगे कहा कि चुनाव की तारीखों को लेकर भी स्थिति स्पष्ट नहीं है. उन्होंने कहा, चुनाव कब होंगे, यह तय नहीं है. क्या वे फरवरी में होंगे, अक्टूबर में या फिर होंगे ही नहीं — यह एक मजाक बन चुका है.
भाजपा पर साधा निशानाकांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष ने भाजपा पर हमला करते हुए कहा, भाजपा का मुख्य एजेंडा है लोगों का ध्यान भटकाना। कभी धर्म के नाम पर, कभी भाषा के नाम पर, और अब चुनावी प्रक्रियाओं के नाम पर.
इस बीच, महायुति गठबंधन के कुछ नेताओं ने अंदेशा जताया है कि उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे का यह नजदीक आना एक संभावित तीसरे मोर्चे की नींव हो सकता है. उनके अनुसार, अगर ठाकरे बंधु एक साथ आते हैं, तो महा विकास अघाड़ी (MVA) में फूट पड़ सकती है, जिससे भाजपा को लाभ मिल सकता है.
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यदि मनसे और शिवसेना (उद्धव गुट) का गठबंधन औपचारिक रूप लेता है, तो यह न केवल मुंबई और मराठी वोट बैंक पर असर डालेगा, बल्कि स्थानीय निकाय चुनावों में सत्ता संतुलन को भी प्रभावित कर सकता है.
इनपुट-टीवी9 मराठी